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हमें लावारिस की मौत नहीं मरना ….

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योगिता साळवी

राजीव गांधी नगर परिसर. २० वर्ष पहले अनधिकृत बस्ती की झुग्गियां तोड़ने महापालिका अधिकारी यहां आए थे. बस्ती के बच्चों से लेकर बूढ़ों तक सभी ने, महिलाओं ने पत्थर हाथ में लेकर उन्हें भगा दिया. ऐसा सात आठ दिन तक चला. आखिर राजीव गांधी के नाम से यह बस्ती बच गयी. इस बस्ती के बहुत से लोग सूअर पकड़ने वाले लोग थे. इसीलिए बस्ती से सभी दूर ही रहा करते थे. कुछ वर्ष पहले यहां पर नवबौद्ध रहने लगे. अब बस्ती कॉस्मोपोलिटिन हो गयी है. बस्ती में सब के अलग-अलग समूह. हर एक जाति ने अपना समूह बना लिया है. एक समूह दूसरे के बारे में हमेशा संदिग्ध दृष्टि रखता है. चुनाव के समय यहां पर दीवाली होती है. पर, कोरोना संकट के दौरान किसी का ध्यान इस बस्ती पर नहीं गया.

कोरोना संकट के दौरान राजीव गांधी नगर परिसर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जनकल्याण समिति द्वारा कुछ जरूरतमंद विधवा महिलाओं को राशन दिया. यह बात बस्ती की अन्य महिलाओं को पता चली तो चार-पांच औरतें दरवाजे पर आईं और कहने लगीं हमें भी कुछ दे दो. एक वृद्ध महिला की आंखों का पानी भी सूख चुका था, लॉकडउन के कारण दोनों बेटों के पास रोजगार नहीं था. महिला की आठ वर्षीय नाती भी उसके साथ रह रही थी. दो दिनों से पानी पीकर उसने दिन बिताए थे. महिला ने कहा, हम तो जैसे तैसे रह लेंगे. पर, बच्ची को भूख लग रही है. हमें राशन दे दो. मैंने कूड़ेदान में भी देखा पर खाने लायक झूठा, बचा हुआ कुछ नहीं मिला. महिला की अवस्था देखकर बहुत बुरा लगा. हमने तुरंत उसके साथ अन्य औरतों को राशन किट प्रदान किये, उनसे पूछा ‘राजीव गांधी’ में वातावरण कैसा है? एक महिला ने कहा, आप ही आकर देख लो….

हम बस्ती में पहुंचे. ऑटो रिक्शा की लम्बी लाइन लगी थी. लॉकडाउन के कारण ऑटो चलाने की अनुमति नहीं थी. ऑटो रिक्शा में युवा लड़के बैठे हुए थे. हर एक रिक्शा छह-सात लड़के. ना मास्क था, ना शारीरिक दूरी. बस्ती में कोई जा नहीं रहा था. मुझे देखकर वे आश्चर्यचकित हुए. उन्होंने पूछा, कौन चाहिए? मैंने कहा, मुझे कोरोना की जानकारी चाहिए, दे सकते हो? उन्होंने कहा हमें पता नहीं. आप बड़े लोगों से पूछो. आगे साईं बाबा मंदिर में २०-२५ महिलाएं बैठी थीं. इनमें से अनेक औरतें झाड़ू-पोछा, बर्तन करने वाली थी तो कुछ औरतों का सूअर पालन का पारंपरिक व्यवसाय था. उनमें से किसी ने मास्क नहीं लगाया था. उनसे कहा, मुझे आपसे बात करनी है.

एक औरत ने पूछा क्या देने आई हो? उस के आस-पास बैठी सभी औरतों ने शोर करना शुरू किया. हमें भी चाहिए. मैंने उनसे कहा, मैं कुछ देने नहीं आई हूँ. आपसे कोरोना के बारे में थोड़ी जानकारी लेने आई हूँ. बताओगी? कुछ औरतों ने कहा – चीनी लोगों ने चमगादड़ खाया, इसलिए कोरोना हुआ. मुर्गा, बकरा, सूअर खाने के आलावा चमगादड़ खाया, इसलिए ऐसा हुआ…. यह कहकर हंसने लगीं.

मेरी समझ में आया, बस्ती में कोरोना संकट के प्रति गंभीरता नहीं थी. मैंने पूछा आपका कैसे चल रहा है. एक औरत ने कहा, कोरोना के कारण सभी मर्द घर पर हैं. सभी घर पर हैं तो झगड़े होते हैं, मारपीट होती है. एक तो पैसा नहीं मिल रहा. बचे हुए पैसे इस्तमाल हो रहे हैं. मटन रोज कैसे बनेगा? हमारे मर्दों को घासफूस पसंद नहीं. मांस-मछली चाहिए, दारू चाहिए. नहीं मिला तो तकलीफ होती है. इस पर दूसरी औरत ने कहा, नहीं, ऐसा नहीं है. मोदी जी ने लॉकडाउन में दारू बंद करवाई यह बहुत अच्छा हुआ. शादी को 15 साल हुए मैंने अपने मरद को नशा करते हुए ही देखा है. अब वो होश में रहता है. मोदी जी को लम्बी आयु दे. लॉकडाउन के कारण दारूबंदी (शराब) पर बस्ती की महिलाओं ने आनंद व्यक्त किया.

मैंने पूछा आपके व्यवसाय का क्या हुआ? कोरोना से डर लगता है? उन्होंने कहा जिसने मुंह दिया, वही खाना भी देगा. मरना तो सभी को है ही. वो जब होना है तब होगा. बस्ती के एक संवेदनशील लड़के प्रदीप काम्बले ने कहा – मौसी मौत तो जब आनी है, तब आएगी. पर कोरोना से मरे तो डेडबॉडी भी घर पर नहीं आती. पैक कर के कहीं भी ले जाकर जला देते है. ना कोई मुंह में गंगाजल डालता है और न ही अंतिम स्नान. ना कोई रामनाम सत्य कहकर कंधा देता है. लावारिस की तरह मौत आती है. वहां पर बैठी सभी चाची, मौसी, बुआ, ये सुनकर डर गयीं. नहीं चाहिए हमें ऐसी मौत. सूअर, मुर्गा मर जाए तो भी हम घर में सभी रीती रिवाज निभाते हैं. ऐसी मृत्यु हमें नहीं चाहिए.

इस पर मैंने कहा, नहीं चाहिए तो कोरोना से बचाव के सभी नियम का पालन कीजिये. उन्हें कोरोना से संबंधित निर्देशों की जानकारी दी. सभी औरतें कहनें लगी, हम उसे (कोरोना) यहां पैर नहीं रखने देंगे. हम पॉव-बटर खाने वाले नाजुक लोग नहीं हैं. मेहनत कर गन्दगी संभालते हैं. सूअर को कोरोना होता है क्या? अगर उसे नहीं होता तो हमें भी नहीं होगा. तुमने जैसे बताया हम वैसा ही करेंगे. हमें लावारिस की मौत नहीं मरना है.

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जनकल्याण समिति और भाजपा द्वारा संचालित सेन्ट्रल किचन से प्रदीप काम्बले ने बस्ती में रोज सुबह-शाम फूड पैकेट का वितरण किया. जनकल्याण समिति द्वारा राशन किट भी दिए गए. बस्ती में कोरोना संक्रमण ना के बराबर है. एक दो लोग संक्रमित हुए और ठीक भी हो गए.

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