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किसान आंदोलन के बीच संत की ‘आत्महत्या’ के ‘अनसुलझे’ प्रश्न

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राकेश सैन

नए कृषि सुधार कानूनों को लेकर दिल्ली की सीमा (सिंघु बॉर्डर, दिल्ली-हरियाणा सीमा) पर किसानों के विरोध प्रदर्शन के बीच संत बाबा राम सिंह की गोली लगने से मौत हो गई. वे यहां किसानों के साथ धरने पर बैठे थे. कहा जा रहा है कि उन्होंने किसानों की मांग के समर्थन में खुद को गोली मार ली. उन्हें गंभीर स्थिति में पानीपत के एक निजी अस्पताल ले जाया गया, जहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया. बाद में करनाल के सरकारी अस्पताल में उनका पोस्टमार्टम करवाया गया.

बताया जाता है कि खुद को गोली मारने से पहले उन्होंने डायरी में एक नोट लिखा कि ‘‘मैंने किसानों का दुःख देखा है. अपने हक के लिए उन्हें सड़क पर इस तरह से लड़ते देखकर मैं काफी दुःखी हूं. सरकार किसानों को न्याय नहीं दे रही है, जो कि जुल्म है. जो जुल्म करता है, वह पापी है और जो जुल्म सहता है, वह भी पाप का भागी है. किसी ने किसानों के हक के लिए तो किसी ने किसानों पर हो रहे जुल्म के लिए कुछ न कुछ किया है. किसी ने पुरस्कार वापस कर सरकार को अपना गुस्सा दिखाया है. सरकार के इस जुल्म के बीच सेवादार आत्मदाह करता है. यह जुल्म के खिलाफ एक आवाज है. यह किसानों के हक के लिए आवाज है. वाहे गुरु जी का खालसा, वाहे गुरुजी की फतेह.’’

संत बाबा राम सिंह जी हरियाणा के करनाल स्थित निसिंग के सिंघड़ा गांव के रहने वाले थे. विश्व में अपने लाखों अनुयायियों के बीच वे सिंगड़ा वाले बाबा जी के नाम से जाने जाते थे. 65 वर्षीय बाबा राम सिंह जी कई सिक्ख संगठनों में अलग-अलग पदों पर रह चुके थे. वे पंजाब और हरियाणा के अलावा दुनियाभर में प्रवचन के लिए जाते थे. नानकसर संप्रदाय से जुड़े राम सिंह जी को इस संप्रदाय में काफी ऊंचा स्थान प्राप्त था. दावा किया जा रहा है कि जब से किसान आंदोलन की शुरुआत हुई, वे तभी से आंदोलन से जुड़ी हर छोटी-बड़ी जानकारी हासिल कर रहे थे. उनके करीबी शिष्यों की मानें तो बाबा किसान आंदोलन को लेकर काफी दुःखी रहते थे. इसी कारण उन्होंने कथित तौर पर आत्महत्या कर ली.

इस मामले की जांच कर रही पुलिस ने बाबा राम सिंह की आत्महत्या को लेकर कुछ महत्वपूर्ण तथ्य उजागर किए हैं. जांच दल का कहना है कि बाबा राम सिंह ने गुरुद्वारे के सेवादार की पिस्तौल से कथित तौर पर अपनी कनपटी पर गोली मारी थी. पुलिस ने उस पिस्तौल को बरामद कर लिया है. इसके अलावा, पुलिस ने उनकी डायरी और कलम भी बरामद कर ली है. आवश्यकता पड़ने पर इसकी फॉरेंसिक जांच भी कराई जा सकती है. अभी तक की जांच से यह स्पष्ट है कि जिस पिस्तौल से बाबा को गोली लगी, उसका लाइसेंस सेवादार के नाम पर है. भले ही यह घटना सामान्य लगे, लेकिन इसने अपने पीछे कई सवाल छोड़े हैं, जिनका जवाब मिले बिना सच का पता लगाना मुश्किल होगा. सबसे महत्वपूर्ण सवाल तो यही है कि गोली लगने के बाद गंभीर रूप से घायल बाबा राम सिंह को घटनास्थल से 60-65 किलोमीटर दूर पानीपत क्यों ले जाया गया? उन्हें दिल्ली या सोनीपत क्यों नहीं ले जाया गया? नजदीक होने के साथ दिल्ली में अच्छी चिकित्सा सुविधा भी उपलब्ध है. सवाल यह भी कि यह चूक है या किसी सोची-समझी साजिश के तहत उन्हें सिंघु बॉर्डर से इतनी दूर पानीपत ले जाया गया? कौन नहीं चाहता था कि बाबा को समय पर अच्छी चिकित्सा सुविधा उपलब्ध हो? कहीं ऐसा तो नहीं कि किसी को यह भय था कि अगर बाबा जी की जान बच गई तो उसकी जान मुश्किल में पड़ जाएगी?

