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सभी में एक भाव से देश को समतायुक्त और शोषण मुक्त बनाया जा सकेगा – डॉ. मोहन भागवत जी

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सरसंघचालक जी ने किया महाराजा छत्रसाल की अष्टधातु की अश्वारोही प्रतिमा का अनावरण

छत्तरपुर (विसंकें). महाराजा छत्रसाल स्मृति शोध संस्थान की तीन वर्ष की मेहनत और लगन बुन्देलखण्ड केसरी महाराज छत्रसाल की 52 फीट ऊंची प्रतिमा के अनावरण के साथ सार्थक हुई, प्रतिमा का अनावरण राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने किया. उन्होंने कहा कि महापुरूषों ने अपनी प्रभुता स्थापित करने के लिए युद्ध नहीं किए, बल्कि धर्म संस्कृति को सुरक्षित रखने के लिए दुश्मनों के छक्के छुड़ाए हैं. जब तक धर्म और संस्कृति को सुरक्षित रखने वाला है, तब तक समाज सुरक्षित है. सरसंघचालक जी ने वैदिक मंत्रोच्चार के साथ छत्रसाल शौर्य पीठ में स्थापित प्रतिमा का अनावरण करने के बाद कहा कि महाराजा छत्रसाल ने जिस तरह नि:स्वार्थ भाव से सत्य और धर्म के मार्ग पर चलकर उद्यम किया. उसी से हमारी संस्कृति सुरक्षित है. हमें इस अवसर पर उनकी राह पर चलने का संकल्प लेना होगा. अनादिकाल से भारत में आध्यात्मिक शक्तियों का देश को बहुमुखी स्थान दिलाने में महत्वपूर्ण योगदान रहा.

उन्होंने कहा कि भगवान श्री राम अनंत और शास्वत हैं. समय – समय पर विभिन्न रूपों में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से आकर देश और समाज को दिशा देने का काम भारत के अलावा अन्यत्र कहीं नहीं हुआ. बुन्देलखण्ड की इस भूमि में महाराजा छत्रसाल के आदर्श को जीवित रखने का यह प्रयास किया जा रहा है. सत्य अनुकूल होता है, वही जीता है और उसके लिए ही तपस्या करनी पड़ती है. इसी कारण हम छत्रसाल का स्मरण कर एक गौरव गाथा को स्थापित कर रहे हैं. लेकिन हम भी छत्रसाल जैसे बनें, यह प्रयास करना होगा. उन्होंने कहा कि आज भी यह सब हो सकता है जो उन्होंने किया. सत्य रहे, असत्य जाए, धर्म रहे, अधर्म जाए, जब हम उस सत्य के योग्य बन जाते हैं तो सब कुछ होता हुआ देखते हैं. महाराजा छत्रसाल ने इतना उद्यम अपने लिए नहीं किया. केवल छत्रसाल ही नहीं महाराणा प्रताप, शिवाजी आदि अन्य महापुरूषों ने यह सब धर्म की स्थापना के लिए किया था, क्योंकि धर्म और संस्कृति सुरक्षित रहेगी तभी दुनिया रहेगी. इसलिए इस  समाज

को सुरक्षित रखना है. महाराजा छत्रसाल ने जितना महान त्याग इस क्षेत्र के लिए किया, उसका थोड़ा सा भी अंश हम अपने जीवन में ग्रहण कर लें तो क्षेत्र का कल्याण हो सकता है. उन्होंने जो धर्म बताया उसे स्वयं जिया. उनके मन में स्वार्थ, अहंकार, भय, मजबूरी कुछ भी नहीं था. बस केवल एक बात थी देश, समाज, धर्म और संस्कृति को सुरक्षित रखना है.

डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि कोई भी नेता, सरकार और पार्टी से समाज की उन्नति नहीं होती, वह सहायक हो सकते हैं. पूरा समाज जो सोचता है वही होता है. इसलिए पूरे समाज को एकजुट होने की आवश्यकता है. सारे समाज को जोड़कर पराक्रम करना पड़ेगा. भाषा, जाति, पंथ, संप्रदाय के बावजूद सब में एक भाव होना चाहिए. तभी देश को समतायुक्त और शोषण मुक्त बनाया जा सकेगा.

उन्होंने कहा कि आज इस विशाल मूर्ति का अनावरण किया गया है, लेकिन यहां आए लाखों लोग यह संकल्प लें कि मूर्ति के पीछे जीवन की जो सुंदरता रही, उसे हम सबको अपनाना पड़ेगा. जब तक इस विशाल प्रतिमा के पीछे का जीवन नहीं समझेंगे, तब तक बुन्देलखण्ड की गरिमा आगे नहीं बढ़ेगी. इसलिए हमें महान राष्ट्रभक्तों से प्रेरणा लेनी होगी. यदि बुन्देलखण्ड को मजबूत करना है तो छत्रसाल बनना पड़ेगा.

डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि विदेशी शक्तियों ने कागज से इतिहास को अपने आधार पर आगे बढ़ाया है. लेकिन आज यह विशाल प्रतिमा इस बात की ओर इशारा करती है कि देश के लिए मर मिटने वालों का हमेशा नाम रहता है. अंग्रेजों ने भले ही महाराजा छत्रसाल को लुटेरा सहित अन्य नामों के साथ उल्लेखित किया हो, लेकिन योद्धा की वीरता समाज के मन से कभी नहीं हटती. आज यह सिद्ध हो गया है कि देश और प्रजा के लिए जीवन समर्पित करने वाले कभी इतिहास में पीछे नहीं रहते.

उन्होंने अयोध्या में श्रीराम मंदिर निर्माण का उल्लेख करते हुए कहा कि राम जी का मंदिर बनना है, यह इच्छा नहीं संकल्प है और इस संकल्प को हम पूरा करेंगे. राम मंदिर निर्माण की बात 1986 से चल रही है. लेकिन कठिनाई यह है कि जिन्हें राम मंदिर बनना है, उन्हें खुद कुछ अंश तक राम जैसा बनना पड़ेगा. मंदिर निर्माण में शंका का कोई कारण नहीं है. सारी परिस्थितियां ठीक होने से मंदिर निर्माण का समय आ गया है.

पूरे देश में पढ़ाए जाएं महाराजा छत्रसाल

मलूक पीठाधीश्वर वृंदावन के डॉ. राजेन्द्र दास देवाचार्य जी महाराज ने कहा कि मध्यप्रदेश ही नहीं पूरे देश में महाराजा छत्रसाल को पाठ्यक्रम में शामिल कर पढ़ाया जाना चाहिए. महाराणा प्रताप और शिवाजी की तरह महाराजा छत्रसाल ने भी अपने पुरूषार्थ से बुन्देलखण्ड की सीमाओं का विस्तार ही नहीं किया, बल्कि औरंगजेब के कार्यकाल में उसे स्थापित किया. उन्होंने मुगलों की दासता को स्वाभिमान पूर्वक अस्वीकार किया. महाराज ने कहा कि कुछ लोगों ने इतिहास के प्रति अक्षम्य अपराध किए हैं. चंपत राय और महाराजा छत्रसाल को गलत रूप में प्रस्तुत किया गया. भारत सरकार को इस झूठे इतिहास का अमान्य कर उनका गरिमामय इतिहास सामने लाना चाहिए. मलूक पीठाधीश्वर राजेन्द्र दास महाराज जी ने कहा कि महाराजा छत्रसाल एक वीर योद्धा थे, यदि उन्हें बुन्देलखण्ड की धरती के महाराणा प्रताप और छत्रपति शिवाजी कहें तो अतिश्योक्ति नहीं होगी.

महाराजा छत्रसाल स्मृति शोध संस्थान के सचिव राकेश शुक्ला राधे जी ने अनावरण कार्यक्रम में संस्थान द्वारा पिछले तीन वर्षों में किए कार्यों का प्रतिवेदन प्रस्तुत किया. मंच पर महाबली छत्रसाल नाटक के निर्देशक शिवेन्द्र शुक्ला को सम्मानित किया गया. इस अवसर पर पिछले दो वर्षों में विशाल मूर्ति तैयार करने वाले मूर्तिकार फिरोज खान, शंकर, अमर पाल जी को सम्मानित किया गया. प्रख्यात बुन्देली गायक देशराज पटैरिया, बुन्देली भाषा को सहेजने वाले प्रो. बहादुर सिंह परमार, जाने-माने मूर्तिकार दिनेश शर्मा, सतना के शिक्षाविद् शंकर दयाल भारद्वाज जी सहित अन्य कलाकारों को सम्मानित किया गया. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी निर्धारित समय पर मऊसहानियां पहुंचे. सुबह 11.30 बजे वे महेबा स्थित महाराजा छत्रसाल की समाधि पर पहुंचे, वहां उन्होंने श्रद्धासुमन अर्पित किए.

कार्यक्रम के अंत में महाराजा छत्रसाल स्मृति शोध संस्थान के अध्यक्ष भगवतशरण अग्रवाल जी ने अतिथियों, संतों सहित कार्यक्रम के साक्षी बने लोगों का आभार व्यक्त किया. कार्यक्रम के प्रारंभ में कलाकारों ने मौनिया नृत्य प्रस्तुत किया. देशराज पटैरिया जी ने महाराजा छत्रसाल के जीवन से जुड़े बुन्देली गीत प्रस्तुत किए. मंच पर प्रणामी सम्प्रदाय के धर्मगुरू दिनेश एम पंडित, रामहृदय जी महाराज, मप्र गौसंवर्धन बोर्ड के अध्यक्ष स्वामी अखिलेश्वानंद, वृंदावन धाम के किशोरदास जी महाराज, संतोषी अखाड़ा के रामजी दास महाराज, दिव्यजीवन दास जी महाराज, दिव्यानंद जी महाराज, भगवानदास जी महाराज, चित्रकूट से मदनगोपाल दास जी महाराज, कबीर आश्रम से श्री नारायणदास जी महाराज, सीताशरण जी महाराज, रामनरेशाचार्य जी महाराज, नरसिंहदास जी महाराज, रामनिहोरे दास जी महाराज उपस्थित रहे. संचालन सुमित ओरछा जी ने किया.

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