नई दिल्ली. 21वीं सदी में दक्षता विकसित करना ज़रूरी है. दक्षता के बिना डिग्री का कोई महत्व नहीं रहेगा. अब स्थितियाँ बदल चुकी हैं. सम्पर्क की निरंतरता शिक्षकों के लिए महत्वपूर्ण है. योग और वित्तीय साक्षरता को पाठ्यक्रम में जोड़ा जा रहा है. बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य को ध्यान में रख कर ही पाठ्यक्रम बनाया जा रहा है. शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास द्वारा शिक्षा : कोरोना के साथ भी, कोरोना के बाद भी – विद्यालयीन शिक्षा पर आयोजित परिसंवाद में मुख्य अतिथि के रूप में एनसीईआरटी के निदेशक प्रो. श्रीधर श्रीवास्तव संबोधित कर रहे थे.
“भविष्योन्मुखी मूल्यांकन” विषय पर चर्चा करते हुए सीबीएसई के पूर्व अध्यक्ष अशोक गांगुली ने कहा कि 21वीं सदी की मूल्यांकन पद्धति 20वीं सदी की है. मूल्यांकन प्रणाली में परिवर्तन की ज़रूरत है. सतत मूल्यांकन एवं समग्र मूल्यांकन को लागू करना होगा. हमारी मूल्यांकन प्रणाली में रचनात्मकता को उपयोग करना होगा. नीति विषयक प्रपत्र बनाने की आवश्यकता है.
कार्यक्रम में उपस्थित म.प्र. शासन के लोक शिक्षण विभाग की आयुक्त जयश्री कियावत ने कहा कि मध्यप्रदेश में ‘हमारा घर हमारा विद्यालय’ शीर्षक से विद्यालयीन शिक्षा में नवाचार किया गया. अभिभावकों, शिक्षकों तथा विद्यार्थियों की सहभागिता सुनिश्चित की गई, जिसके सकारात्मक परिणाम प्राप्त हुए हैं.
कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के राष्ट्रीय सचिव अतुल कोठारी ने कहा कि वर्तमान में परीक्षा शिक्षा का पर्याय बन चुकी है. हम सभी जानते हैं कि देश भर के विद्यालयों में परीक्षा नहीं हुई है. शैक्षिक नुक़सान का अनुमान नहीं लगाया जा सकता. बच्चों की सीखने की प्रक्रिया बंद हो गई है. देश की शिक्षा में हम क्या विकल्प दे सकते हैं, इस पर हमें चिंतन करने की आवश्यकता है. बिना परीक्षा में समग्रता की दृष्टि से क्या-क्या समावेश किया जा सकता है, इस पर भी विचार-विमर्श होना चाहिए. बच्चों के समग्र विकास को ध्यान में रख कर, हर विद्यालय में परामर्श केंद्र स्थापित किए जाने चाहिए.
परिसंवाद में नवज्योति फ़ाउंडेशन, नई दिल्ली की संचालक डॉ. नीतू शर्मा, कालका पब्लिक स्कूल, नई दिल्ली की प्राचार्य डॉ. अंजु मेहरोत्रा एवं सर्वहितकारी विद्यामंदिर, तलवाड़ा, पंजाब की अंजु शर्मा ने अपना प्रस्तुतीकरण दिया