चौबीस घंटे इंटरनेट की उपलब्धता के कारण आज मोबाइल पर जिस गति से कंटेंट आ रहा है, उस पर नियंत्रण रखना अत्यंत आवश्यक है, क्योंकि समाज में घटित हो रहे अपराधों के पीछे इस कंटेंट का बहुत बड़ा हाथ है. समाज में जागृति फैलाने के उद्देश्य से केंद्रीय सूचना आयुक्त तथा वरिष्ठ पत्रकार उदय माहुरकर के साथ बातचीत के संपादित अंश…
पल्लवी अनवेकर
मनोरंजन की आड़ में परोसे जा रहे अश्लील कंटेंट का समाज पर घातक प्रभाव पड़ रहा है, उसे आप कैसे परिभाषित करेंगे?
यदि 13 साल का लड़का 3 साल की लड़की का कुकर्म करने का प्रयत्न करता है या 8 साल का लड़का 2 साल की लड़की का कुकर्म करने का प्रयत्न करता है तो यह कहने की आवश्यकता ही नहीं है कि परिस्थिति कितनी घातक है और कितना नकारात्मक प्रभाव एवं दुष्परिणाम हो रहा है. मेरे हिसाब से तो यह बहुत ही विकट परिस्थिति है.
क्या चौबीस घंटे इंटरनेट की सुविधा घातक सिद्ध हो रही है?
इस सुविधा का लाभ बहुत है, लेकिन इसका नुकसान भी अधिक हो रहा है. हालांकि दुबई, चीन, सिंगापुर आदि देशों ने इस समस्या पर नियंत्रण पाया है. इसलिए हम भी पा सकते हैं.
व्यभिचार-कुकर्म जैसे अपराधों का मुख्य कारण क्या है?
ओटीटी प्लेटफॉर्म, वेब सीरीज, यूट्यूब, फेसबुक आदि प्रसार माध्यमों पर परोसे जा रहे उत्तेजक अश्लील कंटेंट-वीडियो घृणित घटनाओं का मुख्य कारण है. इस संदर्भ में कई अंतरराष्ट्रीय रिसर्च एवं अध्ययन रिपोर्ट उपलब्ध हैं. कुकर्म मामलों के एफआईआर देखें तो उससे पता चलता है कि अधिकतर मामले में आरोपी के मोबाईल में उत्तेजक अश्लील वीडियो आया और उससे प्रेरित होकर उन्होंने कुकर्म किया. अभी 3-4 महीने पहले डूंगरपुर के एक प्राध्यापक ने एक वर्ष के दौरान 6 लड़कियों के साथ कुकर्म किया. उसने भी अपने बयान में कहा कि उत्तेजक वीडियो देखने के बाद वह अपने आप को रोक नहीं पाता था. अभी 3 माह पूर्व लखनऊ में 13 वर्ष के एक लड़के ने 3 वर्ष की लड़की से रेप किया. इसी तरह एक और मामले में 8 साल के लड़के ने 2 साल की लड़की के साथ कुकृत्य करने का प्रयत्न किया. यह परिस्थिति भयंकर है. इसके पीछे का मुख्य कारण उत्तेजक कंटेंट है क्योंकि जो समाज के समक्ष परोसा जा रहा है, वह इतना वीभत्स एवं गन्दा है कि उससे होने वाले दुष्परिणाम की हम कल्पना भी नहीं कर सकते. ससुर-बहु, शिक्षक-छात्र के व्यभिचार पर भी ऐसा कंटेंट आता है. एक ओटीटी फिल्म आई है – जिसमें एक पुरुष है, जिसके अवैध सम्बन्ध अपनी भाभी, बहन, सौतेली मां और दादी से हैं. इसे आप क्या कहेंगे?
अश्लीलता के विरुद्ध जन जागरण की शुरुआत आपने कब से की?
वर्ष 2004 में एक जिस्म नामक फिल्म आई थी. उस समय के अनुसार वह काफी बोल्ड फिल्म थी. उसमें यह दर्शाया गया था कि एक माहिला अपने पति को छोड़कर दूसरे पुरुष से अवैध सम्बन्ध बनाती है. तब मैंने एक बैठक के दौरान यह मुद्दा उठाया था, लेकिन इस बारे में बात आगे बढ़ी नहीं. इस विषय को लेकर मैं तब से जनजागरण का काम करता रहा, परंतु तब इसमें विशेष सफलता नहीं मिली थी.
आपको सफलता कब और कैसे मिली?
