अमरावती (विसंकें). भारतीय परिवार व्यवस्था की मुख्य रीढ़ महिलाओं को जीवन का अर्थशास्त्र अब तक समझ में नहीं आया है. सभी महिलाओं को इसे समझना चाहिए, तभी हमारी संस्कृति व परिवार व्यवस्था का अस्तित्व बना रहेगा.
यह आह्वान प्रगतिशील किसान व ग्राम गीताचार्य पूर्णिमा सवई ने किया. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विदर्भ प्रांत प्रवासी कार्यकर्ता शिविर के निमित्त अंबानगरी में मातृ सम्मेलन का आयोजन किया गया. सम्मेलन की अध्यक्षता प्रसिद्ध स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. सुधा देशमुख ने की. इस अवसर पर अखिल भारतीय व्यवस्था प्रमुख मंगेश भेंडे और विदर्भ प्रांत संघचालक राम हरकरे मंच पर उपस्थित थे.
सवई ने कहा कि शहर की महिलाएं पढ़-लिख तो गईं, लेकिन उनमें सुसंस्कृति का अभाव दिखाई देता है. इसके विपरीत ग्रामीण क्षेत्र की अनपढ़ महिला सुसंस्कृत है और उसमें निर्णय लेने की क्षमता भी है. आज चारों ओर आधुनिकता की ही बातें होने से हमारी परिवार व्यवस्था के नष्ट होने का खतरा मंडराने लगा है. लेकिन हमें इस बात का एहसास नहीं है. समाज में मानवता समाप्त हो चुकी है. महिलाओं को उसे जन्म देने का काम करना होगा. यब बात सर्वश्रुत है कि बच्चों को संस्कार देने की जिम्मेदारी मां की है, फिर भी समाज में दृष्टिगोचर हो रहे विभिन्न उदाहरण यही साबित कर रहे हैं कि बच्चे संस्कारों से वंचित हो रहे हैं. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने कार्यकर्ता शिविर के निमित्त मातृ सम्मेलन के माध्यम से मातृदेवता को सम्मानजनक स्थान देते हुए उनका पूजन किया. यह अत्यंत सराहनीय उपक्रम है. सवई ने कहा कि शिविर स्थान पर साकार की गई अंबानगरी को देखकर संघ के कार्यों की अनुभूति होती है.
अखिल भारतीय व्यवस्था प्रमुख मंगेश भेंडे ने कहा कि बच्चे हमारे राष्ट्र की संपत्ति हैं और उनके संस्कारों से वंचित रहने का चित्र ही सर्वत्र दिखाई दे रहा है. यह चिंताजनक है. व्यक्ति निर्माण के चार स्थान हैं. उसमें घर, स्कूल, मैदान, मंदिर का समावेश है. ये चारों ही स्थान वर्तमान में कमजोर होते जा रहे हैं. ये चारों मजबूत बनें, इसके लिए मातृशक्ति को आगे आना होगा. परिवार व्यवस्था का प्रमुख आधार संयुक्त परिवार है. उससे संस्कार प्रज्ज्वलित होते हैं और परिवार सक्षम बनता है. मातृशक्ति को इस ओर गंभीरता से ध्यान देने की आवश्यकता है.
सम्मेलन की अध्यक्ष डॉ. देशमुख ने अनुशासनबद्ध आयोजन के लिए संघ की प्रशंसा की तथा उपस्थित मातृशक्ति को निश्चित ध्येय आंखों के सामने रखकर आगे बढ़ने की प्रेरणा दी. प्रकृति की सीमा में रहकर अपनी महत्वाकांक्षाएं पूर्ण करें. कोई भी कार्य असंभव नहीं होता.
प्रास्तावना प्राची पालकर ने रखी. अतिथियों का परिचय सुरेखा लुंगारे ने कराया. अतिथियों का स्वागत माया भारतीय, दीपा खांडेकर ने किया. सोनाली चाटी ने व्यक्तिगत गीत प्रस्तुत किया. संचालन गौरी लवाटे व आभार प्रदर्शन प्रज्ञा गणोरकर ने किया. इस अवसर पर महिलाएं, विभिन्न संगठनों की महिला पदाधिकारी, सदस्य व अन्य माता भगिनियां बड़ी संख्या में उपस्थित थीं.