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सरकार्यवाह जी का साक्षात्कार – संघ का काम समाज का संगठन करना है

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‘पंच परिवर्तन आज समाज की आवश्यकता’

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का कार्य निरंतर बढ़ रहा है. इस दृष्टि से समाज प्रबोधन और आसुरी ताकतों की चुनौतियों का प्रतिकार करने में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का एक विशेष योगदान रहा है. राष्ट्रीय विचार के प्रसार को गति तथा अपने कार्य को अधिक गहराई व विस्तार देने के लिए संघ ‘पंच परिवर्तन’ की संकल्पना के साथ तैयार है. नागपुर में हाल ही में संपन्न प्रतिनिधि सभा के अवसर पर संघ शताब्दी वर्ष के निमित्त अनेक आयामों पर कार्य करने का निर्णय लिया गया है. संघ की भावी योजनाओं को लेकर पाञ्चजन्य और आर्गनाइजर की सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले जी के साथ बातचीत के संपादित अंश…

इस वर्ष प्रतिनिधि सभा में सम्मिलित प्रतिनिधियों की संख्या अचानक बढ़ गई दिखती है. ऐसा कैसे हुआ?

ऐसा नहीं है कि संख्या अचानक बढ़ गई है. यह बढ़ोतरी धीरे धीरे होती गई है. कार्य के विस्तार के साथ स्वयंसेवकों की संख्या बढ़ने से उस अनुपात में प्रतिनिधियों की संख्या बढ़नी ही थी. जब शाखाएं बढ़ती हैं तो सक्रिय स्वयंसेवकों की संख्या स्वत: बढ़ जाती है तो उसके आधार पर प्रतिनिधियों की संख्या भी बढ़ती है. दूसरा, इनमें निमंत्रित बंधु-भगिनियों की भी एक बड़ी संख्या सम्मिलित है. नागपुर की इस प्रतिनिधि सभा में विविध संगठनों से अधिक प्रतिनिधियों से आने का आग्रह किया था.

तीसरा, गत तीन वर्ष में कोरोना महामारी की वजह से प्रतिनिधियों की संख्या पर थोड़ी पाबंदी लगाई गई थी. संख्या सीमित रहे इसका हमें ध्यान रखना था, इसलिए कुछ समूहों को हमने अपेक्षित ही नहीं किया था. उदाहराणार्थ, एक वर्ष विभाग प्रचारक अपेक्षित नहीं थे तो एक वर्ष विविध क्षेत्र के कार्यकर्ता अपेक्षित नहीं थे. इस कारण तब संख्या कम रही थी; यही वजह है कि अब ऐसा आभास हो रहा है कि यह एकदम से बढ़ गई.

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शताब्दी वर्ष के निमित्त क्या विशेष लक्ष्य निर्धारित किए गए हैं?

संघ के शताब्दी वर्ष के संदर्भ में हमने संगठनात्मक दृष्टि से दो लक्ष्य निर्धारित किए हैं – शाखाओं का विस्तार व कार्य की गुणवत्ता. सभी कार्यकर्ताओं के सामने ये दो लक्ष्य हैं. कार्य की गुणवत्ता बढ़ाने से प्रभाव बढ़ेगा. आग्रह यही है कि संख्यात्मक विस्तार के साथ-साथ गुणात्मक वृद्धि भी हो.

दूसरा, सामाजिक दृष्टि से हमने पंच परिवर्तन का विषय सामने रखा है. हमारा आग्रह है पंच परिवर्तन का विमर्श राष्ट्रीय दृष्टि से आगे बढ़ाया जाए. समाज की सज्जन शक्ति और संस्थाओं की ताकत इस दृष्टि से साथ आए. तो संघ के शताब्दी वर्ष में हमने संगठनात्मक और सामाजिक स्तर पर इन सभी विषयों पर पहल करने की योजना बनायी है.

पंच परिवर्तन की इस सारी संकल्पना को सामान्य समाज को कैसे बताएंगे और इसमें क्या चुनौती देखते हैं?

अनुकूल समय में ही अतिरिक्त सावधानी, अधिक श्रम तथा गहन विचार की आवश्यकता होती है. आज राष्ट्रीय विचार के प्रसार के लिए समय अनुकूल लगता है. किंतु यह अनुकूलता शांति से बैठने, आनंद लेने के लिए नहीं है. यह परिश्रम की पराकाष्ठा दिखाने का समय है. संघ के स्वयंसेवक तथा विभिन्न संगठनों के कार्यकर्ताओं को धुरी बनाकर कार्य को गहराई देने के लिए ही ‘पंच परिवर्तन’ की संकल्पना पर आगे बढ़ने का विचार हुआ है.