मेरे एक दोस्त हैं जो आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर के अत्यंत करीबी हैं. बहुत ही सात्विक व्यक्ति हैं. उनसे मैंने इस संदर्भ में चर्चा की तो उन्होंने कहा कि आपको इस विषय को कुकर्म से जोड़ना होगा, तभी लोग चेतेंगे. इसके बाद मैंने एक शॉर्ट फिल्म बनवाई – जिसका नाम है ‘एक लड़की’. सोशल मीडिया पर यह काफी वायरल हुई थी. जिसे अभी तक करोड़ों लोगों ने देख लिया है. उस फिल्म में एक 12 वर्ष की लड़की बात करती है, ऐसे कंटेंट बनाने वालों से जो उत्तेजक और नग्नता परोस रहे हैं. वह उनको बड़ी ही मार्मिकता से कहती है कि आप तो परोस कर चले जाते हैं और उसका शिकार होती हैं हम बेटियां. क्या आपकी बेटी नहीं है? फिर अंत में वह कहती है कि आप देश के दुश्मन हैं. यह फिल्म बहुत ही लोकप्रिय और हिट हुई. इससे हमें संबल मिला. ‘सेव कल्चर सेव इंडिया’ नाम से मैंने इस अभियान की शुरुआत की.
आपने सेव कल्चर सेव नेशन नामक अभियान छेड़ा है, उसका उद्देश्य क्या है?
मेरे अभियान का उद्देश्य है कि जो लोग ओटीटी, सोशल मीडिया, यूट्यूब, फेसबुक इत्यादि के माध्यम से अश्लील कंटेंट परोस रहे हैं, उनके विरुद्ध देश एकजुट हो जाए और उन्हें दण्डित करे. रेप के विरुद्ध सरकार द्वारा ठोस कदम उठाए गए हैं. जैसे- मध्य प्रदेश सरकार ने दोषियों को मृत्युदंड का प्रावधान किया है. यह स्वागत योग्य कदम है, लेकिन मैं मानता हूं कि इस प्रवृत्ति, विकृति के मूल में जाना पड़ेगा.
आपके अभियान को कितना समर्थन मिल रहा है?
इस काम को आगे बढ़ाने के लिए मैंने सर्वप्रथम संतों से संपर्क किया, उनसे संवाद किया और उन्होंने अपनी सहमति एवं सहभागिता सुनिश्चित की. स्वामी रामदेव जी ने तो ट्विट कर कहा कि उदय माहुरकर के इस अभियान को मैं सम्पूर्ण रूप से सपोर्ट करता हूं. ‘व्यभिचार बेचो और पैसा कमाओ’ वाली लॉबी के विरुद्ध देश को एकजुट होना होगा. उन्हें दण्डित करने का समय आ गया है. हमारे अभियान को 10 महीने हो गए हैं और हमें देश की बड़ी-बड़ी हस्तियों एवं साधु-संतों का सहयोग मिल रहा है. स्वामी परमात्मानंद जी ने इस कार्य का शुभारंभ किया था. हिन्दू सभा के प्रमुख अग्रेतानन्द जी, आत्मानंद जी, अद्वेतानन्द जी, जैन संत सहित अनेकों संत इस कार्य में सहभागी बने हैं. इसके साथ ही बड़ी संख्या में देश की सज्जन शक्ति का समर्थन हमें प्राप्त हो रहा है.
राष्ट्र जागरण के लिए क्या आप समविचारी शॉर्ट फिल्म बनाने वालों का भी सहयोग ले रहे हैं?
मूवी पिक्सल नाम की एक कंपनी है जो राष्ट्रीय विचारों पर आधारित शॉर्ट फिल्में बनाती है. इसने एक दूसरी ‘कृपया ध्यान दें’ नामक शॉर्ट फिल्म बनाई थी. केवल 2 मिनट की यह फिल्म काफी लोकप्रिय हुई. जिसे लोगों ने हाथों हाथ वायरल किया. इनके साथ मिलकर भी हम काम कर रहे हैं क्योंकि इनके माध्यम से जन जागरूकता के कार्य में बहुत सहायता मिलती है.
भारतीय संस्कृति के संरक्षण एवं संवर्धन के लिए जो लोग देश भर में उल्लेखनीय कार्य कर रहे हैं, आप ऐसे लोगों को अपने साथकर किस तरह जोड़ रहे हैं?
