हम प्रकृति को देव मानते हैं, अन्य देशों में ऐसा नहीं है – स्वामी अवेधशानंद गिरी जी महाराज
भारत ने सदियों से प्रकृति के संरक्षण का संदेश पूरी दुनिया को दिया है – श्रीश्री रविशंकर
प्रकृति वंदन कार्यक्रम में लाखों परिवारों ने पर्यावरण संरक्षण का संकल्प लिया
नई दिल्ली. रविवार के दिन लाखों परिवारों ने एक साथ आकर प्रकृति मां के प्रति आभार व्यक्त किया तथा प्रकृति के संरक्षण का संकल्प लिया. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की पर्यावरण संरक्षण गतिविधि तथा हिन्दू आध्यात्मिक एवं सेवा संस्थान के संयुक्त तत्वाधान में रविवार सुबह 10 से 11 बजे तक प्रकृति वंदन कार्यक्रम का आयोजन किया गया. कार्यक्रम का आयोजन वर्चुअल रूप में किया गया था. परिवारों ने अपने-अपने घर पर, अथवा समीप स्थित बाग में पेड़ या पौधे के समक्ष बैठ कर आरती व वंदन किया. भारत में 582 स्थानों पर प्रकृति वंदन कार्यक्रम किया गया. इसके अलावा विश्व के 15 देश भी प्रकृति वंदन कार्यक्रम से जुड़े. एचएसएसफ से प्राप्त अभी तक की जानकारी के अनुसार 12 लाख से अधिक परिवारों ने प्रकृति वंदन कार्यक्रम के लिए पंजीकरण करवाया था. संस्थान की ओर से बताया गया कि बिना पंजीकरण के भी हजारों परिवारों ने प्रकृति वंदन में भाग लिया. विभिन्न सोशळ मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर लाइव प्रसारण किया गया.
प्रकृति वंदन कार्यक्रम के लिए प्रधानमंत्री का संदेश
प्रकृति वंदन कार्यक्रम के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने संदेश में कहा कि पर्यावरण संरक्षण हमारी संस्कृति का आधारभूत मूल्य है. ऐसे में वे 130 करोड़ भारतीयों के प्रयासों की सराहना करते हैं. प्रधानमंत्री ने जनता के बीच जागरूकता लाने के लिए निरंतर प्रयासों की पहल की सराहना कर जैविक विविधता की रक्षा करने हेतु किये जा रहे निरंतर प्रयासों के लिए प्रसन्नता प्रकट की. प्रधानमंत्री ने इस संदेश में कार्य की सराहना और प्रशंसा करते हुए, प्रेरणा के लिए आयोजकों को बधाई दी.
हम प्रकृति को देव मानते हैं, अन्य देशों में ऐसा नहीं है
महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरी जी महाराज ने कहा कि कल्याणी मोक्षदा शस्य श्यामला भारत भूमि के ऋषि मुनियों का ध्यान करते हुए पुण्य सलिला तीर्थों का स्मरण करते हुए गुरू परंपरा का पावन पुण्य स्मरण करते हुए आप सभी का हद्य से अभिनंदन करता हूं.
हम प्रकृति को देव मानते हैं, अन्य देशों में ऐसा नहीं है. हम अग्नि, वायु, जल, धरती, निहारिका, अंबर, नक्षत्रों को देवता मानते हैं. हमारे यहां वृक्ष देव है. घास का तिनका गणपति पूजा में पहले चढ़ता है. फल-फूल, वन्य औषधियां, बेल पत्र, तुलसी, इनके बिना हमारा कोई जीवन नहीं. हमारे उत्सव, मेले, कुंभ स्नान नदियों के किनारे ही सिद्ध होते हैं. हमारी संस्कृति में तीन शब्द हैं – तर्पण, अर्पण, समर्पण. ये सारे नदियों के तट पर ही संपन्न होते हैं.
हम प्रकृति से प्रेम करें, उससे हमें प्राण मिलते हैं, जीवन मिलता है, औषधि देती है, उसके बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती. मर्यादा केवल भक्तों के लिए ही नहीं, भगवान भी मर्यादाओं का पालन किया है. तो हम भी मर्यादाओं का सम्मान करें. भगवान से सर्वविधि कल्याण की प्रार्थना करते हुए शुभकामनाएं देता हूं.
