मुंबई (विसंकें). राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय सह सेवा प्रमुख गुणवंत सिंह कोठारी जी ने कहा कि प्रकृति को उपभोग की वास्तु समझकर पाश्चात्य विचारों ने मानव की प्रगति के लिए प्रकृति का विनाश किया है. लेकिन मानव भी इसी प्रकृति की कड़ी का हिस्सा है और हमारी जरुरत से ज्यादा प्रकृति से कुछ भी न लेना, यही प्रकृति की सेहत तथा हमारे भविष्य के भी हित में होगा. भारतीय संस्कृति के अभिभावकों ने इसी बात को हजारों साल पहले समझकर विकास को प्रकृति के रक्षण के साथ भी जोड़ा. व्यक्ति को समष्टि से जोड़ना, यही हमारे चिंतन का मूलाधार रहा है. जिसे ‘हिन्दू आध्यात्मिक एवं सेवा मेले’ में उजागर किया गया है. गुणवंत सिंह जी मुंबई के गोरेगांव उपनगर में आयोजित ‘हिन्दू आध्यात्मिक एवं सेवा मेले’ के समापन सत्र में उपस्थित कार्यकर्ताओं और नागरिकों को संबोधित कर रहे थे. तीन दिन तक चले मेले के अंतिम दिन मुंबई के हजारों नागरिकों ने सेवा यज्ञ का अनुभव किया. समापन कार्यक्रम में भी मुंबई के फिल्म जगत से जुड़े कई सेलिब्रेटी तथा सामाजिक कार्यकर्ता उपस्थित थे.
गुणवंत सिंह जी ने कहा कि भारत मठ-मंदिर, ज्ञाती संस्था, सामाजिक संस्था तथा व्यक्तिगत स्तर पर हजारों कार्यकर्ताओं द्वारा लाखों सेवा कार्य चल रहे है. ऐसे कार्य और हमारी परंपरा, मूल्य, संस्कृति से वर्तमान युवा पीढ़ी को जोड़ना भी आवश्यक है. ‘हिन्दू आध्यात्मिक एवं सेवा मेला’ जैसे आयोजनों का यही मुख्य उद्देश्य है.
इस मेले की आयोजन समिति की अध्यक्षा तथा मुंबई की जानी मानी सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. अलका मांडके ने भी अपने अनुभव सभी कार्यकर्ताओं के साथ साझा किए. आठ महीने पूर्व जब ऐसे मेले के आयोजन का निर्णय लिया गया, तब लगा था कि इतने बड़े स्तर का आयोजन करने में हम सफल हो सकेंगे क्या ? लेकिन गत आठ महीनों में कई अनुभवी कार्यकर्ताओं द्वारा कार्यक्रम के आयोजन के लिए उठाए अपरिमित कष्टों के कारण ही यह आयोजन अपेक्षा से ज्यादा सफल हो पाया है. विख्यात अर्थशास्त्री डॉ. गुरुमूर्ती की प्रेरणा भी हमारे लिए उत्साहवर्धन का काम करती रही.
कोंकण प्रान्त संघचालक डॉ. सतीश मोड़ ने कहा कि आज देश में संघ द्वारा लाखों सेवाकार्य चल रहे हैं. यह कार्य बड़ी प्रतिकूल स्थिति से झूझते हुए अपने कार्यकर्ताओं ने चलाए है. इनकी प्रेरणा संघकार्य ही रहा है. रोज संघ शाखा में आकर सहज संपर्क और कार्यनिष्ठा की सीख लेने वाले यह कार्यकर्ता समाज की जरुरत को ध्यान में रखते हुए, ऐसे सेवाकार्यों को चला रहे हैं.
‘हिन्दू आध्यात्मिक एवं सेवा मेले’ में कुल 80 संस्थाओं के 120 स्टाल्स लगे थे. जिससे प्रदर्शनी के माध्यम से अपने कार्य की जानकारी आम लोगों तक पहुंचाने का प्रयत्न किया गया था. माता अमृतानंदमई की संस्था को उत्कृष्ट प्रदर्शनी के लिए पहला स्थान देकर सम्मानित किया गया. तथा सिद्धिगिरी मठ और चारकोप (मुंबई) स्थित बालाजी मंदिर संस्थानों को द्वितीय तथा तृतीय स्थान से सम्मानित किया गया. प्रदर्शनी को देखने के लिए बड़ी कंपनियों के वरिष्ठ अधिकारियों ने भी अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई. मेले में कार्पोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी फंड (सी.एस.आर.) विषय पर भी एक सत्र का आयोजन किया गया. जिसमें सामाजिक संस्था तथा उद्योग जगत के मान्यवरों ने अपने विचार रखे.