हाल ही के कुछ उदाहरण सोचने पर विवश करते हैं कि आखिर छात्र इतने दबाव में क्यों हैं? क्यों वे अपने जीवन का महत्व नहीं समझ रहे और अपनी जीवन समाप्त कर ले रहे हैं? क्या जीवन की सार्थकता केवल डॉक्टर या इंजीनियर बनने में ही है?
1). “सॉरी पापा मुझे माफ कर दीजिए… मैं इस साल भी नहीं कर पाया.” भरत ने पीले रंग की पर्ची पर यह मैसेज लिखा, एक उदास चेहरा बनाया और फांसी के फंदे पर झूल गया. वह धौलपुर का रहने वाला था और नीट की तैयारी कर रहा था.
2). “मम्मी पापा सॉरी, मैं JEE नहीं कर सकती. मैं सुसाइड कर रही हूं. मैं एक लूज़र हूं. मैं अच्छी बेटी नहीं हूं. सॉरी मम्मी पापा यही लास्ट ऑप्शन है.” अपने कमरे में एक पन्ने पर ये लाइनें लिखकर 18 वर्ष की निहारिका ने आत्महत्या कर ली. बाद में भाई ने बताया कि वह बहुत तनाव में थी.
3). “पापा हमसे जेईई नहीं हो पाएगा, मुझे आपसे बोलने की हिम्मत नहीं है, आई क्विट…..” एक पन्ने पर अपनी भावनाएं लिखकर अभिषेक ने जहर खा लिया. वह भागलपुर से आकर जेईई की तैयारी कर रहा था.
4). “सॉरी, मैंने जो भी किया है, अपनी मर्जी से किया है, प्लीज़ मेरे दोस्तों और पैरेंट्स को परेशान ना करें. हैप्पी बर्थडे पापा….” यह लिखकर 18 वर्ष के मनजोत ने अपनी इह लीला समाप्त कर ली. वह मेडिकल एंट्रेंस की तैयारी के लिए रामपुर से कोटा आया था.
5). “मैं आपसे माफी मांग रहा हूं, मैं अपनी मर्जी से कोटा आया था. मुझ पर किसी ने दबाव नहीं डाला. सॉरी दीदी, सॉरी मम्मी, सॉरी भाई, सॉरी दोस्तो, मुझे माफ कर दो, मैं हार गया. इसलिए मैं मरना चाहता हूं….” ये आखिरी शब्द थे बदायूं के अभिषेक के, जो पिछले दो वर्षों से कोटा के एक हॉस्टल में रह रहा था और नेशनल एलिजिबिलिटी-कम-एंट्रेंस टेस्ट (एनईईटी) की तैयारी कर रहा था.
गृहिणी दीपा खंडेलवाल कहती हैं कि, इसकी दोषी काफी हद तक हमारी शिक्षा व्यवस्था है. करियर ऑप्शन गिने चुने हैं, आप अध्यापक बन जाइए, लेकिन प्राइवेट स्कूल/ कॉलेजों में पैसे नहीं मिलते. संगीत-नृत्य, फोटोग्राफी से तो घर ही मुश्किल से चलता है. मैनेजमेंट की पढ़ाई करो तो फिर कोचिंग का मुंह देखना ही पड़ता है. सिविल सर्विसेज की परीक्षा भी सबके बस की नहीं. पेइंग करियर तो मेडिकल और इंजीनियरिंग ही है, इसके लिए कोचिंग जैसे आवश्यक हो गई है.
मनोविज्ञानी ईना बुद्धिराजा कहती हैं, हर बच्चा प्रतिभाशाली होता है. लेकिन सबकी प्रतिभाएं अलग अलग होती हैं. हर गुण हरेक में नहीं होता. इसलिए किसी की आपस में तुलना भी नहीं की जा सकती. बया घोंसला बुनने में माहिर है तो चूहा बिल खोदने में. मछली जल की रानी है, लेकिन जमीन पर नहीं चल सकती. मानव मस्तिष्क का विकास भी सबमें अलग अलग प्रकार से होता है. लेकिन आज के उपभोक्तावादी विश्व में पैसे को सर्वाधिक महत्व दिया जाता है. ऐसे में माता पिता और बच्चे दोनों ही वह पढ़ाई करवाना / करना चाहते हैं, जहां पैकेज अच्छा हो. इसीलिए अक्सर माता पिता सोचते हैं कि उनका बच्चा या तो डॉक्टर बने या इंजीनियर. भले ही उसकी प्रतिभा किसी और क्षेत्र में हो.
और वास्तव में कोटा में जिन छात्रों ने आत्महत्या की, वे या तो जेईई की तैयारी कर रहे थे या मेडिकल की. एक सर्वे के अनुसार, कोटा में प्रत्येक दस में से चार छात्र-छात्राएं अवसाद का शिकार हैं. यहां लगभग तीन हजार निजी छात्रावास हैं, जिनमें 45 हजार कमरे हैं, जिनमें दो लाख छात्र-छात्राएं मेडिकल और इंजीनियरिंग की कोचिंग के लिए आकर रहते हैं. कोटा का कोचिंग उद्योग पांच हजार करोड़ रुपये का है.