वैसे भी, पंच परिवर्तन आज सामान्य समाज की आवश्यकता है. पंच परिवर्तन में समाज में समरसता का आग्रह, पर्यावरण के अनुकूल जीवन शैली, पारिवारिक मूल्यों को बढ़ावा देने हेतु कुटुंब प्रबोधन, जीवन के हर पक्ष में ‘स्व’ यानी भारतीयता का आग्रह और नागरिक कर्तव्यों की दृष्टि से समाज जागरण करने जैसे आयाम हैं, जो वर्तमान में सामान्य समाज से जुड़े हैं. दूसरा, इन विषयों को व्यक्ति, कुटुंब और अपने शाखा क्षेत्रों तक लेकर जाना है.

व्यापक समाज में लेकर जाना है. यह विषय हमने सामान्यत: कार्यकर्ताओं के समक्ष रखा है. इसलिए स्वयं के उदाहरण से परिवर्तन लाने का प्रयास होना चाहिए. यह केवल वैचारिक मंथन का विषय नहीं है, यह आचरण और व्यवहार का विषय है. साथ ही, सामाजिक सद्भाव को लेकर सामाजिक वर्गों के प्रमुखों की बैठकें होती हैं. व्यापक समाज में हमारा संपर्क है. तो हम उनके बीच इस विषय को ले जाएंगे और इस दृष्टि से आग्रह करेंगे.

इस बार की प्रतिनिधि सभा में देवी अहिल्याबाई होल्कर का विशेष उल्लेख हुआ है. उनके त्रिशताब्दी वर्ष के अवसर पर संघ ने क्या कोई विशेष कार्यक्रमों की योजना बनायी है?

वीरत्व और नारी शक्ति की प्रतिमूर्ति प्रात:स्मरणीय देवी अहिल्या बाई होल्कर का नाम हमारे एकात्मता स्तोत्र में आता है. अपने इतिहास का ठीक से विश्लेषण करें तो उन्होंने समाज, धर्म, शासन, प्रशासन से लेकर कई क्षेत्रों में एक श्रेष्ठ उदाहरण प्रस्तुत किया है. आज उनकी त्रिशताब्दी पर हमने दो – तीन उद्देश्य सामने रखे हैं. सामान्यत: हिन्दू समाज में एक विमर्श खड़ा किया जाता है कि समाज के वंचित वर्ग के लोगों को किसी प्रकार का योगदान करने का मौका ही नहीं मिला.

इसी प्रकार महिलाओं के संदर्भ में भी एक विकृत विमर्श खड़ा किया जाता है. लेकिन देखा जाए तो ऐसे सभी विकृत विमर्श को अहिल्याबाई होल्कर का जीवन एक सटीक उत्तर देता है. सामाजिक दृष्टि से वह जिस समुदाय से आती थीं, फिर उनके पति का भी जल्दी स्वर्गवास हो गया था, तो ऐसी सब परिस्थिति के बाद भी देवी अहिल्याबाई ने जो एक श्रेष्ठ शासक का उदाहरण प्रस्तुत किया, वह हिन्दू समाज के एक ऐतिहासिक पक्ष, एक समर्थ विमर्श को सामने रखता है.

दूसरा, वर्तमान समाज में भी महिलाओं के सशक्तिकरण की, उनकी सहभागिता की बहुत चर्चा होती है. इसी वर्ष महिला समन्वय की हमारी बहनों ने देशभर में 400 से अधिक सम्मेलन किए. जिनमें पांच लाख से अधिक महिलाओं की सहभागिता रही. इस दृष्टि से देवी अहिल्याबाई की त्रिशताब्दी उस कार्य को आगे बढ़ाने के लिए एक अच्छा अवसर है. इसमें संघ के कार्यक्रम करने की बजाय एक व्यापक योजना के अंतर्गत समाज में एक समारोह समिति बनायी जाएगी जो बाकी महिला संगठनों और समाज के अन्यान्य लोगों के साथ मिलकर त्रिशताब्दी समारोह आयोजित करेगी. इनमें समाज में साहित्य, विविध आयामों पर व्याख्यान सहित अन्यान्य कार्यक्रमों के बारे में सोचा गया है.

संघ का कार्य बढ़ रहा है, मगर इसके साथ ही भारत विरोधी और संघ विरोधी शक्तियों की रणनीतियां भी बदल रही हैं. इस चुनौती से निपटने के लिए संघ की क्या योजना है?

हमारे विरोधी हैं, इससे भी सिद्ध होता है कि हम बढ़ रहे हैं. भारत का महत्व और संघ का प्रभाव नहीं बढ़ता तो विरोध करने का कोई कारण ही नहीं होता. विरोध से यही सिद्ध होता है कि तथाकथित विरोधियों ने एक प्रकार से स्वीकार किया है कि हमारा प्रभाव बढ़ रहा है. दूसरा, इस नाते उनकी जो भी रणनीति हो, संघ ने अपनी उपस्थिति से उसका उत्तर देने का विचार किया है. हमारा मानना है कि संघ कार्य के व्यापक होने एवं विभिन्न आयामों में स्वयंसेवकों की सहभागिता बढ़ने, साथ ही सामाजिक, वैचारिक आदि विभिन्न प्रकार के कार्यों में लोगों को जोड़ने से ही तथाकथित विरोधियों की रणनीति का उत्तर देना संभव है.

