पुणे. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अखिल भारतीय कार्यकारिणी के सदस्य भय्याजी जोशी ने कहा कि एक निर्दोष समाज सभी तरह की विषमताओं से मुक्त समाज होता है. ऐसा निर्दोष समाज आवश्यक है.
भय्याजी जोशी रविवार को डेक्कन एजुकेशन सोसाइटी के फर्ग्यूसन कॉलेज और दलित इंडियन चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज (डिक्की) के सहयोग से ‘दलित इतिहासाचे आधुनिक शिल्पकार’ नामक मराठी पुस्तक के विमोचन कार्यक्रम में संबोधित कर रहे थे.
सुदर्शन रामबद्रन और डॉ. गुरु प्रकाश पासवान द्वारा लिखित और पेंगुइन रैंडम हाउस द्वारा प्रकाशित प्रसिद्ध अंग्रेजी पुस्तक ‘मेकर्स ऑफ़ मॉडर्न दलित हिस्ट्री’ का मराठी में अनुवाद वरिष्ठ पत्रकार सुधीर जोगलेकर ने किया है और पुणे के परममित्र प्रकाशन द्वारा प्रकाशित किया गया है.
कार्यक्रम की अध्यक्षता डिक्की के संस्थापक अध्यक्ष पद्मश्री डॉ. मिलिंद कांबले ने की. प्रसिद्ध लेखक शरणकुमार लिंबाले कार्यक्रम के प्रमुख अतिथि थे. डेक्कन एजुकेशन सोसायटी के अध्यक्ष डॉ. शरद कुंटे, डिक्की वेस्ट इंडिया के अध्यक्ष अविनाश जगताप, प्रो. अनिरुद्ध देशपांडे, लेखक सुदर्शन रामबद्रन व डॉ. गुरु प्रकाश पासवान और अनुवादक सुधीर जोगलेकर मुख्य रूप से उपस्थित थे.
भय्याजी जोशी ने कहा, “हमारे सामाजिक जीवन में जितने भी प्रश्न हैं, वे सब हिन्दू समाज के प्रश्न हैं. हमारे इतिहास में जब-जब प्रश्न उठे, तब तब समाधान ढूंढने वाले भी आए हैं. उन्हें समाज का मार्गदर्शक माना जाता है. समाज में व्याप्त प्रश्नों के उत्तर मिल सकते हैं, लेकिन इसके लिए सबसे पहले सवालों की समझ होनी चाहिए. हम भारत माता के पुत्र हैं और हिन्दू हैं, यह हम सभी को कहना चाहिए. विविधता हमारे लिए अस्वीकार्य नहीं है, लेकिन हमें इसके आधार पर मतभेद पैदा नहीं करने चाहिए. यह महापुरुषों की भूमिका है और वही संघ की भूमिका है. बहुजन हिताय बहुजन सुखाय नहीं, बल्कि सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय, यह हिन्दू चिंतन है. पुस्तक के बारे में उन्होंने कहा कि यह लेखन हर किसी की अंतरात्मा को छू जाता है.
सुदर्शन रामबद्रन ने कहा, “हमें इतिहास के प्रति ईमानदार रहना होगा. इतिहास को पूरी तरह से निष्पक्ष होना चाहिए.” उन्होंने संविधान की प्रस्तावना का जिक्र करते हुए कहा कि अगर हमें समाज में कोई बदलाव लाना है तो इसकी शुरुआत हमें खुद से करनी होगी.
गुरुप्रकाश पासवान ने कहा, “हम डॉ. बाबासाहेब आम्बेडकर को केवल वंचितों के नेता के रूप में चित्रित करते हैं. बाबासाहेब की विरासत के साथ इससे बड़ा कोई अन्याय नहीं है. एक अर्थशास्त्री, दार्शनिक और संविधानविद के रूप में उनके व्यक्तित्व के कई पहलू थे. हमने बाबासाहेब को 14 अप्रैल और 6 दिसंबर तक सीमित कर दिया है. दलित महापुरुष और महानायिकाओं को केवल जन्मदिन और पुण्यतिथि पर रोने तक सीमित नहीं रखना चाहिए.” उन्होंने कहा कि दलित आंदोलन के मामले में महाराष्ट्र एक पवित्र भूमि है.
मिलिंद कांबले ने कहा कि डॉ. बाबासाहेब आम्बेडकर ने सामाजिक विचारों के साथ-साथ आर्थिक विचारों पर भी जोर दिया. लेकिन उनके बाद उनके आर्थिक विचारों को लेकर आंदोलन आगे नहीं बढ़ा. डिक्की ने समन्वय के माध्यम से आर्थिक विकास का एक नया विचार प्रस्तावित किया. डॉ. बाबासाहेब आम्बेडकर और भगवान बुद्ध के विचारों के अनुसार समन्वय से ही हम विकास को प्राप्त कर सकते हैं.
अनुवादक सुधीर जोगलेकर ने पुस्तक के बारे में कहा कि इस पुस्तक के प्रत्येक व्यक्तित्व ने बहुत कुछ सहा, लेकिन उन्होंने राष्ट्रीय जीवन से अपना नाता नहीं छोड़ा. यही इस पुस्तक की सबसे बड़ी विशेषता है. कार्यक्रम का सूत्र संचालन प्रा. सुनील भंडगे ने किया, जबकि अविनाश जगताप ने धन्यवाद ज्ञापन किया.
वरिष्ठ लेखक शरणकुमार लिंबाले ने दलितों और गैर-दलित हिन्दुओं के बीच संबंधों पर मार्मिक टिप्पणी करते हुए कहा, “दलित साहित्य और दलित आंदोलन यहां के प्रगतिशील हिन्दू समाज के स्वागत के कारण फले-फूले हैं. हिन्दू समाज ने समा लिया है. दलित लेखक और दलित कार्यकर्ताओं द्वारा हिन्दू समाज को धन्यवाद देने का समय अब आ गया है. हम हिन्दू समाज की नहीं, बल्कि हिन्दू समाज में व्याप्त विषमता की आलोचना करते हैं. हम ज़ोर से बोलते हैं क्योंकि हमने हज़ारों वर्षों से अन्याय सहा है. लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हम हिन्दू विरोधी हैं. हम चाहते हैं कि समाज सुंदर हो. अगर किसी को बदलना हो तो पहले उसका मन बदलना होता है. मन बदलने के लिए पहले उससे बात करनी पड़ती है. डॉ. बाबासाहेब ने अपना पूरा जीवन एक हिन्दू के रूप में जिया. हिन्दू समाज ने बहुत प्रगति की है. लेकिन अभी और भी बहुत कुछ बदलना बाकी है. हमें एक रथ के दो पहियों की तरह आगे बढ़ना होगा.” दलितों ने हजारों वर्षों से उत्पीड़ित होने के बावजूद कभी हथियार नहीं उठाया, यह उल्लेख करते हुए उन्होंने दलित कार्यकर्ताओं से भी प्रश्न किया कि हम कब तक लड़ते रहेंगे.