वर्ष 2023 में कोटा में 29 कोचिंग छात्रों ने सुसाइड किया था. इस वर्ष जनवरी से लेकर अप्रैल तक मात्र चार महीनों में 9 छात्र-छात्राओं ने पढ़ाई के तनाव और दबाव के चलते आत्महत्या कर ली.
24 जनवरी – नीट स्टूडेंट मोहम्मद जैद ने हॉस्टल में फंदा लगाकर आत्महत्या कर ली. वह उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद का रहने वाला था. कोटा के जवाहर नगर थाना क्षेत्र के न्यू राजीव गांधी नगर क्षेत्र के हॉस्टल में रहता था.
2 फरवरी – उत्तर प्रदेश के गोंडा निवासी नूर मोहम्मद ने आत्महत्या कर ली. नूर चेन्नई कॉलेज से बीटेक कर रहा था और कोटा में रहकर ऑनलाइन पढ़ाई कर रहा था.
13 फरवरी – छत्तीसगढ़ निवासी शिव कुमार चौधरी ने, जो कोटा के महावीर नगर प्रथम क्षेत्र में रहता था, अपने कमरे में आत्महत्या कर ली.
20 फरवरी – 16 साल के रचित का शव जंगल में मिला था. वह मध्यप्रदेश के राजगढ़ के जावरा का रहने वाला था. रचित कोटा में जेईई की तैयारी कर रहा था.
8 मार्च – बिहार के भागलपुर के रहने वाले छात्र अभिषेक ने सल्फास खाकर आत्महत्या कर ली. वह जेईई की तैयारी कर रहा था.
26 मार्च – उत्तर प्रदेश के कन्नौज निवासी उरूज ने पंखे से लटक कर जान दे दी. वह नीट की तैयारी करने कोटा आया था.
आत्महत्या की घटनाओं को लेकर कोटा कलेक्टर की ओर से अभिभावकों के लिए पत्र जारी किया गया, जिसमें उन्होंने लिखा – “मां-बाप के लिए बच्चे की खुशी सब कुछ है. उसकी खुशी को किसी परीक्षा के नंबरों से न जोड़ें. बच्चे से नियमित बात करें, समझाएं कि पूरे विश्व में कोई नहीं, जो फेल न हुआ हो, कोई नहीं जिसने गलती न की हो…”
शिक्षित रोजगार केंद्र प्रबंधक समिति, राजस्थान के जन स्वास्थ्य विशेषज्ञ भूपेश दीक्षित कहते हैं कि, “अप्रैल-मई, हाई रिस्क महीने हैं. इसी समय सारी बड़ी परीक्षाएं आयोजित की जाती हैं. ऐसे में न सिर्फ कोटा, बल्कि उन सभी स्थानों पर अतिरिक्त ध्यान देने की आवश्यकता है, जहां पर कोचिंग सेंटर चल रहे हैं. ऐसे समय पर जिला प्रशासन व पुलिस को अलर्ट मोड पर रहना चाहिए. सभी पीजी और छात्रावासों में नियमित मॉनिटरिंग की जाए. बच्चों की काउंसलिंग हो, रात्रि में विशेषतौर पर गश्त हो. इतना ही नहीं एक रैपिड एक्शन टीम गठित की जाए जो प्रत्येक बच्चे पर निगरानी रख सके.”
‘टेली मानस’ हो सकता है उपयोगी
टेली मानस भारत में विकसित एक नया मोबाइल एप्लिकेशन है, जिसका काम किसी प्रकार की मानसिक परेशानी से जूझ रहे लोगों को मानसिक स्वास्थ्य सहायता प्रदान करना है. यह ऐप यूजर्स को तनाव, चिंता और अवसाद से निपटने में सहायता करने के लिए बनाया गया है. जिसकी शुरुआत स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा 10 अक्तूबर, 2022 को की गई थी.
टेली मानस पर परीक्षाओं के दौरान परीक्षा संबंधी तनाव से जुड़ी कॉल्स में भी बीते वर्षो में तेजी देखी गई है. जहां बच्चों ने पूछा कि परीक्षा में अगर पेपर अच्छा नहीं हुआ तो क्या होगा? उनके माता-पिता उनको डांटेंगे और परिवार रिश्तेदारों में उनकी बेइज्जती होगी. ऐसी स्थिति में वे क्या करें? तब काउंसलर्स द्वारा उन्हें परामर्श दिया गया और यह भी बताया गया कि कैसे स्वयं अपनी सहायता की जा सकती है.
कोटा में आत्महत्या की घटनाओं पर अंकुश के लिए इस एप्लीकेशन को गंभीरता से लिया जाना चाहिए. इसके बारे में अधिक से अधिक प्रचार-प्रसार करने की आवश्यकता है. इसके टोल-फ्री हेल्पलाइन नंबर हैं – 14416 या 1-800-891-4416. फोन करने वाले अपनी पसंद की भाषा चुनकर सहायता ले सकते हैं.