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औषधियों (फार्मास्‍यूटिकल्‍स) के लिए उत्‍पादन आधारित प्रोत्‍साहन योजना को मंजूरी

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नई दिल्ली. प्रधानमंत्री की अध्‍यक्षता में केन्‍द्रीय मंत्रिमंडल ने वित्त वर्ष 2020-21 से 2028-29 की अवधि में औषधियों (फार्मास्‍यूटिकल्‍स) के लिए उत्‍पादन आधारित प्रोत्‍साहन (पीएलआई) योजना को मंजूरी प्रदान की. योजना से घरेलू निर्माताओं को लाभ मिलेगा, रोजगार सृजन में मदद मिलेगी और उपभोक्‍ताओं को सस्‍ती दरों पर बड़े पैमाने पर औषधियां उपलब्‍ध होने की उम्‍मीद है.

योजना से देश में उच्‍च मूल्‍य के उत्‍पादों के उत्‍पादन को बढ़ावा मिलेगा और निर्यातों में मूल्‍य संवर्धन में वृद्धि होगी. वर्ष 2022-23 से 2027-28 तक छह वर्ष की अवधि के दौरान वृद्धि संबंधी 2,94,000 करोड़ रुपये की कुल बिक्री होगी और कुल 1,96,000 करोड़ रुपये का वृद्धि संबंधी निर्यात होने की उम्‍मीद है. योजना से कुशल और अकुशल दोनों तरह के रोजगार सृजित होंगे, क्षेत्र के विकास के परिणामस्‍वरूप 20,000 प्रत्‍यक्ष और 80,000 अप्रत्‍यक्ष नौकरियां सृजित होने का अनुमान है.

यह योजना औषधीय उद्योग के विकास की प्रमुख योजना का हिस्‍सा होगी. योजना का उद्देश्‍य इस क्षेत्र में निवेश और उत्‍पादन को बढ़ाकर भारत की उत्‍पादन क्षमता को बढ़ाना और औषधीय क्षेत्र में उत्‍पादों के विविधीकरण से लेकर उच्‍च मूल्‍य की वस्‍तुओं के लिए योगदान देना है. योजना का एक और उद्देश्‍य भारत के बाहर वैश्विक चैंपियन तैयार करना है, जिनमें अत्‍याधुनिक और उच्‍चस्‍तरीय सूचना प्रौद्योगिकी का उपयोग करते हुए आकार और पैमाने में बढ़ने की संभावना हो.

उम्‍मीद है कि इससे उभरती हुई थैरेपियां और इन-वि‍ट्रो डायग्‍नोस्टिक उपकरणों के साथ आयातित औ‍षधियों में आत्‍मनिर्भरता सहित जटिल और उच्‍च तकनीक वाले उत्‍पादों के विकास के लिए नवोन्‍मेष को बढ़ावा मिलेगा. इससे गंभीर बीमारियों के इलाज के लिए आवश्‍यक चिकित्‍सा उत्‍पाद भारतीय आबादी तक किफायती दामों में पहुंच सकेंगे. इस योजना से औषधीय क्षेत्र में 15,000 करोड़ रुपये का निवेश होने की उम्‍मीद है.

भारतीय औषधीय उद्योग मात्रा के मामले में दुनिया में तीसरा सबसे बड़ा उद्योग है और मूल्‍य के मामले में यह 40 अरब अमेरिकी डॉलर के बराबर है. भारत विश्‍व में कुल निर्यात होने वाली दवाओं और औषधियों का 3.5 प्रतिशत योगदान देता है. भारत 200 से अधिक देशों और क्षेत्रों को औषधियों का निर्यात करता है, जिनमें उच्‍च नियमित बाजार जैसे अमेरिका, ब्रिटेन, यूरोपीय संघ, कनाडा आदि हैं. भारत के पास औषधियों के उत्‍पादन और विकास के लिए संपूर्ण इकोसिस्‍टम है, जहां कंपनियों के पास अत्‍याधुनिक सुविधाएं और उच्‍च कौशल/तकनीकी श्रम शक्ति है. देश में अनेक जाने-माने औषधीय शैक्षणिक और अनुसंधान संस्‍थान हैं तथा सहायक उद्योगों का सहयोग प्राप्‍त है.

वर्तमान में कम मूल्‍य वाली जेनेरिक औषधियां भारतीय निर्यात का प्रमुख घटक हैं, जबकि पैटेंट वाली दवाओं की घरेलू मांग का बड़ा हिस्‍सा आयात के जरिए पूरा होता है. ऐसा इसलिए है क्‍योंकि भारतीय औषधीय क्षेत्र आवश्‍यक फार्मा अनुसंधान और विकास के साथ उच्‍च मूल्‍य के उत्‍पादन में पीछे हैं. विविध उत्‍पाद श्रेणियों में निवेश और उत्‍पादन को बढ़ाने के लिए वैश्विक और घरेलू उद्योगों को प्रोत्‍साहित करने के लिए एक सुव्‍यवस्थित और सुलक्षित हस्‍तक्षेप जरूर है ताकि विशेष उच्‍च मूल्‍य की वस्‍तुओं जैसे जैव औषधियों, कॉम्‍प्‍लेक्‍स जेनेरिक ड्रग्‍स, पैटेंट वाली औषधियों अथवा ऐसी दवाएं जिनका पैटेंट समाप्‍त होने वाला है और सेल आधारित या जीन थैरेपी उत्‍पाद आदि को प्रोत्‍साहन दिया जा सके.

