‘विमर्श 4.0’
नई दिल्ली. दिल्ली विश्वविद्यालय के कॉन्फ्रेंस सेंटर में युवा द्वारा आयोजित तीन दिवसीय “विमर्श – 2019” के दूसरे दिन भी विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों ने छात्रों का मार्गदर्शन किया.
पहले सत्र ‘ब्रेनवॉश्ड रिपब्लिक’ सत्र में लेखक विजय मोहन तिवारी, नीरज अत्री और डॉ. मनोज सिन्हा, ‘जम्मू कश्मीर एंड लद्दाख अवे फॉरवर्ड’ में जम्मू-कश्मीर अध्ययन केंद्र के निदेशक आशुतोष जी भटनागर और डॉ. एस.के. गर्ग, ‘सोशल मीडिया वारियर्स’ पैनल डिस्कशन में प्रशांत उमराव, कायनात काज़ी, अखिलेश शुक्ल, अनिल पाण्डेय, ‘पुस्तक चर्चा’ के लिए मानोशी सिन्हा रावल, सिद्धार्थ और आकाश नरेन्द्र और ‘अर्बन इंफ्रास्ट्रक्चर’ विषय पर प्रोफेसर महेश्वर सिंह और शुभम रस्तोगी जी ने चर्चा की.
दूसरे सत्र में अमन लेखी, मनन पोपली और राजेश गोगना ने ‘रिविज़िटिंग गोल्डन ट्रायंगल – नेशनल सिक्यूरिटी एंड पर्सनल लिबर्टी’ विषय पर चर्चा की और प्रोफेसर भगवती प्रसाद का ‘टेक्नो नेशनलिज्म’ विषय पर उद्बोधन रहा.
इसके बाद के सत्र में ‘साइंस ऑफ़ स्पिरिचुअल’ विषय पर प्रोफेसर रमेश चन्द्र भारद्वाज व प्रोफेसर पवन धर, ‘वीमेन इन न्यूज़’ विषय पर पत्रकार स्वाति गोयल शर्मा, अदिति टंडन, ‘इंडियन फुटप्रिंट एंड स्पेस टेक्नोलॉजी’ विषय पर डॉ. राजाबाबू और डॉ. सविता राय, ‘रोल ऑफ़ सिविल सर्वेंट फॉर अवेकंड भारत’ विषय पर संकल्प आई.ए.एस. के संगठन महामंत्री कन्हैया लाल, रविन्द्र. अध्यक्ष रविन्द्र सिंह, डॉ. आर.एस. गुप्ता ने अपने-अपने क्षेत्रों में अपनी मृगेन्द्रता साबित करते हुए छात्रों को राष्ट्रसेवा की ओर प्रोत्साहित किया.
कार्यक्रम में उभरते उद्यमियों का प्रोत्साहन करने हेतु ‘स्टार्ट-अप एंड इनोवेशन अवार्ड’ का आयोजन भी किया गया. जिसमें डॉ. आदित्य गुप्ता का सान्निध्य विद्यार्थियों को प्राप्त हुआ. साथ ही रंगोली व चित्रकला प्रतियोगिता, संभाषण प्रतियोगिता व निबंध प्रतियोगिता भी रही.
दूसरे दिन के समापन सत्र में आर्गनाइज़र पत्रिका के संपादक प्रफुल्ल केतकर का उद्बोधन रहा. उन्होंने ‘इंडिक थॉट्स बनाम अनइंडिक आइडियोलॉजी’ विषय रखा. उन्होंने कहा कि भारत में ‘राष्ट्रवाद की एक्स्क्लुसिविटी’ नहीं बल्कि ‘राष्ट्रीयता के समग्र विचार’ हैं. साम्यवाद व पूंजीवाद के साथ-साथ ‘ईसाईवाद व इस्लामवाद’ की विचारधाराओं को समझाते हुए ज़ोर दिया कि भारत इन विचारधाराओं से बाध्य नहीं है. स्वामी विवेकानंद ने शिकागो धर्म संसद के भाषण में उन्होंने कहा था -“मैं उस सभ्यता का प्रतिनिधि हूँ जो ‘सहिष्णुता’ से भी आगे विचार करती है”.
दिवंगत राष्ट्रपति डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम के साथ एक साक्षात्कार का स्मरण करते हुए बताया कि डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम का मानना था – “भारत वास्तव में तब विकसित था, जब हज़ारों विदेशी छात्र नालंदा व तक्षशिला में पढ़ने आते थे”. महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय के उप कुलपति प्रोफेसर संजीव शर्मा ने भी अंतिम सत्र में भारत के प्राचीन ज्ञान पर विचार व्यक्त किये.