हिन्दू और हिन्दुत्व के जागरण को पूर्णतः समर्पित प्रखर लेखक, पत्रकार व प्रकाशक श्री तनसुखराम गुप्त का जन्म 25 अगस्त, 1928 को हरियाणा में सोनीपत जिले के निवासी श्री ताराचंद एवं श्रीमती किशनदेई के घर में हुआ था. उनका बचपन पुरानी दिल्ली के कूचा नटवा की गलियों में बीता.
तनसुखराम जी 1939 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सम्पर्क में आये. शाखा जाने से उनके मन में देशभक्ति के संस्कार और प्रबल हो गये. 1942 में ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ में भाग लेने के कारण उन्हें विद्यालय से निकाल दिया गया; पर एक सहृदय अध्यापक के कहने से फिर प्रवेश मिल गया.
1943 में पिताजी के देहांत से परिवार के पालन का भार उनके सिर पर आ गया. अतः उन्होंने प्रथम श्रेणी में हाई स्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण कर नियमित पढ़ाई को विराम दे दिया और दिल्ली नगरपालिका में लिपिक बन गये. 1946 में विवाह के बाद उन्होंने नौकरी छोड़ दी और स्कूल सामग्री तथा अन्य दैनिक उपयोगी वस्तुओं की दुकान खोल ली. कुछ समय बाद उन्होंने अपना पूरा ध्यान पुस्तक बिक्री और फिर पुस्तक प्रकाशन पर ही केन्द्रित कर लिया.
पुस्तक और प्रकाशन व्यवसाय में लगे व्यक्ति में साहित्य सृजन के प्रति प्रायः अनुराग होता ही है. अतः तनसुखराम जी ने कहानी लेखन के माध्यम से इस क्षेत्र में प्रवेश किया. 1946 में उनका पहला कहानी संग्रह ‘तीन कहानियां’ प्रकाशित हुआ. उनकी कहानियां मुख्यतः देश, धर्म और समाज के प्रति त्याग व समर्पण की प्रेरणा देती थीं. इसके बाद मेरा रंग दे बसंती चोला, नैतिक कथायें तथा कई अन्य कहानी संग्रह भी प्रकाशित और लोकप्रिय हुये.
तनसुखराम जी को पारिवारिक कारणों से नियमित पढ़ाई छोड़नी पड़ी थी; पर उनकी पढ़ने की इच्छा बनी हुई थी. अतः निजी रूप से अध्ययन करते हुए उन्होंने संस्कृत की ‘विशारद’ और ‘प्रभाकर’ परीक्षायें उत्तीर्ण कर लीं. अध्ययन और चिंतन-मनन का दायरा बढ़ने के कारण अब वे कहानी के साथ निबन्ध भी लिखने लगे और 361 निबन्धों की पुस्तक ‘निबन्ध सौरभ’ प्रकाशित की.