भारत ने सदियों से प्रकृति के संरक्षण का संदेश पूरी दुनिया को दिया है
आध्यात्मिक धर्मगुरु श्रीश्री रविशंकर ने कहा कि परमात्मा प्रकृति में लीन हैं, जैसे तिल में तेल वैसे ही सारे संसार में ईश्वर है. प्रकृति की पूजा ईश्वर की पूजा है. हम सबको प्रकृति का संरक्षण करना आवश्यक है. भारत ने सदियों से यह संदेश पूरी दुनिया को दिया है. यहां के पर्वत, नदियों, वृक्षों में परमात्मा है, सूर्य व चांद में परमात्मा है. जीव-जन्तु में परमात्मा देखना, मनुष्यों में परमात्मा देखना है. ये सुंदर प्रकृति हमारी है. इसके संरक्षण की जिम्मेदारी भी हमारी है. इसलिए हर एक मानव प्रकृति के संरक्षण की प्रतिज्ञा ले. इस प्रकार भारत पर्यावरण की दृष्टि से दुनिया का आदर्श देश बनकर उभर आएगा. अंधविश्वास से नहीं, प्रकृति की पूजा भाव से होती है. अपने ह्दय में भाव रखें और उसकी शुद्धता को बरकरार रखें तो हम प्रकृति की सरंक्षण को बचाए रखेंगे. हमारे देश में लाखों गांव हैं. यदि हर गांव के तालाब शुद्ध व पवित्र जल का स्त्रोत बन जाएं, तो देश में कहीं भी पानी का हाहाकार नहीं हो सकता.
स्वाभिमान जगाने के लिए हमें आत्मनिर्भर होना चाहिए और आत्मनिर्भर बनने के लिए स्वाभिमान जगाना पड़ेगा. स्वाभिमान का एक अंग है हमारी संस्कृति, हम उसे पहचानें और उसका सम्मान करें. हर घर में तुलसी का पौधा लगाते हैं, इसी प्रकार पांच-पांच पौधे लगाएं, जो हमारे जीवन काल के बाद भी जीवित रह सकें तो हम अमरत्व को पा सकेंगे. हर गांव को पवित्र बनाएं, समृद्ध बनाएं, शहर के हर मोहल्ले को शुद्ध रखें और पौधों का संरक्षण करते रहें, इस कार्य के लिए आपको सब को शुभकामनाएं देता हूं.
प्रकृति वंदन कार्यक्रम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने कहा कि हमारे पूर्वजों ने इस सत्य को समझा कि हम भी प्रकृति का एक अंग हैं. शरीर में जैसे शरीर के सब अंग काम करते हैं, तब शरीर चलता है. और जब तक शरीर चलता है, तब तक ही शरीर का कोई अंग चल पाता है. शरीर अंगों के कार्य पर निर्भर है, अंग शरीर से मिलने वाली प्राणिक ऊर्जा पर निर्भर हैं.
यह परस्पर संबंध सृष्टि का हमसे है, हम उसके अंग हैं, सृष्टि का पोषण हमारा कर्तव्य है. अपनी प्राण धारणा के लिए हम सृष्टि से कुछ लेते हैं, शोषण नहीं करते, सृष्टि का दोहन करते हैं. यह जीने का तरीका हमारे पूर्वजों ने समझा और केवल एक दिन के नाते नहीं, एक देह के नाते नहीं तो पूरे जीवन में उसको रचा बसा लिया. हमारे यहां, स्वाभाविक कहा जाता है कि शाम को पेड़ों को मत छेड़ो, पेड़ सो जाते हैं. पेड़ों में भी जीव है, इस सृष्टि का वो हिस्सा है. आधुनिक विज्ञान का ये ज्ञान हमारे पास आने के हजारों वर्ष पहले से, हमारे देश का सामान्य अनपढ़ आदमी भी जानता है, पेड़ को शाम को छेड़ना नहीं चाहिए.
हमारे यहां नागपंचमी है, हमारे यहां गोवर्धन पूजा है. हमारे यहां तुलसी विवाह है, इन सारे दिनों को मनाते हुए आज के संदर्भ में उचित ढंग से मनाते हुए, हम सब लोगों को इस संस्कार को अपने पूरे जीवन में पुनर्जीवित और पुनर्संचरित करना है. जिससे नई पीढ़ी भी उसको सीखेगी, उस भाव को सीखेगी. हम भी इस प्रकृति के घटक हैं. हमको प्रकृति से पोषण पाना है, प्रकृति को जीतना नहीं. हमें स्वयं प्रकृति से पोषण पाकर प्रकृति को जीवित रखना है.