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‘स्व’ आधारित भारत समय की आवश्यकता; हमारे लिए भी और विश्व के लिए भी – डॉ. मोहन भागवत जी

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ग्रेटर नोएडा. ग्रेटर नोएडा स्थित शारदा विश्वविद्यालय के आनंदस्वरुप सभागार में रविवार को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा प्रबुद्ध नागरिक समारोह का आयोजन किया गया.

कार्यक्रम में ‘स्व आधारित भारत’ पर ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का दृष्टिकोण’ विषय पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि स्व आधारित भारत आज समय की आवश्यकता है. हमारे लिए भी और विश्व के लिए भी. पहले इसे आवश्यक नहीं माना जाता था, आज इसकी आवश्यकता है तो चर्चा भी हो रही है. किसी देश की उन्नति तब तक नहीं हो सकती, जब तक वह अपने बल पर कुछ करके न दिखाए. यह हमारे संदर्भ में भी लागू होता है.

उन्होंने कहा कि जब 1857 का स्वतंत्रता संग्राम किसी कारण से विफल हो गया. लेकिन उससे कुछ भी हासिल नहीं हुआ, ऐसा नहीं है. उससे समाज में चेतना जगी, यह महत्वपूर्ण है. उसके बाद हम स्वतंत्र हुए. हमें स्वतंत्रता के बाद जो अच्छा लगा, हमने उसका धारण किया. बाहर की भी जो अच्छी चीजें थी उसको भी हमने लिया. लेना भी चाहिए, इसमें कोई गलत बात भी नहीं है. लेकिन उसको अपने अनुसार लेना और अपनी शर्तों पर लेना, यह महत्वपूर्ण है.

स्व आधारित भारत की परिकल्पना करना कोई गलत नहीं है. इसकी आवश्यकता भी है. क्योंकि भारत के भले में दुनिया का भला है. इसलिए हम कह सकते हैं कि भारत का भला होना आवश्यक है.

हमने कोरोना काल में भी देखा कि किस तरह भारत की जिन चीजों की आलोचना होती थी, वही वरदान साबित हुई. इसलिए हम कहते हैं कि भारत की उन्नति स्व आधारित उन्नति हो यह महत्वपूर्ण है. हमारे लिए भी और विश्व के लिए भी.

सरसंघचालक जी ने कहा कि राष्ट्र बनते हैं, बनाए नहीं जाते. बनाए हुए राष्ट्र नष्ट हो जाते हैं. हम इस लिए जुड़े हैं क्योंकि हमारा जीवन सदियों से चला आ रहा है. इसलिए हम आज भी जुड़े हैं. भाषा संस्कृति और खानपान में विविधता होने के बावजूद भी आज भी हम साथ हैं. जो नहीं जुड़े वह टूट गए. हमारा राष्ट्र एक राष्ट्र ही नहीं सनातन राष्ट्र है और संगठित राष्ट्र है. आज से नहीं यह सनातन काल से चला आ रहा है. हम जब प्रार्थना करते हैं तो अपने साथ विश्व का कल्याण हो ऐसी प्रार्थना करते है क्योंकि यही हमारा स्वभाव है.

सरसंघचालक जी ने कहा कि सामाजिक समरसता अति आवश्यक है. दुनिया में समता और समानता एकसाथ नहीं आ सकती है. अगर समता आएगी तो समानता नहीं होगी और अगर समानता होगी तो समता नहीं होगी. यह तभी हो सकता है, जब बन्धुत्व की भावना होगी.

सत्य को स्थापित करने के लिए शक्ति की आवश्यकता पड़ती है. यह तभी हो सकता है, जब आप शक्ति सम्पन्न हों. इसलिए यह आवश्यक है कि भारत शक्ति सम्पन्न हो. देश को सुरक्षित रखने के लिए जो कार्य करते हैं, वह बल के बिना सम्भव नहीं हैं.

भारत के स्व को समझकर नियम एवं कानून बनें. अभी तक हम अंग्रेजों के तंत्र से चल रहे हैं. इसे बदलने की आवश्यकता है. हमें स्वदेशी को बढ़ावा देना चाहिए. सीमित उपभोग करना चाहिए. रोजगार को प्रभावित करने वाली या यह कहें कि उसे मारने वाली तकनीक हमें नहीं लेनी चाहिए.

हमारे यहाँ त्याग की प्रवृत्ति है. भौतिक एवं अध्यात्म दोनों भारत की आवश्यकता है. दकियानूसी बातों को समाज को छोड़ना पड़ेगा. अर्थतंत्र को अपने और समय के हिसाब से बनाना चाहिए.

कार्यक्रम का शुभारंभ दीप प्रज्ज्वलित कर भारत माता के चित्र पर पुष्पार्चन के साथ हुआ.

कार्यक्रम में उपस्थित सभी गणमान्य अतिथियों ने भी माँ भारती के चित्र पर पुष्प अर्पित किए. कार्यक्रम में क्षेत्र के प्रबुद्ध नागरिक उपस्थित रहे.

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