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अजमेर – पुष्कर घाटी में गूंजा भारतीय रण संगीत

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अजमेर. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अजमेर महानगर के घोष दल ने मंगलवार शाम 6 बजे पुष्कर घाटी स्थित हिन्दुआ सूरज महाराणा प्रताप स्मारक पर भारतीय रण संगीत का प्रदर्शन कर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया.

स्वर साधना से राष्ट्र साधना शीर्षक पर आधारित घोष प्रदर्शन के दौरान 40 मिनट तक लगातार भारतीय रण संगीत का वादन हुआ. घोष वादन से उठती स्वर लहरियां पुष्कर घाटी की पहाड़ियों को गूंजाती रहीं.

शास्त्रीय धुनों पर आधारित विविध रचनाओं जैसे उदय, श्रीराम, सोनभद्र, चेतक, सागर, मेवाड़, अजेय, स्वागत प्रणाम, मीरा, भूप, तिलंग, शिवरंजनी, शिवराजः, पहाड़ी, जयोस्तुते, कर्नाटकी, गोवर्धन, जन्मभूमि, केदार, बंगश्री, देशकार, हंसध्वनि, श्रीपाद, केशव, गीत, भारतम, गणेश, गायत्री आदि का वादन आनक, शंख तथा वेणु पर बखूबी प्रदर्शन किया गया.

इसके साथ ही विविध ताल वाद्यों का भी वादन हुआ. कार्यक्रम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय शारीरिक शिक्षण प्रमुख सुनील कुलकर्णी, महानगर संघचालक खाजुलाल चौहान सहित अनेक गणमान्यजन उपस्थित रहे.

सुनील जी ने कहा कि 1925 में संघ की स्थापना के पश्चात प्रारंभिक काल में घोष अंग्रेजी धुनों पर बजाया जाता था. धीरे-धीरे स्वयंसेवकों ने शास्त्रीय धुनों पर आधारित विविध रचनाओं जैसे उदय, श्रीराम, सोनभद्र, चेतक, सागर, मेवाड़, अजेय, स्वागत प्रणाम, मीरा, भूप, तिलंग, शिवरंजनी, शिवराजः, पहाड़ी, जयोस्तुते, कर्नाटकी, गोवर्धन, जन्मभूमि, केदार, बंगश्री, देशकार, हंसध्वनि, श्रीपाद, केशव, गीत, भारतम, गणेश, गायत्री आदि विकसित कीं, और उनको बजाया जाने लगा.

उन्होंने कहा कि हिन्दू समाज बार-बार सो जाता है, उसे जगाने की आवश्यकता रहती है. जब-जब धर्म युद्ध होता है, हिन्दू को गौरवपूर्ण इतिहास याद दिलाना पड़ता है. स्वर साधना से राष्ट्र साधना भी यही प्रयास है.

उन्होंने कहा कि संघ को कोई व्यक्ति जब बाहर से देखता है, वह जिस-जिस प्रक्रिया को देखता है, वैसा ही अर्थ निकालता है. जैसे प्रातःकाल में कोई व्यक्ति देखता है कि संघ में कुछ लोग व्यायाम कर रहे हैं तो उसे एक जिम का नवीनतम प्रारूप अखाड़ा समझता है. कुछ लोग देखते हैं कि सायंकाल में बच्चे आपस में खेल रहे हैं तो उन्हें लगता है कि व्यक्ति बच्चों को खेल सिखा रहा है, उसे खेल का क्लब समझता है. जब कुछ लोग घोष बजाते देखते हैं तो बैंड की पार्टी समझते हैं आदि-आदि. पर, वास्तव में संघ को समझना है तो संघ में आना पड़ेगा, संघ को समझने के लिए संघ में आने की आवश्यकता है.

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