संदेह तो इस बात से भी उत्पन्न होता है कि पुलिस प्रशासन को तत्काल घटना की जानकारी क्यों नहीं दी गई? पुलिस को एक घंटे बाद घटना की सूचना मिली. वह जब घटनास्थल पर पहुंची तो उसे वहां कुछ नहीं मिला. बाबा जी को अस्पताल ले जाया जा चुका था. यही नहीं, पुलिस को घटनास्थल पर वह कार भी नहीं मिली, जिसके बारे में दावा किया जा रहा है कि उसमें बाबा जी ने खुद को गोली मारी थी. घटनास्थल से आत्महत्या में प्रयुक्त पिस्तौल भी नदारद मिली. सवाल है कि घटनास्थल से पिस्तौल किसने गायब की? क्या किसी ने कथित आत्महत्या के सबूत को मिटाने का प्रयास किया, आखिर क्यों? अभी तक इस सवाल का जवाब भी नहीं मिल सका है कि बाबा जी को घायल अवस्था में सबसे पहले किसने देखा? बाबा जी हमेशा अंगरक्षकों और सेवादारों से घिरे रहते थे. घटना के समय कार में उनके साथ और कौन था? अगर उनके साथ कोई था तो उसने उन्हें रोका क्यों नहीं? उसने शोर क्यों नहीं मचाया? अगर बाबा जी के साथ कोई था तो वह मौके से फरार क्यों हो गया? इन अनुत्तरित प्रश्नों को देखते हुए संदेह होना स्वाभाविक है.

संत राम सिंह की आत्महत्या की खबरों के साथ-साथ सोशल मीडिया पर अमरजोत कौर नामक एक नर्स का ऑडियो भी वायरल हुआ. इसमें वह एक पंजाबी न्यूज चैनल को बता रही है कि वह लंबे समय से बाबा जी से जुड़ी हुई थी. उसका कहना है कि जो खबर आ रही है कि बाबा ने खुद को गोली मारी, वह गलत है. बाबा खुद को गोली मार ही नहीं सकते. इसके अलावा, जो बाबा के नाम पर सुसाइड नोट जारी किया गया है, वह उनका नहीं है. यह उनकी लिखावट नहीं है. वह कहती है कि जो व्यक्ति सब को डटे रहने की सलाह देता हो, वह खुद को मार ही नहीं सकता.

बताया जाता है कि पानीपत के अस्पताल में बाबा जी के देहांत के बाद उनके पार्थिव शरीर को पहले करनाल उनके डेरे ले जाया गया और इसके बाद पोस्टमार्टम के लिए अस्पताल ले जाया गया. इसे संयोग कहा जाए या ….? बाबा राम सिंह जी प्रखर राष्ट्रभक्त थे और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यक्रमों में भी  भाग लेते रहते थे. इसी कारण वह खालिस्तानियों और कट्टरपंथियों की आंखों में खटकते थे. उग्र सिक्ख संगठन डेरों के धुर विरोधी हैं और इनमें आपसी लड़ाई इतनी ज्यादा है कि ये एक-दूसरे को फूटी आंख भी नहीं सुहाते.

इस्लामिक कट्टरपंथियों की तरह उग्र सिक्ख भी कई सिक्ख संप्रदायों को सिक्ख तक नहीं मानते और आपस में उलझे रहते हैं. बाबा राम सिंह जी केवल सिक्ख ही नहीं, बल्कि समस्त समाज के सम्मानित संत थे. उनकी मौत की सच्चाई देश के सामने लाने के लिए पुलिस प्रशासन को हर पक्ष की गहनता से जांच करनी होगी.

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