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विश्व हिंदू परिषद् ने 1100 दीप जलाकर किया नववर्ष का स्वागत

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शिमला (विसंकें). नववर्ष के अवसर पर विश्व हिंदू परिषद् की ओर से रिज मैदान पर दीपोत्सव कार्यक्रम का आयोजन किया गया. कार्यक्रम में प्रदेश के राज्यपाल आचार्य देवव्रत उपस्थित रहे. कार्यक्रम में विभिन्न संस्थाओं के सहयोग से शिमला के रिज मैदान पर 1100 दीप जलाकर नववर्ष का स्वागत किया गया. राज्यपाल ने प्रदेशवासियों की खुशहाली की कामना करते हुए सबको नववर्ष की शुभकामनाएं दी. इस अवसर पर आचार्य देवव्रत ने कहा कि भारतीय संस्कृति के विक्रमी संवत के अनुसार हम नववर्ष में प्रविष्ट हुए हैं और मैं कामना करता हूं कि प्रदेश के लोगों में सुख-समृद्धि, प्रेम, सौहार्द, शांति और उमंग का संचार हो और यह प्रदेश अधिक उन्नति करे. इस अवसर पर विहिप के उतर भारत के क्षेत्र संगठन मंत्री करूणा प्रकाश ने कहा कि प्रदेश हिंदू बहुल क्षेत्र है, लेकिन यह दुर्भाग्य की बात है कि आज हर जगह पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव है. प्रदेश सरकार द्वारा भी इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा. सरकार पर्यटन विभाग के माध्यम से 31 दिसम्बर को पाश्चात्य संस्कृति के आधार पर ही प्रतीक के रूप में नववर्ष मनाती है जो अत्यन्त चिंता की बात है. यह संस्कृति का भौंडा प्रदर्शन है. भारतीय नववर्ष की परम्परा बेहद वैज्ञानिक है क्योंकि प्रकृति में इस मास में उल्लसित करने वाले दृश्य दिखाई पड़ते हैं. फूल खिलते हैं और लोग नवऊर्जा से भर जाते हैं. इस काल में पूरे वर्ष के लिए लोग शक्ति प्राप्त करने के लिए शक्ति का आराधन करते हैं. गुरू अंगद देव का प्रकटोत्सव, महर्षि दयानंद ने आर्यसमाज की स्थापना और हिंदू समाज को बचाने के लिए शुद्धि आंदोलन की शुरूआत आज ही के दिन की थी.कार्यक्रम में विहिप के प्रदेश अध्यक्ष अमन पुरी, प्रदेश संगठन मंत्री मनोज कुमार, बजरंगदल के प्रांत संयोजक राजेश शर्मा, दुर्गावाहिनी उतर भारत संयोजिका रजनी ठुकराल, दुर्गावाहिनी प्रदेश संयोजिका कुमारी भावना ठाकुर, आर्ट आफ लिविंग सहित अन्य संस्थाओं के प्रतिनिधि उपस्थित थे.

नववर्ष के मौके पर विहिप का प्रतिनिधिमंडल क्षेत्रीय संगठन मंत्री के नेतृत्व में माननीय राज्यपाल से राजभवन में मिला. इस मौके पर विहिप की पत्रिका हिमालय ध्वनि विशेषांक श्रीराम पंचागम् का विमोचन भी राज्यपाल ने किया. पत्रिका की सराहना करते हुए राज्यपाल ने कहा कि सनातन संस्कृति का संरक्षण बेहद अनिवार्य है. कोई भी देश अपने पारंपरिक मूल्यों और संस्कृति से जाना जाता है. आज के दौर में आवश्यकता इस बात की है कि प्राचीन भारतीय मूल्यों को जन-जन तक पंहुचाया जाये. अपने इस नैतिक अभियान में यह पत्रिका सराहनीय कार्य कर रही है.

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