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हमें एक देश, एक संस्कृति, एक राष्ट्र के रूप में देश को आगे ले जाना है – अरुण कुमार जी

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लुधियाना. 15 अगस्त को स्वाधीनता के 75 वर्ष पूर्ण होने पर स्वाधीनता का अमृत महोत्सव कार्यक्रम अमर बलिदानी सुखदेव थापर की जन्मस्थली नोघरा में आयोजित किया गया. इस अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह अरुण कुमार जी ने ध्वजारोहण किया. कार्यक्रम की अध्यक्षता डॉक्टर रेशम स्लो (स्लो हॉस्पिटल) ने की.

कार्यक्रम के मुख्य वक्ता अरुण कुमार जी ने कहा कि संकल्प की पूर्ति के लिए सर्वस्व अर्पित करने वाले अमर बलिदानियों के कारण आज का दिन अति महत्वपूर्ण है. मोहम्मद बिन कासिम ने 712 में पहली बार हमला किया. तब से ही तुर्क, अरब, मंगोल इत्यादि द्वारा 1000 साल तक आक्रमण होता रहा. लेकिन वह स्थाई विजय प्राप्त ना कर सके. ईसाइयत का भी आक्रमण हुआ. पुर्तगाली, फ्रेंच, डच, अंग्रेज भारत पर हमलावर के तौर पर आए. अंग्रेज अपनी चालाकी से देश को ईसाई राष्ट्र बनाने का षड्यंत्र रचा.

उन्होंने कहा कि 1757 से 1765 तक प्लासी- बक्सर युद्ध में ईस्ट इंडिया कंपनी स्थापित हुई. 1784 तिलका मांझी स्वतंत्रता संग्राम के सबसे पहले बलिदानी थे.

भारत की चारों दिशाओं से क्रांतिकारी देश की आज़ादी के लिये आगे बढ़े. पंजाब से सुखदेव थापर, भगत सिंह, मदनलाल ढींगरा, उधम सिंह, करतार सिंह सराभा, लाला लाजपत राय ने क्रांति को आगे बढ़ाया. संत समाज, संपादक, लेखक, साहित्यकार, कवि, अध्यापक, विज्ञानी, कलाकार, व्यापारी, किसान सभी देश के लिए लड़े. यह देशव्यापी लहर थी. धर्म और संस्कृति से प्रेरणा लेकर स्वतंत्रता सेनानी श्रृंखला आगे बढ़ रही थी. और  1000 साल के लंबे संघर्ष के बाद 1947 में हमने विजय प्राप्त की.

स्वधर्म, स्वदेशी और स्वराज इन तीनों को हमारी प्रेरणा मानते हुए संघर्ष निरंतर चलता रहा. अंग्रेजों का उद्देश्य ईसाईकरण था. अंग्रेज अपनी संस्कृति की श्रेष्ठता को स्थापित करने में लगे थे. लेकिन, भारत अंग्रेजों के हिसाब की मंडी नहीं बन सका.

सह सरकार्यवाह ने कहा कि 75 वर्ष की स्वतंत्रता की यात्रा में भारत ने सभी चुनौतियों को स्वीकार किया. आज का किसान पूरी दुनिया का पेट भरने में सक्षम है. ज्ञान- विज्ञान, प्रक्षेपास्त्र, परमाणु ऊर्जा में हम आत्मनिर्भर हैं. हमने पूर्व के युद्ध भी कम संसाधनों से लड़े और जीते. भारत प्रौधोगिकी में मैन्युफेक्चरिंग हब बन रहा है. अगले 25 साल में भारत को बहुत आगे ले जाना है. पाश्चात्य जीवन के अनुसरण की जगह स्व-संस्कृति, स्व-भाषा, स्व-धर्म द्वारा ही देश का विकास व राष्ट्रीय गौरव प्राप्त किया जा सकता है. मतांतरण पर रोक लगानी होगी. हमें एक देश, एक संस्कृति, एक राष्ट्र के रूप में अगले 25 वर्ष में देश को आगे ले जाना है. स्व के आधार पर समाज खड़ा होना चाहिए. विभाजन के समय जो क्षेत्र हमसे छूट गया, उन्हें पुनः स्मरण करना होगा. उन्हें प्राप्त करने का लक्ष्य रखना होगा.

अमर बलिदानी सुखदेव जब लायलपुर में पढ़ते थे तो वहां अनुसूचित जाति के बच्चों के लिये किताबों का इंतजाम किया. डीएवी कॉलेज की जगह नेशनल कॉलेज लाहौर को चुना ताकि स्वतंत्रता संघर्ष में हिस्सा लिया जा सके. अमर बलिदानी सुखदेव थापर जी ने जेब खर्च के पैसे से लक्ष्मीबाई का चित्र खरीदा और कहा कि मैं इसी रानी की तरह अंग्रेजों से लड़ूंगा. देश के लिये सर्वस्व समर्पण करने वाले इस महान देशभक्त के जीवन से प्रेरणा लेते हुए संकल्प करें कि हम भारत को पुनः विश्व गुरू बनाने में कार्यरत रहेंगे.

कार्यक्रम में इस्कॉन, जगन्नाथ फूड्स फॉर लाइफ, गोविन्द गौ धाम, भगवत सेवा परिवार, वृंदावन गौशाला, रामा चैरिटेबल हॉस्पिटल, संभव फाउंडेशन, न्यू यंग फाइव स्टार क्लब, शिव रात्रि महोत्सव कमेटी, श्री सनातन धर्म सभा प्राचीन गौशाला, दुर्गा माता मंदिर ने पूर्ण सहयोग दिया. कार्यक्रम के पश्चात सुखदेव जी के परिवारजनों, अशोक थापर व संदीप गोरा जी ने अरुण कुमार जी को स्मृति चिन्ह प्रदान किया. इस अवसर पर सुखदेव जी के जन्मस्थान की आगंतुक पुस्तिका में अरुण कुमार जी ने अपना अभिप्राय भी लिखा.

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