दो दशकों से गरीब जरूरतमंदों की सेवा में रत आईजीएमसी सेवाभारती
शिमला (विसंकें). बीमारी व्यक्ति को मानसिक रूप से कमजोर कर देती है. और व्यक्ति आर्थिक रूप से कमजोर भी हो तो मनःस्थिति का अंदजा लगाया जा सकता है. अपनी नाममात्र की जमा पूंजी, जमीन से भी बीमारी के कारण हाथ धोना पड़ता है. ऐसे लोगों को संबल प्रदान कर रही है, इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज में कार्यरत सेवाभारती.
पहाड़ी क्षेत्रों में पेड़ से गिरने के मामले आते रहते हैं. पेड़ पर से पांव फिसलकर नीचे गिरने के कारण स्पाइन इंजरी होने के मामले अस्पतालों में पहुंचते हैं. सड़क दुर्घटनाओं में चोट लगने और गंभीर बीमारियों से ग्रसित लोगों को बेड सोर (शरीर में जख्म होना) हो जाते हैं. ऐसे में सामान्य बिस्तर के बजाय अल्फाबेड की जरूरत रहती है. किसी भी मरीज के लिए एक अल्फाबेड खरीदने का मतलब है कि पांच हजार रुपये का खर्च. कुछ दिनों की आवश्यकता के लिए इसे खरीदना सबके लिए संभव नहीं होता.
सेवाभारती द्वारा जरूरतमंद गरीब परिवारों को अल्फाबेड उपलब्ध करवाया जाता है. अस्पताल के साथ ही यदि चिकित्सकों ने घर पर इस बिस्तर पर आराम करने की सलाह दी है तो मरीज अल्फाबेड को घर ले जा सकता है. शुल्क के नाम पर केवल 100 रुपये का भुगतान करना होता है. अस्पताल में प्रतिदिन ऐसे मरीज आते हैं, जिन्हें अल्फाबेड पर लेटने की सलाह दी जाती है. किसी भी मरीज के साथ अभिभावक को भटकने की जरूरत नहीं है, केवल सेवाभारती से संपर्क करना होता है.
वर्तमान में सेवाभारती के पास 35 अल्फाबेड उपलब्ध हैं, जो जरूरतमंदों को दिये जाते हैं. इसके अलावा कम दरों पर एंबुलेंस सेवा भी संचालित की जा रही है. सेवाभारती के पास 300 सामान्य बिस्तर भी उपलब्ध हैं, जो अस्पताल में मरीजों को उपलब्ध करवाए जाते हैं.
जरूरतमंदों को पहुंच रहा लाभ
एक महीने से अधिक का समय हो गया है, मैं इस बिस्तर का उपयोग कर रहा हूं. रीढ़ की हड्डी से जुड़ी परेशानी है. बिस्तर से उठकर बैठना संभव नहीं है. इस बिस्तर को वापस करने को लेकर किसी ने कुछ नहीं पूछा है. – कर्म चंद, तत्तापानी.
मेरे छोटे भाई गगन को एक टांग में गैंगरीन हो गया था. एक के बाद एक तीन आप्रेशन हुए. इस दौरान अस्पताल में चिकित्सकों ने अल्फाबेड का उपयोग करने की सलाह दी. बारह दिनों तक अस्पताल में रहते हुए इस बिस्तर का इस्तेमाल किया. हमारे लिए ऐसा बिस्तर खरीदना संभव नहीं था.
– भूमि चंद, गांव-थाची, डाक-खेडी, तह-सुजानपुर, जिला-हमीरपुर.
मेरी माता को बेड सोर हो गए थे और शिमला में उनका आप्रेशन हुआ. बेड सोर में चिकित्सकों ने इस तरह के बिस्तर पर सोने की सलाह दी थी. कुछ दिनों के लिए ऐसा बिस्तर खरीदना मुमकीन नहीं था. केवल एक सौ रुपये में अल्फाबेड मिल गया. – ज्योति देवी, गांव- शंगवा, डाक- शौली, तह-रामपुर.
क्या होता है अल्फाबेड
अल्फाबेड में हवा का दवाब कम ज्यादा होता रहता है. यह बिजली से संचालित होता है. इसमें लगातार हवा का दवाब घटता-बढ़ता रहता है. ऐसे में मरीज एक स्थिति में नहीं रहता. परिणामस्वरूप बेड सोर और स्पाइन इंजरी वाले मरीजों को ऐसा बिस्तार उपयोग करने की सलाह दी जाती है.
केवल जन सेवा
हमें लगा कि अस्पताल में आने वाले हर दसवें मरीज को चिकित्सक अल्फाबेड पर लेटने की सलाह देते हैं. गरीब लोग कुछ दिनों के लिए इस प्रकार का बिस्तर खरीदने की स्थिति में नहीं होते. इसलिए वर्ष 2000 में सेवा भारती ने दस अल्फाबेड खरीदे. मरीज को जरूरत हो तो वह अल्फाबेड को घर ले जा सकता है और जितना समय जरूरत है, रख सकता है. सिक्योरिटी के तौर पर पंद्रह सौ रुपये लेते हैं और मरीज अथवा परिजन जैसे ही इसे लौटाते हैं, अग्रिम धनराशि वापस कर दी जाती है. अल्फाबेड के अतिरिक्त अस्पताल में मरीजों के साथ आने वाले परिजनों को सोने के लिए तीन सौ बिस्तर और टांग में चोटग्रस्त मरीजों के लिए बैसाखियों की व्यवस्था की गई है. — नरेंद्र ठाकुर, सचिव, सेवाभारती इंदिरागांधी अस्पताल.