भारत में पंजीकृत औषधीय वस्‍तुओं के निर्माताओं को उनके वैश्विक उत्‍पादन राजस्‍व (जीएमआर) के आधार पर समूहों में रखा जाएगा ताकि औषधीय उद्योग की योजना व्‍यापक पैमाने पर लागू किया जा सके और साथ ही योजना का उद्देश्‍य पूरा हो सके. आवेदनकर्ताओं के तीन समूहों के लिए योग्‍यता मानदंड निर्धारित किए हैं –

समूह ए – जिन आवेदनकर्ताओं का औषधीय वस्‍तुओं का वैश्विक उत्‍पादन राजस्‍व (वित्त वर्ष 2019-20) 5,000 करोड़ रुपये से अधिक या उसके बराबर है.

समूह बी – जिन आवेदनकर्ताओं का औषधीय वस्‍तुओं का वैश्विक उत्‍पादन राजस्‍व (वित्त वर्ष 2019-20) 500 करोड़ रुपये (समावेशी) और 5,000 करोड़ रुपये के बीच है.

समूह सी – जिन आवेदनकर्ताओं का औषधीय वस्‍तुओं का वैश्विक उत्‍पादन राजस्‍व (वित्त वर्ष 2019-20) 500 करोड़ रुपये से कम है. इस समूह के भीतर उसकी विशेष चुनौतियों और परिस्थितियों के साथ एमएसएमई उद्योग के लिए एक उप-समूह बनाया जाएगा.

प्रोत्‍साहन

योजना के अंतर्गत प्रोत्‍साहन की कुल राशि (प्रशासनिक खर्च सहित) करीब 15,000 करोड़ रुपये है. लक्षित समूहों के बीच प्रोत्‍साहन का आवंटन इस प्रकार होगा –

समूह ए: 11,000 करोड़ रुपये, समूह बी: 2,250 करोड़ रुपये, समूह सी: 1,750 करोड़ रुपये

समूह ए और समूह सी आवेदनकर्ताओं के लिए प्रोत्‍साहन राशि का आवंटन किसी अन्‍य श्रेणी को नहीं दिया जाएगा, लेकिन समूह बी के आवेदनकर्ता को आवंटित प्रोत्‍साहन का यदि उपयोग नहीं होता है तो उसे समूह ए के आवेदनकर्ता को दिया जा सकता है.

वित्त वर्ष 2019-20 को उत्‍पादित वस्‍तुओं की वृद्धि संबंधी बिक्री की संगणना के लिए आधार वर्ष माना जाएगा.

योजना में तीन श्रेणियों के अंतर्गत इस प्रकार से औषधीय वस्‍तुओं को शामिल किया जाएगा…

(क) श्रेणी एक

जैवऔषधीय; संयुक्‍त (कॉम्प्‍लेक्‍स) जेनेरिक औषधि‍यां; पैटेंट दवाएं अथवा ऐसी दवाएं जिनका पैटेंट खत्‍म होने के करीब है; गंभीर बीमारियों के इलाज में काम आने वाली दवाएं; विशेष खाली कैप्‍सूल जैसे एचपीएमसी, फुल्‍लूलन, आंत संबंधी इत्‍यादि; कॉम्‍प्‍लेक्‍स एक्‍सीपिएंट, फाइटो फार्मास्‍यूटिकल्‍स: अन्‍य मंजूर औषधियां.

(बी) श्रेणी दो

सक्रिय औषधीय सामग्री/प्रमुख शुरुआती सामग्री/औषधि ड्रग इन्टरमीडिएट्स.

(सी) श्रेणी तीन

श्रेणी एक और श्रेणी दो के अंतर्गत शामिल नहीं की गईं औषधियां.

ऑटो इम्‍यून ड्रग्‍स, कैंसर रोधी दवाएं, मधुमेह रोधी दवाएं, संक्रमण रोधी दवाएं, हृदय रोग संबंधी दवाएं, साइकोट्रॉपिक ड्रग्‍स और एंटी-रेट्रोवायरल ड्रग्‍स, इन-विट्रो डायग्‍नोस्टिक उपकरण, मंजूर अन्‍य औषधियां, भारत में निर्मित नहीं होने वाली अन्‍य औषधियां.

योजना के अंतर्गत श्रेणी 1 और श्रेणी 2 उत्‍पादों के लिए उत्‍पादन के पहले चार वर्षों में प्रोत्‍साहन की दर 10 प्रतिशत (वृद्धि संबंधी बिक्री मूल्‍य का), पांचवें वर्ष के लिए 8 प्रतिशत और छठे वर्ष के लिए 6 प्रतिशत होगी.

योजना के अंतर्गत श्रेणी 3 उत्‍पादों के लिए उत्‍पादन के पहले चार वर्षों में प्रोत्‍साहन की दर 5 प्रतिशत (वृद्धि संबंधी बिक्री मूल्‍य का), पांचवें वर्ष के लिए 4 प्रतिशत और छठे वर्ष के लिए 3 प्रतिशत होगी.

योजना की अवधि वित्त वर्ष 2020-21 से वित्त वर्ष 2028-29 तक होगी. इसमें आवेदनों की प्रोसेसिंग की अवधि (वित्त वर्ष 2020-21) शुरू होने से लेकर समाप्‍त होने तक की एक वर्ष की वैकल्पिक अवधि (वित्त वर्ष 2021-22), 6 वर्ष के लिए प्रोत्‍साहन और वित्त वर्ष 2027-28 की बिक्री के प्रोत्‍साहन के वितरण के लिए वित्त वर्ष 2028-29 शामिल होगा.

 

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