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रामनवमी पर हिंसा के गुनाहगार कौन…?

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मृत्युंजय दीक्षित

देश उल्लास और उत्साह के साथ रामभक्ति के रंग में डूबकर रामनवमी का पर्व मना रहा था, उस समय कुछ कट्टरपंथी तत्व अपने राजनीतिक आकाओं की शह पर हिंसा का तांडव रच रहे थे. रामनवमी के पावन अवसर पर बंगाल, बिहार, झारखंड, तेलंगाना, और महाराष्ट्र तक जिस प्रकार से रामनवमी शोभायात्राओं, इनमें भाग लेने वाले रामभक्तों पर पथराव तथा हिंसा की गई, वह निंदनीय ही नहीं घृणित भी है. उस हिंसा को सही ठहराने वाले सूडो सेक्युलर लोगों का व्यवहार भी घृणित है, फिर वो चाहे कुछ राज्यों के मुख्यमंत्री ही क्यों न हों?

रामनवमी पर महाराष्ट्र के संभाजीनगर से प्रारम्भ हुई हिंसा बंगाल के हावड़ा से होती हुई बिहार के पांच जिलों और झारंखड के साहिबगंज तक पहुंच गई. भीषण उपद्रव और हिंसा के बाद महाराष्ट्र व गुजरात में तो स्थिति नियंत्रण में आ गई, लेकिन बिहार के पांच व बंगाल में कई क्षेत्रों में अब भी हिंसा लगातार जारी है. बिहार व बंगाल के उपद्रवियों को पता है कि उन्हें राजनैतिक संरक्षण प्राप्त है तथा वह अपने उद्देश्य को प्राप्त कर सकते हैं. यही कारण है कि बिहार के दंगाग्रस्त क्षेत्रों से हिन्दुओं के पलायन के हृदय विदारक वीडियो सामने आ रहे हैं.

भारत की राजनीति में सबसे बड़ा दुर्भाग्य यह है कि पहले तो सनातन हिन्दू समाज के पर्वों व उनकी शोभायात्राओें को हिंसक कट्टरपंथी तत्वों द्वारा निशाना बनाया जाता है और फिर उसके बाद उनके तथाकथित सेक्युलर नेता टीवी चैनलों पर आकर हिन्दू समाज और पीड़ित पक्ष को ही दोषी बताकर उपद्रवियों का मनोबल बढ़ाते हैं.

आज बंगाल व बिहार त्रस्त है. दोनों ही राज्यों में बांग्लादेशी घुसपैठियों व रोहिंग्याओं की बाढ़ आ गई है, जिसके कारण स्थानीय स्तर पर जनसंख्या संतुलन बिगड़ गया है. यही लोग दोनों ही राज्यों में अशांति का सबसे बड़ा कारण हैं. स्थानीय छद्म धर्मनिरपेक्ष दल अपने निहित स्वार्थों के चलते इनको प्रश्रय दे रहे हैं और इनकी अराजक गतिविधियों का समर्थन कर रहे हैं.

बंगाल में मुख्यमंत्री की हरकतों व बयानबाजी के कारण ही हिंसा भड़की. रामनवमी के पहले वह अपनी राजनीति चमकाने के लिए केंद्र सरकार के विरुद्ध धरने पर बैठ गईं और फिर बयान दिया कि वह रामनवमी की शोभायात्रा को रोकेंगी नहीं, लेकिन यदि किसी प्रकार का कोई उपद्रव या हिंसा होती है तो वह बख्शेंगी भी नहीं. माना जा रहा है कि उनके बयानों के कारण ही उपद्रवियों का मनोबल बढ़ा. हावड़ा व अन्य स्थानों पर हिन्दू समाज को रामनवमी मनाने से रोकने और डराने – धमकाने के लिए पत्थरबाजी की गई, बम फेंके गये, वाहनों व दुकानों को आग लगाई गई और जमकर लूटपाट की गई. बंगाल के वर्धमान जिले में एक बीजेपी नेता की हत्या कर दी गई.

आजकल हिन्दू विरोधियों और उनके आकाओं ने हिंसा और उसके बाद के भाषणों का एक नया पैटर्न बना लिया है. पहले कट्टरपंथी पत्थरबाजी, हमले और हिंसा करते हैं, तत्पश्चात उनके आका बयान देते हैं कि शोभायात्रा में शामिल लोग जोर -जोर से डीजे बजा रहे थे या फिर वो मुस्लिम बाहुल्य वाले क्षेत्रों से क्यों निकले या फिर किसी मस्जिद के सामने नारे क्यों लगाए? यह स्वार्थ सिद्धि का एक खतरनाक पैटर्न है. बंगाल के हावड़ा तथा अन्य जिलों में हुई हिंसा के लिए मुख्यमंत्री ममता बनर्जी हिन्दू समाज पर ही आरोप मढ़ रही हैं और अंतिम जांच रिपोर्ट आने से पूर्व ही जज बन गयी हैं.

