जयपुर. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ राजस्थान क्षेत्र प्रचारक निम्बाराम ने जयपुर में आयोजित पुस्तक विमोचन कार्यक्रम में कहा कि किसी कवि ने तब लिखा था –
गोरा शासन भी भारत के प्राणों से खुलकर खेला था.
तुम कहते विद्रोह, अरे सन् 57 बलि का मेला था..
स्वाधीनता संग्राम 1857 के पहले से शुरू हुआ. स्वाधीनता की बलिवेदी पर लाखों प्राण प्रसून चढ़े हैं. सेठ साहूकारों से लेकर किसान, मजदूर, जनजातीय समाज व पुरूष ही नहीं, महिलाएं भी इसमें शामिल थीं. तीन लाख से अधिक लोगों ने यह स्वतंत्रता संग्राम लड़ा. महात्मा गांधी तो 1915 में आए. इससे पहले डॉ. हेडगेवार स्वयं क्रांतिकारियों के नेता थे, जिन्होंने आगे चलकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की. जो लोग आज भारत जोड़ने की बात करते हैं, तो सवाल उठता है कि तोड़ा किसने. हम तो अखंड भारत के पुजारी हैं. विभाजन केवल राष्ट्र का ही नहीं हुआ, बल्कि राष्ट्रगीत वंदेमातरम का भी हुआ और राष्ट्र का ध्वज भी बदल दिया गया.
लेखक याजवेंद्र यादव द्वारा लिखित पुस्तक ‘तुष्टिकरण की यात्रा 1921-2021-सेक्युलर्स एंड लिबरल्स’ पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यह पुस्तक एक प्रकार से शोध ग्रंथ है. तुष्टिकरण का सिलसिला थमा नहीं है.
मुख्य अतिथि अखिल भारतीय राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ के अध्यक्ष जे.पी. सिंघल ने कहा कि जो झूठ हजार बार बोला जाए, वह सही माना जाने लगता है. आज का जमाना सोशल मीडिया का है. यहां एक शब्द तक वायरल करवा दिया जाता है. वायरल करने वाले भारत के बाहर से भी इन बातों का संरक्षण मांगने लगते हैं. पश्चिमी देशों का सहारा लेते हैं. पश्चिम के देश लिबरल्स को फंडिंग करते हैं और घृणा फैलाने का प्रयत्न करते हैं. इसीलिए जब प्रधानमंत्री ने एनजीओ का ऑडिट करवाने की बात कही तो हाहाकार मच गया. पहले हर मंच पर लिबरल्स ही नजर आते थे. उन्होंने कहा – पुस्तक में कई अंश संकलित किए गए हैं, जो सराहनीय हैं. पुस्तक तुष्टिकरण के बारे में विस्तार से चर्चा करती है.
कार्यक्रम के प्रारंभ में लेखक याजवेंद्र यादव ने पुस्तक की विषय वस्तु पर प्रकाश डाला. उन्होंने बताया कि मूल पुस्तक अंग्रेजी में लिखी गई. अब इसका हिन्दी में अनुवादित संस्करण प्रकाशित हुआ है.