देव, देश, धर्म की रक्षा हेतु जो लोग इस क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य कर रहे हैं, उन्हें प्रोत्साहित करने का बीड़ा हमने उठाया है. इसलिए हमने विगत 25 जून को ग्रेटर नोएडा में ‘सांस्कृतिक योद्धा पुरस्कार 2023 समारोह’ का आयोजन किया और कुल 9 लोगों को इस पुरस्कार से सम्मानित किया. इसमें मुख्य अतिथि के रूप में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और पूर्व लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन उपस्थित थे. हमने प्रत्येक को पुरस्कार के साथ 1 लाख रूपये की राशि भी दी. हालांकि आयोजन के पूर्व हमारे पास पैसे नहीं थे, लेकिन हमने यह विचार किया कि यदि आसुरी शक्तियां इतने बड़े-बड़े पुरस्कार देती हैं तो हमें भी कुछ अच्छी सम्मानजनक राशि देनी चाहिए. फिर हमने प्रयत्नपूर्वक आवश्यक राशि का प्रबंध किया. पुरस्कार में छत्रपति शिवाजी महाराज और वीर महाराणा प्रताप की तस्वीर वाली ट्रॉफी दी जाती है क्योंकि वे भारतीय संस्कृति महान योद्धा थे, जिनसे हमें प्रेरणा मिलती है.
अपने अभियान को आगे बढ़ाने के लिए आपने कौन सी योजना या रणनीति बनाई है और समाज से आपकी क्या अपेक्षा है?
हम चाहते है कि राष्ट्रव्यापी संगठन खड़ा हो. हर राज्य में समिति बने, इसके बाद राज्य समिति, जिला स्तर तक समितियों का गठन करे और जिला समिति, तालुका समिति बनाए. हमारे अभियान के विचार को आगे बढ़ाने हेतु संगठन विस्तार के माध्यम से जागरूकता फैलाने के लिए इस दिशा में कार्यरत है. समाज की भी जिम्मेदारी है कि वह जागरूक रहे ताकि उनके परिजन कुसंस्कारों का शिकार न बनें. समाज से यही अपेक्षा है कि वह हमारे अभियान के साथ जुड़ कर भारतीय संस्कृति बचाने के लिए हमारा सहयोग करे.
2047 तक विकसित राष्ट्र बनने की राह में हमारी प्रमुख चुनौती क्या है?
देश के सामने यह प्रश्न है क्योंकि हमने अपने सामने एक महान देश बनाने का लक्ष्य रखा है. 2047 में हम विकसित राष्ट्र बनेंगे. निश्चित रूप से हम आर्थिक, सैन्य, वैज्ञानिक आदि सभी क्षेत्रों में विश्व की महाशक्ति बनेंगे, लेकिन क्या सांस्कृतिक रूप से हम कंगाल देश बनेंगे? क्या हम अमेरिका जैसा बनकर रह जाएंगे? अमेरिका में तो और भी भयंकर परिस्थिति है. लोग अपना लिंग परिवर्तन करवा रहे है. लड़का, लड़की बन रहा है और लड़की, लड़का बन रही है. पारिवारिक व्यवस्था पूरी तरह से टूट चुकी है. कुकर्म तो वहां सर्वाधिक होते हैं. मुझे लगता है कि भारत की सनातन एवं सांस्कृतिक पहचान को बरकरार रखना और उसे संरक्षित-संवर्धित करना ही विकसित राष्ट्र बनने की राह में प्रमुख चुनौती है. आज भारत से दुनिया यह आशा अपेक्षा करती है कि भारत हर समस्या का समाधान दे सकता है. भारत विश्वगुरु की भूमिका निभाए, यह पूरी दुनिया चाहती है. वीर सावरकर ने इस संदर्भ में बहुत ही प्रासंगिक विचार रखे हैं और कहां से खतरे आने वाले हैं उस बारे में भी सतर्क किया है. भारत की संस्कृति का नष्ट होना पूरी दुनिया और मानवजाति के लिए नुकसानदेह है.
ओटीटी के लिए क्या कोई प्रभावी कानून है और इस पर नियंत्रण रखने हेतु क्या सेंसर बोर्ड जैसी संस्था बनाई जानी चाहिए?
ओटीटी से सम्बंधित जो कानून बने हुए हैं, वह भी काफी प्रभावी हैं. वे इतने पंगु नहीं है जितना लोग समझते हैं. यदि हम जागृति फैलाते हैं तो इस कानून में बहुत से ऐसे प्रावधान हैं, जिसका उपयोग करने से दोषियों को कानून के कठघरे में खड़ा कर सकते हैं. शिकायत करने पर कार्रवाई होना संभव है. लेकिन मैं आपसे सहमत हूं कि इस पर एक सेंसर बोर्ड बनना चाहिए.
आपने ‘लॉ ऑफ़ एथिक्स कोड’ कानून बनाने की मांग की थी. इस संदर्भ में जानकारी दीजिए?
