सरोज कुमार मित्र
12 जून, 1975 इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के चुनाव को अवैध घोषित कर दिया. इंदिरा गांधी ने इसके खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया, सर्वोच्च न्यायालय की अवकाशकालीन पीठ के जज ने इंदिरा गांधी को संसद के किसी सत्र में भाग लेने या मतदान करने से रोक दिया और मामले की सुनवाई सर्वोच्च न्यायालय की एक पूर्णकालिक पीठ द्वारा करने का आदेश दिया. यह निर्णय 24 जून, 1975 को आया था. न्यायिक व नैतिक दृष्टि से इंदिरा गांधी को तुरंत त्यागपत्र दे देना चाहिए था, मगर उन्होंने न्यायालय के निर्णय की अवमानना करते हुए 25 जून को आपातकाल की घोषणा कर दी. विपक्षी दलों के सभी बड़े नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया और समाचार पत्रों पर बंदिश लगा दी गई. नागरिकों के मौलिक अधिकार समाप्त कर दिए गए और उन्हें सरकार के खिलाफ किसी भी अदालत में मुकदमा दायर करने के अधिकार से वंचित कर दिया गया. संपूर्ण देश में एक भय का वातावरण बन गया था.
गौर करने वाली बात यह है कि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा संसद की कार्यवाही में हिस्सा न लेने और मतदान से वंचित किए जाने के बाद इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री नहीं रह गई थी. अतः इस दौरान उनके द्वारा लिए गए सभी निर्णय तथा विधायी कार्य गैरकानूनी ही कहे जाएंगे और इसके लिए उन्हें दंड भी मिलना चाहिए था. उस समय के उच्च न्यायालय के कामकाज की भी समीक्षा की जानी चाहिए क्योंकि भारत जैसे गणतांत्रिक राष्ट्र में न्यायिक व्यवस्था के अंतर्गत काम करने की जगह देशवासियों पर तानाशाही चलाने का अधिकार इंदिरा गांधी को नहीं मिला था.
आपातकाल के समय केवल कम्युनिस्ट पार्टी को छोड़कर देश में विपक्षी दलों के सभी नेता जेल की सलाखों के पीछे बंद थे. आपातकाल के खिलाफ आवाज उठाने वाला कोई नहीं था.
नानाजी देशमुख के नेतृत्व में गठित लोक संघर्ष समिति ने कुछ कार्यक्रम प्रारंभ किए और लेखक (सरोज कुमार मित्र) को ओडिशा लोक संघर्ष समिति का उत्तरदायित्व सौंपा गया था और इस कारण मिसा कानून के चलते 17 महीने जेल में रहना पड़ा था. 2 अक्तूबर को कटक के काठजोड़ी नदी के किनारे सर्वोदय कर्मियों ने गांधी जयंती मनाई गई. और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अक्तूबर महीने से तानाशाही रवैये के खिलाफ सत्याग्रह आरंभ किया.
सन् 1977 में आम चुनाव हुए और इंदिरा गांधी बुरी तरह पराजित हुई, तब जाकर देश से आपातकाल का दौर समाप्त हुआ.