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श्री हल्देकर जी का संघ जीवन से बड़ा पुरुषार्थ क्या हो सकता है ? – सुरेश भय्या जी जोशी

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केवल युद्ध करना ही पुरुषार्थ नहीं होता है, अपितु अंतःकरण की सभी भावनाओं को, संपूर्ण जीवन को केवल एक ध्येय के लिए समर्पित करना, यह भी पुरुषार्थ होता है. श्री रामभाऊ हल्देकर जी, जब 1954 में संघ के प्रचारक निकले, वह समय संघ के लिए सब प्रकार से विरोध का कालखण्ड था. ऐसी परिस्थितियों में जो संघ के प्रचारक निकले, उससे बड़ा पुरुषार्थ क्या हो सकता है? जो जो बंधु श्री हल्देकर जी के संपर्क में आए, उनको संघ समझाने के लिए किसी बौद्धिक, चर्चा की आवश्यकता नहीं हुई, क्योंकि श्री हल्देकर जी का जीवन ही संघ जीवन के नाते सबके सामने रहा है.

वे महाराष्ट्र से निकल कर आंध्र के बन गए, उन्होंने आंध्र के समाज जीवन से, संघ कार्य से, कार्यकर्ताओं से, परिवेश से – एक अद्भुत सामंजस्य बैठाने का कठिन कार्य भी सहजता से किया. प्रवास करने की शक्ति कम होने के बाद श्री हल्देकर जी अपनी लेखनी के माध्यम से संघ साधना में लगे रहे. अनेक मराठी पुस्तकों का उन्होंने तेलगु में अनुवाद किया. सिर्फ लिखना ही नहीं तो ये साहित्य पाठकों तक पहुंचे, इसकी भी चिंता की.

किसी साहित्यकर ने कहा है कि – आज ऐसे महानुभावों की कमी हो गयी, जिनके चरण स्पर्श करने की इच्छा करे, हम सबका सौभाग्य है कि हमें अपने जीवन में ऐसा भाग्य प्राप्त हुआ है. उनकी पावन स्मृति को अपने अंतःकरण में स्थान देकर उनके द्वारा दिशा निर्दिष्ट मार्ग पर हम सब चलें, यही हम सबके अंतःकरण कि भावना है. श्री हल्देकर जी की आत्मा को शांति प्रदान करने के लिए भगवान से प्रार्थना करने की आवश्यकता नहीं है, ईश्वर का ये दायित्व बनता है कि ऐसी पवित्र आत्मा को शांतिगति प्रदान करते हुए, वो स्वयं उन्हें अपनी योजना से ईश्वरीय कार्य करने के लिए पुनः पृथ्वी पर भेजे.

सुरेश जोशी

सरकार्यवाह, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ

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