मेरठ. चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के अटल सभागार में विश्व हिन्दू परिषद व्याख्यान माला आयोजन समिति द्वारा आयोजित तीन दिवसीय व्याख्यानमाला का शुभारंभ विहिप अंतरराष्ट्रीय कार्याध्यक्ष आलोक कुमार, डॉ. एस. के. सूरी, शिव कुमार गुप्ता ने दीप प्रज्ज्वलन कर किया.
आलोक कुमार ने ‘समान नागरिक संहिता – भारत की आवश्यकता’ विषय पर कहा कि सभ्यता के विकास में पूरे विश्व में अलग -अलग प्रकार के विधि विधान बने. अंग्रेजों ने ईसाई क़ानून बनाए, मुस्लिमों ने शरिया क़ानून बनाए. भारत में भी हिन्दुओ द्वारा बनाए कानून चले आ रहे थे. लेकिन भारतीय दंड सहिता में उसकी सज़ा अन्य प्रकार से तय है. भारत में आईपीसी में सभी के लिए एक जैसा दंड विधान है. यहाँ पर दंड विधान जाति अथवा धर्म को देखकर नहीं बनाया गया, इसी कारण सज़ा के समय किसी की जाति या धर्म नहीं पूछते.
पूरे देश में केवल चार क़ानून सभी धर्मों के लिए अलग हैं, जिसमें…
१. विवाह एवं तलाक़ के समय
२. बच्चों को गोद लेते समय
३. पत्नी एवं बच्चों को गुजारा भत्ता देते समय
४. मृत्यु होने पर सम्पत्ति विभाजन के समय
संविधान की धारा 44 के अनुसार भारत में सभी धर्मों एवं पंथों के लिए एक जैसे निर्देश है एवं कहा गया है कि सरकारें समाज के हितों को ध्यान में रख कर समान नागरिक संहिता कानून लेकर आए, लेकिन स्वाधीनता के इतने वर्षों के बाद भी किसी सरकार ने इसे लागू नहीं किया. सर्वोच्च न्यायालय ने शाहबानो केस में कहा था – ये समाज के लिए अत्यंत आवश्यक है. इसके लागू ना होने के कारण देश की अखंडता एवं एकता को खतरा है.
आज देश की जनसंख्या लगातार बढ़ती जा रही है, एक वर्ग विशेष के लोगों को चार-चार विवाह करने का अधिकार प्राप्त है. इतना ही नहीं इसके बाद भी किसी को तलाक़ देकर पाँचवा विवाह भी कर सकता है, संविधान की किसी भी धारा में अधिकार उनको नहीं दिया गया. परंतु उसके बाद भी कुप्रथा समाज में चली आ रही है. धारा 14 में सभी स्त्री पुरुषों को विवाह के संबंध में बराबरी का अधिकार दिया है. जिसका लाभ समाज के सभी वर्गों को मिलना चाहिए. फिर क्या कारण है कि मुस्लिम महिलाओं को इस अधिकार से वंचित रखा जा रहा है. उतराखंड, गुजरात एवं उत्तर प्रदेश जैसे राज्य समान नागरिक संहिता को लेकर अपने अपने स्तर पर लगातार प्रयास कर रहे हैं, जिसके सार्थक परिणाम जल्द दिखाई देंगे. हरबीर सुमन ने उपस्थित अतिथियों का आभार व्यक्त किया.