सुनीला सोवनी
पूरे समाज को सुखी और बलशाली बनाकर भारत को परमवैभव के शिखर पर विराजमान करने के विराट संकल्प की पूर्ति के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना विजयादशमी के दिन १९२५ में हुई थी. संघ का विस्तार हुआ और उसका प्रभाव महिलाओं के मन पर भी पड़ने लगा. आत्मसंरक्षण की क्षमता महिलाओं में कैसे आए? उनका जीवन आत्मनिर्भर कैसे बने? उनका आत्मबल किस मार्ग से जागृत होगा? इन प्रश्नों को लेकर लक्ष्मीबाई केलकर चिंतन करती रहती थीं. संघ की अनुशासित शाखाओं को देखा. इन शाखाओं के माध्यम से लड़कों में हुए सकारात्मक परिवर्तन की अनुभूति उन्हें मिली. इसी मार्ग से अगर हमने मार्गक्रमण किया तो महिलाओं के लिये जो कार्य हम करना चाहते हैं, उसे दिशा मिल सकेगी, इस अपेक्षा से लक्ष्मीबाई केळकर संघ संस्थापक पूजनीय डॉ. हेडगेवार जी से मिलने गईं.
संघ शाखाओं में महिलाओं को प्रवेश क्यों नहीं मिलता, इसका संतोषजनक उत्तर मिलने के बाद, मौसी जी ने संघ द्वारा स्वीकृत सुनिश्चित ध्येय, स्वीकार की गई कार्यपद्धति को ध्यान में रखकर उसे आत्मसात किया. वंदनीय मौसी जी ने १९३६ में विजयादशमी के शुभ मुहूर्त पर हिन्दू राष्ट्र के पुनर्निर्माण के लिये राष्ट्र सेविका समिति का गठन किया.
अंग्रेजी के आर.एस.एस. इन आद्याक्षरों से साधर्म्य रखने वाली राष्ट्र सेविका समिति के कार्य की शुरुआत राष्ट्रीय विचारों से कटिबद्ध महिला कार्य का सही अर्थों में मंगल प्रारंभ सिद्ध हुआ. राष्ट्र सेविका समिति के कार्य का विस्तार आज देश कें हर राज्य में और लगभग हर जिले में हो गया है. पांच हजार से अधिक शाखाएं, एक हजार से अधिक सेवा प्रकल्प, 52 शक्तिपीठ समिति कार्य की पहचान बन गयी है.
समिति की शाखाओं में जाने वाली सेविकाओं ने देश के विभाजनकाल में सुरक्षा की जिम्मेदारी निभायी. १९६२, १९६५ और १९७१ के युद्धकाल में और आपातकाल जैसे काले और कठिन दौर में समर्पण भाव से काम किया. किसी भी प्राकृतिक अथवा मनुष्य निर्मित संकटकाल में तुरंत सहायता कार्य का प्रारंभ करना सेविकाओं के स्वभाव का भाग बन गया है.
संघ विस्तार के साथ संघ विचारों के कार्यकर्ताओं ने भारतीय जनसंघ, भारतीय मजदूर संघ, विश्व हिन्दू परिषद, वनवासी कल्याण आश्रम, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, किसान संघ, इन संस्थाओं के रूप में जो प्रचंड कार्य निर्माण किया है, इन सभी क्षेत्रों में महिलाओं ने अपना दायित्व निभाया है, ऐसा इन संगठनों का इतिहास कथन करता है.
सिर्फ इतना ही नहीं, इसके आगे जाकर किसी भी छोटे से गांव से लेकर विश्व स्तर पर जो भी आयाम संघ विचार से कार्यरत हुए, उन सभी कार्यों में, उस निर्णय प्रक्रिया में और नेतृत्व में महिलाओं का भी योगदान है, यह महत्त्वपूर्ण बात है. आपातकाल में जब पुरुष कार्यकर्ता मीसा कानून के अंतर्गत कारागृह में बंदी थे, तब महिलाओं ने घर संभाला. उसके साथ-साथ सत्याग्रही बनकर अपने दुर्गा रूप का परिचय दिया. आज लगभग डेढ़ लाख घरों में संघ के सेवा प्रकल्प चलते हैं. इस में हर एक प्रकल्प से महिला शक्ति जुड़ गई है. इसका अनुभव हर कोई किसी भी जगह ले सकता है. ग्राम विकास, कुटुंब प्रबोधन, धर्मजागरण, सामाजिक समरसता गतिविधियों में महिलाएं अपना दायित्व पूर्ण क्षमता से निभा रही हैं.
हाल ही में विविध क्षेत्रों में कार्यरत महिलाओं का सर्वेक्षण किया. सात हजार कार्यकर्ताओं ने 29 राज्यों के 465 जिलों में यह सर्वेक्षण किया. स्त्री अध्ययन प्रबोधन केंद्र दृष्टि की ओर से यह सर्वेक्षण संपन्न हुआ. भारतीय संस्कृति में स्त्री शक्ति का अपार महिमा का कथन किया गया है. यह शक्ति सिर्फ मूर्तिबद्ध नहीं है. वह अत्यंत क्रियावान है. संघ स्वयंसेवक के घर-घर में उसका अस्तित्व है. संघ कार्य में वह सक्रिय है. संघ कार्य को पूर्णत्व देने वाली वह एक राष्ट्रशक्ति है.
(स्वतंत्र पत्रकार एवं अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख, राष्ट्र सेविका समिति)