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अनोखी पहल – कोरोना ग्रस्तों के मानसिक स्वास्थ्य के लिये सेवांकुर की छात्राओं का ‘पत्र पैगाम’

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मुंबई. चल रहा चुनौती का काल है, कोई चुनौतियों से कहो संघर्ष हमारी धरोहर है

कोरोना दो दिन की बात है दोस्तों, जिंदगी अभी बाकी है, ये तो बस मामूली जंग है….

यह कोई काव्य पंक्तियाँ नहीं है. यह पंक्तियाँ हैं सेवांकुर की छात्राओं द्वारा कोरोना संक्रमितों को लिखे पत्र की. संभाजीनगर सेवांकुर की छात्राओं ने कोरोना रोगियों के मानसिक स्वास्थ्य के लिये यह अभिनव एवं सराहनीय उपक्रम शुरू किया है.

सेवांकुर – संस्था कोविड की पहली लहर से ही स्क्रिनिंग, जनजागरण, समुपदेशन आदि विविध प्रकार का कार्य किया गया है. पुणे, मुंबई के साथ महाराष्ट्र के अन्य भागों में भी यह कार्य चल रहा था, आज भी चल रहा है. पिछले कुछ दिनों से डिजिटल एवं प्रत्यक्ष रूप से वैक्सीनेशन के बारे में जनजागरण का कार्य सेवांकुर के माध्यम से किया जा रहा है. संभाजीनगर के विद्यार्थी हररोज डॉ. हेडगेवार रुग्णालय में जाते हैं और बाद में जनजागरण के लिये सेवाबस्तियों में जाते हैं.

कोविड संसर्ग की दूसरी लहर में नागरिकों का मानसिक स्वास्थ्य को ठीक रखने की नई चुनौती चिकित्सा क्षेत्र के समक्ष है. डॉ. हेडगेवार रुग्णालय के कोविड कक्ष में रहने वाले मरीजों के मानसिक स्वास्थ्य को ठीक रखने के लिये क्या कर सकते हैं, इसे लेकर सेवांकुर के सदस्यों में चर्चा चल रही थी. इसी दौरान सेवांकुर महाराष्ट्र के बौद्धिक प्रमुख डॉ. यतिंद्र अष्टपुत्रे को पत्र लिखने की कल्पना मन में आई. पत्र औपचारिक भाषा में और सब के लिये एक जैसे लिख कर अपना हेतु साध्य नहीं होगा, यह भी ध्यान में आया.

इसलिए कोरोना संक्रमित महिला है या पुरुष, बाल है या वृद्ध, रोगी की स्थिति कैसी है, वह कितना भावुक है, सारी बातों को ध्यान में लेकर खत लिखे गए. उनके मन को आश्वस्त व विश्वास देने वाला पत्र लिखा गया. कहीं दादी तो कहीं काका कहकर उन्हें पत्र में संबोधित किया गया. काव्य पंक्तियों का अंतर्भाव किया गया तो कभी अपने करोना के आशादायक अनुभव साझा किये गए.

डॉ. नितिन बताते हैं कि यह पत्र पढ़कर मरिजों को आनंद भी हुआ तो कभी किसी के आंसू भी निकल पडे. कोरोना कक्ष के वातावरण, मरीजों के अकेलेपन में यह पत्र अपनेपन का अनुभव दे गया. उनकी मनःस्थिति बदलने में सहायता मिली. अपनेपन से लिखे इन पत्रों की एवं सेवांकुर के भविष्यकालीन डॉक्टरों की सर्वत्र सराहना हो रही है. इंटरनेट की दुनिया में पत्र निराशाग्रस्त मानसिकता को सकारात्मकता की ओर ले जानेवाला सेतू सिद्ध हो सकता है, यह फिर एक बार अधोरेखित हुआ है.

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