वकील विष्णु जैन के साथ मिलकर हमने केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल से भेंट कर मेमोरंडम दिया है. जिसमें हमने मांग रखी है कि ‘लॉ ऑफ़ एथिक्स कोड’ का गठन किया जाए. जो नुकसान अलाउद्दीन खिलजी और औरंगजेब ने नहीं किया, उससे ज्यादा नुकसान ये उत्तेजक कंटेंट बनाने वाले कर रहे है. इसलिए इसे राष्ट्रविरोधी गतिविधि घोषित करना चाहिए. अमेरिका में ड्रग्स तस्करी की सजा 50 साल है. इसी तरह राष्ट्र विरोधी गतिविधि के विरुद्ध सख्त कानून की आवश्यकता है. यह कानून सुनिश्चित करेगा कि फिल्मों के दृश्य, कपड़े और भाषा-संवाद मर्यादित हो और यदि कोई इससे जुड़ी धाराओं का उल्लंघन करता है तो प्रोड्यूसर, डायरेक्टर, एक्टर, ऐक्ट्रेस, फोटोग्राफर, और स्टोरी राइटर के विरुद्ध आरोप लगेगा. इसके तहत 10 से 20 वर्ष की सजा होगी. 3 साल तक बेल नहीं मिलेगी. फ़ास्ट ट्रेक कोर्ट में 4 माह में ट्रायल होगा. इस तरह से कड़े कानून का हमने प्रस्ताव दिया है. हम मानते है कि इसके अलावा कोई उपाय नहीं है. इस कानून के दायरे में अश्लील फिल्म बनाने वाले से लेकर इसका प्रसार करने वाले सभी आ जाएंगे.
किशोरवयीन बच्चों को मोबाईल के दुष्प्रभावों से कैसे दूर रखा जा सकता है?
हर स्मार्ट फोन में पैरेंट्ल कंट्रोल सिस्टम है, इसका उपयोग किया जाना चाहिए. माता-पिता और टीचर की इसमें अहम भूमिका है. जैसा आप बच्चों को संस्कारित करेंगे उतना ही उन पर अच्छा प्रभाव पड़ेगा. मोबाईल से दूर रखने हेतु बच्चों को समय दीजिए, उन्हें कमरे में अकेले न छोड़ें और उन्हें रचनात्मक कार्यों एवं खेल खेलने के लिए प्रोत्साहित करें. इसके साथ ही बच्चे मोबाईल में क्या देख रहे हैं, इसकी समय-समय पर निगरानी भी करें.
समाज को पथभ्रष्ट करने हेतु किसी एजेंडे के तहत नेरेटिव गढ़ने के लिए वेब सीरीज एवं अन्य फिल्में बनाई जा रही हैं. इस पर आपका क्या कहना है?
यह सत्य है कि समाज को पथभ्रष्ट करने के लिए और हिन्दू धर्म एवं समाज का अपमान करने हेतु एक एजेंडे के तहत बहुत सारी फिल्में बनाई जाती रही हैं. वामपंथी देश में पूरी तरह समाप्त नहीं हुए हैं, वे बस थोड़े कमजोर हुए हैं. उनका प्रयास यही है कि कैसे देश को तोड़ा जाए. उनकी सोच ही विभाजनकारी और समाज एवं राष्ट्रविरोधी है.
वर्तमान सरकार से आपकी क्या अपेक्षा है?
2014 के पहले जो उत्तेजक विज्ञापन आते थे, अब उस पर नियंत्रण पा लिया गया है. पहले की तुलना में वह बहुत ही कम हो गए हैं. आज देश में राष्ट्रीय विचारों की सरकार है, इसलिए मुझे पूर्ण विश्वास है कि सरकार इस दिशा में अवश्य ही कुछ न कुछ ठोस कदम उठाएगी. इस सम्बन्ध में राजीव चंद्रशेखर और अनुराग ठाकुर ने अपनी बात रखी है. यह सरकार जो कदम उठाने वाली होती है, वह पहले नहीं बताती है. सरकार 370 हटाने वाली है, इसकी किसने कल्पना की थी. इसलिए सकारात्मक उम्मीद की जा सकती है.
पाठकों को आप क्या संदेश देना चाहेंगे?
मैं सुधि पाठकों को यही सन्देश देना चाहता हूं कि ओटीटी, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म, फिल्म इत्यादि ऑडियो विजुअल के माध्यम से यह जो खतरा आ रहा है, इसे आप सभी गंभीरता से लें और इसे रोकने के लिए हम क्या कर सकते हैं, इस पर विचार करें और अपने-अपने स्तर पर कानून के दायरे में रहते हुए आगे उचित कार्रवाई करने की पहल करें.