भारतीय जनता पार्टी ने हिंसा की जांच एनआईए व सीबीआई से कराने के लिए हाईकोर्ट में याचिका दायर की है, गृहमंत्री अमित शाह ने बंगाल के राज्यपाल से पूरी रिपोर्ट मांगी है. बंगाल की मुख्यमंत्री हर दंगे के बाद यही दावा करती हैं कि भारतीय जनता पार्टी ही बंगाल को बदनाम करने के लिए बाहर के लोगों को बुलाकर दंगा कराती है और यह भूल जाती हैं कि प्रदेश में दंगा न हो पाए, इसकी जिम्मेदारी स्वयं उन पर है, जनता उनके इस गैर जिम्मेदार व्यवहार को देख रही है.

यह वही ममता बनर्जी हैं जो उप्र के हाथरस में हुई दुर्भाग्यपूर्ण आपराधिक घटना का राजनीतिक लाभ लेने के लिए हाथरस जाना चाह रही थीं. टीएमसी के सांसद भी हाथरस आने के लिए खूब हंगामा मचा रहे थे और लोकतंत्र की दुहाई दे रहे थे. लेकिन जब उनके अपने राज्य में हालात दयनीय हैं, तब वह और उनका प्रशासन भाजपा नेताओं को ही नहीं वरन स्वयं राष्ट्रपति के प्रतिनिधि राज्यपाल को हावड़ा सहित हिंसा प्रभावित क्षेत्रों में जाने से रोक रहे हैं.

बिहार की स्थिति भी बंगाल से बहुत अलग नहीं है. रामनवमी के पावन अवसर पर बिहार के बिहार शरीफ सहित पांच जिलों में हिंसा का तांडव हुआ. हिंसा का पैटर्न बंगाल जैसा ही था. यहां भी स्थिति अत्यंत दयनीय हो चुकी है. बिहार शरीफ वही जिला है, जहां से विगत दिनों भारत को 2047 में इस्लामिक राष्ट्र बनाए जाने का विजन डॉक्यूमेंट मिला था. बिहार के उपद्रव ग्रस्त जिलों में हालात इतने अधिक बदतर हैं कि पुलिस की जबर्दस्त मुस्तैदी के बाद भी बमबाजी हो रही है व गोलियां चल रही हैं.

गृहमंत्री अमित शाह ने बिहार के राज्यपाल से बात करने के साथ ही अर्धसैनिक बलों की टुकड़ियां भेजने की घोषणा की है, जिनमें से कुछ पहुंच भी गई हैं. बिहार में गृहमंत्री अमित शाह की उपस्थिति और अर्धसैनिक बलों का पहुंचना मुख्यमंत्री नीतिश कुमार और राजद नेताओं को पसंद नहीं आ रहा, इसलिए इन लोगों ने दंगाइयों की जगह भाजपा पर हमला बोल दिया है. बिहार की हिंसा पर जदयू के एक नेता का बयान आया कि वह बिहार को गुजरात नहीं बनने देंगे? जबकि राजद नेता का बयान आया कि हिंसा, घृणा और घृणा की राजनीति केवल बीजेपी का ही काम है. दंगों में अपना सब कुछ गंवाने वाला हिन्दू समाज इससे हतप्रभ है.

बंगाल से बिहार तक रामनवमी पर जो हिंसा हो रही है, वह न केवल हिन्दू वरन भारत विरोधी टूलकिट का ही अंग है. बिहार से बंगाल तक की यह हिंसा पूरी तरह सुनियोजित है, जिसे चुनिंदा दलों का समर्थन प्राप्त है. यह प्रायोजित हिंसा उस समय की जा रही है, जब भारत जी20 की अध्यक्षता कर रहा है. इन प्रायोजित दंगों के माध्यम से देश की छवि को संपूर्ण विश्व में खराब किये जाने की चेष्टा हो रही है.

हिन्दू समाज के सभी पर्व उल्लास, उत्साह, प्रसन्नता के पर्याय हैं, उनकी शोभायात्राएं उमंग से भरी होती हैं. उनमें गीत संगीत एक स्वाभाविक गुण की तरह होता है. वे गाते बजाते चलते हैं, किसी पर पत्थर नहीं फेंकते. हिन्दू समाज के पर्वों को अशांत करना व पर्व मना रहे लोगों पर हमला करना बिना सुनियोजित षड्यंत्र के संभव नहीं है.

हर व्यक्ति को यह तथ्य समझना चाहिए कि यदि धर्म के नाम पर विभाजित किये जाने के बाद भी आज भारत धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक राष्ट्र है तो केवल इसलिए कि हिन्दू समाज अभी भी बहुसंख्यक है. हिन्दू समाज के लोग कभी भी किसी अन्य मतावलंबी का अहित नहीं चाहते. यह विश्व का सर्वाधिक सहिष्णु समाज है.

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