एक कालखण्ड विशेष में लुप्त हो चुकी सरस्वती नदी को पुनर्जीवित करने के लिए सरस्वती नदी शोध संस्थान की स्थापना श्री दर्शनलाल जैन द्वारा अपने अथक प्रयासों से सिंधु सरस्वती सभ्यता के अनुसंधान की परियोजना को सरकार के माध्यम से शुरू करवाया। जगाघरी के रहनेवाले श्री जैन 10 वर्ष की आयु से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े हैं और हरियाणा के प्रान्त संघचालक रह चुके है। सरस्वती नदी पर उनके द्वारा किये गए काम को लेकर हुमने उनसे विशेष बातचीत की।
सरस्वती को लेकर शोध करने का विचार मन में कैसे आया ?
सरस्वती के बारे में जिज्ञासा हमेशा से ही थी. एक बार मध्यप्रदेश से डॉ. डब्ल्यू. एस. वाकणकर यहां आए थे, उनसे मेरी भी मुलाकात हुई थी. उन्होंने सरस्वती के संबंध में सर्वे शुरू किया तो वे आदिबद्री से लेकर द्वारका तक गए. इसके बाद मेरे मन में विचार आया कि सरस्वती तो आदिबद्री से भी मैदानी इलाके में प्रवेश कर रही हैं ऐसे में सरस्वती के अभियान को आगे बढ़ाया जाना चाहिए. इसके लिए वर्ष 1999 में सरस्वती शोध संस्थान का पंजीकरण कराया. सरस्वती के बारे में तमाम तरह की जानकारियां एकतित्र कीं और सरकार को इस बारे में बताया. नासा द्वारा अंतरिक्ष से लिए चित्र और तमाम वैज्ञानिक प्रमाणों को देखकर राजग सरकार में पूर्व केंद्रीय संस्कृति और पर्यटन मंत्री जगमोहन ने सिंधु सरस्वती सभ्यता के अनुसंधान की परियोजना की शुरुआत करवाई.
पहली बार सरस्वती को कब देखा ?
एक बार अपने ड्राइवर से मैंने पूछा कि वह नहाकर क्यों नहीं आया तो उसने कहा कि मैं रोज सरस्वती नदी में नहाकर आता हूं. मैं हैरान हो गया, मैंने उससे कहा कि कहां बह रही है सरस्वती, मुझे भी देखनी है. वह मुझे अपने साथ उद्गम स्थल तक लेकर गया तो मैं हैरान हो गया. वहां वास्तव में सरस्वती बह रही थी.
अभी वर्तमान में सरस्वती को लेकर शोध कार्यों की क्या स्थिति है. सरस्वती के बारे में जानकारी मिलने के बाद कहां- कहां खुदाई की गई ?
दो वर्ष पहले कुरुक्षेत्र जिले में खुदाई हुई थी. यमुनानगर में अभी काम शुरू नहीं हुआ. कुरुक्षेत्र में जो खुदाई हुई उसका लाभ भी हुआ. पिछली बार जब बाढ़ आई थी तो कुरुक्षेत्र बाढ़ से बच गया. नदी के बहाव का जो क्षेत्र था. उसे चौड़ा किया गया. नतीजतन बाढ़ का पानी वहां से बह गया. जबकि यमुनानगर में बाढ़ से खेती का बहुत नुकसान हुआ. हजारों एकड़ खेतिहर जमीन में बाढ़ का पानी घुस आने से खेती बर्बाद हो गई. कुरुक्षेत्र के पास मुस्तफाबाद में सरस्वती कुंड है, वहां पूजा होती है. कुरुक्षेत्र में जो खुदाई हुई उसमें सरस्वती नदी के वहां से बहने की पुष्टि हुई है. जहां तक शोध कार्यों की बात है तो सरस्वती के बारे में नई जानकारी इकट्ठा करने का प्रयास आज भी जारी है.
कहा जाता है कभी सरस्वती सबसे बड़ी नदी थी. यमुना और सतलुज कभी इसकी सहायक नदियां हुआ करती थीं. इस बारे में आपका क्या कहना है ?
जी, यह बिल्कुल सत्य है करीब 5 हजार वर्ष पहले सरस्वती सबसे बड़ी नदी हुआ करती थी. सतलुज और यमुना इसकी सहायक नदियां थीं. पहले यमुना सरस्वती के सहारे अपनी यात्रा पूरी करती थी. सरस्वती पूरब से पश्चिम की तरफ बहती थी. हजारों वर्ष पहले आए भीषण भूकंप के चलते दोनों नदियां इससे अलग हो गई. दोनों नदियों ने अपने-अपने मार्ग बदल लिए. इसके बाद धीरे-धीरे सरस्वती भूगर्भ में चली गईं और लुप्त हो गईं. आज सोम नदी में सरस्वती का पानी गिरता है फिर आगे जाकर सोम नदी यमुना में मिल जाती है.
अभी श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा की नई-नई सरकार बनी है. नई सरकार से आपको क्या अपेक्षाएं हैं?
वर्ष 2006 में ओएनजीसी ने जैसलमेर में खुदाई करके स्वच्छ पानी निकाला था. जांच से पता चला कि वह पानी सरस्वती का है. अप्रैल, 2008 में हमने बैठक बुलवाई. जिसमें ओएनजीसी और इसरो के अलावा कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय जियोलॉजी विभाग के विशेषज्ञ शामिल हुए. हरियाणा के सिंचाई मंत्री कैप्टन अजय सिंह यादव की अध्यक्षता में बैठक हुई थी. बैठक में निर्णय हुआ कि जैसे पहले चरण में ओएनजीसी ने राजस्थान में खुदाई की थी. द्वितीय चरण में वह हरियाणा में भी खुदाई करेंगे. 21 अप्रैल 2008 को इस संबंध में ओएनजीसी को पत्र भेजा गया. उसने 2 मई को खुदाई करने की सहमति दे दी, लेकिन आज तक खुदाई शुरू नहीं हुई. नई सरकार से यह अपेक्षा है कि वह इस संबंध में आगे कार्रवाई करे. इस संबंध में 07 जून को केंद्रीय जल संसाधन मंत्री उमा भारती और 10 जून को पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान को चिट्ठी भेजी गयी है कि वह ओएनजीसी को निर्देश दें ताकि हरियाणा में भी ठीक ढंग से खुदाई शुरू हो सके.