आपका सरकार्यवाह के तौर पर पुनर्निर्वाचन हुआ है. संघ के आलोचक इसे एक निरंकुश संगठन मानते हैं तो सामान्य लोग इसके बारे में जानने को उत्सुक रहते हैं या उलझन में रहते हैं. संघ में जिस प्रकार का लोकतंत्र है, उसे आप कैसे विश्लेषित करेंगे

समझ नहीं आता कि संघ पर एक निरंकुश संगठन होने का आरोप क्यों लगाया जाता है, क्योंकि संघ तो खुले वातावरण में काम करने वाला संगठन है. कोई भी व्यक्ति शाखा में आकर उसमें भाग ले सकता है. पूर्व पूजनीय सरसंघचालक माननीय बालासाहब देवरस जी ने एक बार कहा था – “संघ में सर्वोच्च नेतृत्व करने वाले पूजनीय सरसंघचालक जी से एक सामान्य स्वयंसेवक भी प्रश्न पूछता है और सरसंघचालक जी स्वयं उसका उत्तर देते हैं”. संघ में इस प्रकार का लोकतंत्र है. शायद ऐसा किसी और संगठन में नहीं होता. इसलिए समझ में नहीं आता कि आलोचक इस प्रकार के आरोप क्यों लगाते हैं! संघ की कार्यपद्धति पारिवारिकता की है. संघ में सभी स्तरों पर हर निर्णय चर्चा एवं सामूहिक सहमति से होता है.

देश में लोकसभा चुनाव होने वाले हैं और संघ के लिए भी ये चुनाव का वर्ष है. लोकतंत्र के उत्सव को कैसे देखें, इस पर आप स्वयंसेवकों और समाज को क्या संदेश देना चाहेंगे?

इस संदर्भ में मैंने सरकार्यवाह प्रतिवेदन में उल्लेख किया है. यहां प्रतिनिधि सभा में भी पूजनीय सरसंघचालक जी ने अपने समारोप में कार्यकर्ताओं को इस नाते पाथेय दिया है कि लोकतंत्र की इस व्यवस्था में हर नागरिक का कर्तव्य है. पंच परिवर्तन में भी हमने इस नाते आग्रह किया है. हर नागरिक को मतदान का अपना कर्तव्य निभाना है. 100 प्रतिशत मतदान को सुनिश्चत करने के लिए हमें अपने अपने स्थान पर प्रयत्न करके लोकतंत्र की इस व्यवस्था को सुदृढ़ एवं सफल बनाना है.

ऐसे समय पर राष्ट्रीय मुद्दों को समाज के सामने रखना चाहिए; लोकतंत्र के इस पर्व पर चर्चा होनी चाहिए समाजहित, राष्ट्रीय एकात्मता एवं भारत हित की. इस प्रकार के विषय सामने आएं इसके लिए एक व्यापक वातावरण निर्माण करना चाहिए. इसलिए हमने इसे लोक-मत परिष्कार कहा है. पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी ने लोक-मत परिष्कार का आग्रह किया था. यह काम वैसे तो सालभर चलना चाहिए, लेकिन चुनाव के वातावरण में इसे और अधिक आग्रह से करना चाहिए.

इसमें संदेह नहीं कि संघ-कार्य बढ़ रहा है. इस कार्य का अगला चरण क्या होगा?

संगठन के नाते संघ का एक संगठनात्मक ढांचा है. संघ की कार्यकारिणी है. संघ के कार्यकर्ता उस संगठनात्मक ढांचे के अंतर्गत कार्य करते हैं. लेकिन संघ का भाव एक स्वत:स्फूर्त राष्ट्रीय आंदोलन है. इसलिए समाज की सज्जन शक्ति का जागरण और संचालन करते हुए समाज के हर वर्ग समूह को साथ लेकर एक सामाजिक परिवर्तन का काम करना है.

समाज में जातिभेद न रहे. हर वर्ग में राष्ट्रीयता का भाव प्रवाहित होना चाहिए. संघ को लोगों को जागरूक एवं संगठित करते हुए परिवर्तन के लिए अग्रसर करने वाला एक प्रबल राष्ट्रीय आंदोलन बनना है. इसलिए संघ ने शुरू से ही कहा है कि संघ को समाज में संगठन मात्र बनकर काम नहीं करना है, बल्कि समाज का संगठन करने का काम करना है. संघ और संपूर्ण समाज में कोई भेद होना ही नहीं चाहिए. इस दृष्टि से सारी सज्जन शक्ति को राष्ट्रीय आंदोलन के भाव को समझकर इस आंदोलन में अग्रसर होना होगा. इसे संघ का अगला चरण या संघ की दृष्टि कह सकते हैं.

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