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भारत के स्वाभिमान से यह कैसी शत्रुता..?

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महाराणा प्रताप पर अमर्यादित टिप्पणी

भारत के शौर्य व स्वाभिमान के प्रतीक, हिन्दुआ सूरज महाराणा प्रताप का नाम सुनकर कौन वह पाषाण हृदय होगा जो राष्ट्रभक्ति से भावविभोर न हो जाए? महाराणा प्रताप व उनके साथियों के महान पराक्रम को जानकर हिमालय से लेकर हिंद महासागर तक विस्तृत भारत का एक–एक व्यक्ति गर्व से भर उठता है.

यद्यपि पराधीन मानसिकता से ग्रस्त व्यक्तियों के लिए महापुरुष भी विवाद का विषय हो सकते हैं. विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में घोटाले के आरोपों से चर्चा में आए राजस्थान के पूर्व शिक्षा मंत्री व कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा को महापुरुषों के विरुद्ध विवाद खड़े करने के लिए जाना जाता है. हाल ही में नागौर में आयोजित कांग्रेस के 2 दिवसीय प्रशिक्षण शिविर में गोविंद सिंह डोटासरा ने कहा कि महाराणा प्रताप व अकबर के बीच का संघर्ष धर्म के लिए नहीं, अपितु मात्र सत्ता का संघर्ष था. डोटासरा ने राष्ट्रभक्ति के प्रतीक महाराणा प्रताप को मात्र राज्य की सीमाओं के लिए युद्ध करने वाले सामान्य शासक के रूप में सीमित करने का निंदनीय प्रयास किया है.

महाराणा प्रताप के विषय में उनकी अनर्गल टिप्पणी नई बात नहीं है. पहले उन्होंने महाराणा की तुलना सीधे अकबर से करते हुए कहा था – “इतिहासकार ही बताएंगे कि महाराणा प्रताप या अकबर में से कौन महान था.” इस वक्तव्य की ध्वनि से प्रतीत होता है कि वह अकबर को महान बताना चाहते थे तथा अब महाराणा प्रताप को केवल राज्य की सत्ता के लिए रक्तपात करने वाले शासक के रूप में प्रस्तुत करने का प्रयास कर रहे हैं.

इसे मुस्लिम वोट बैंक को प्रसन्न करने के प्रयास के रूप में माना जा रहा है. इससे पूर्व शिक्षा मंत्री पद पर रहते हुए राजस्थान के पाठ्यक्रम से देशभक्त महापुरुषों को हटाने के प्रयास भी कर चुके हैं.

उनसे प्रश्न यह कि यदि महाराणा प्रताप को सत्ता ही चाहिए थी तो उन्होंने मुगलों से संधि स्वीकार क्यों नहीं की? क्यों अपने सीमित संसाधनों व सेना के साथ विशाल मुगल सेना से भिड़ गए? क्यों उन्होंने अकबर की अधीनता स्वीकार कर ऐश्वर्यपूर्ण जीवन बिताने की अपेक्षा स्वाधीनता का कंटकाकीर्ण मार्ग चुना?

महाराणा प्रताप मातृभूमि की रक्षा के लिए सर्व सुविधायुक्त महलों को छोड़कर वन-वन भटके तथा आजीवन धर्म की रक्षा हेतु सन्नद्ध रहे. इसी कारण से लोकमानस ने ‘हिन्दुआ सूरज’ कहकर उनकी अभ्यर्थना की है. महाराणा प्रताप, राणा पूंजा, भामाशाह तथा स्वामीभक्त चेतक के गीत आज भी गांव-गांव में गाए जाते हैं. महाराणा प्रताप का सिंहासन केवल महलों में नहीं, अपितु जन-जन के हृदय में है. इस सिंहासन पर प्रश्नचिह्न लगाने वालों को यह समझना चाहिए कि सूरज पर कीचड़ उछालने का प्रयास करने पर वह कीचड़ अपने ही ऊपर आ गिरता है.

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