हकीकत राय एक वीर साहसी बालक था, जिसने हिन्दू धर्म के अपमान का प्रतिकार किया और जबरन इस्लाम स्वीकारने के बजाय मृत्यु को गले लगा लिया. इस 12 वर्षीय वीर बालक ने धर्म परिवर्तन के बदले अपना सिर कटवाना पसन्द किया और बलिदान हो गया. आज इस वीर का नाम वर्तमान पीढ़ी के मानसिक पटल से मिट चुका है और दिल्ली स्थित एक भवन में बलिदानी की मूक प्रतिमा उपेक्षित सी खड़ी है.
हकीकतराय का जन्म सियालकोट में 1724 को हुआ था. उस समय वह एक मात्र हिन्दू बालक मुस्लमान बालकों के साथ पढ़ता था. उस की प्रगति से सहपाठी इर्ष्यालु थे और अकेला जान कर उसे बराबर चिड़ाते रहते थे. एक दिन मुस्लिम बालकों ने देवी दुर्गा के बारे में असभ्य शब्द कहे, जिस पर हकीकतराय ने आपत्ति व्यक्त की. मुस्लिम बच्चों ने अपशब्दों को दोहरा-दोहरा कर हकीकतराय को भड़काया और उस ने भी प्रतिक्रियावश कहा कि – मैं भी मुहम्मद की पुत्री फातिमा के बारे में यही शब्द कहूं तो….
बस फिर क्या, मुस्लिम लड़कों ने मौलवी को रिपोर्ट कर दी और मौलवी ने हकीकतराय को पैगम्बर की शान में गुस्ताखी करने के अपराध में कैद करवा दिया. हकीकतराय के माता-पिता ने एक के बाद एक लाहौर के स्थानीय शासक तक गुहार लगाई. उसे जिन्दा रहने के लिये मुस्लमान बन जाने का विकल्प दिया गया जो उस वीर बालक ने अस्वीकार कर दिया.
बेड़ियां बंधे हाथ ऊपर उठाते हुए बालक गरजा. पहले ये बता, क्या मुसलमानों को मौत नहीं आती. क्या मुसलमान होकर मैं कभी नहीं मरूंगा?
काजी ने कहा – मजाक करता है क्या? इतना भी नहीं जानता हर किसी को एक दिन खाक होना है.
तब बालक ने फिर चीखते हुए कहा – तो जब ऐसा ही है और मौत तय है तो क्यों में अपना धर्म छोड़ दूं? मैं अभी मर जाऊं और तू कल? मौत तो दोनों की ही होगी.
एक बार फिर पूरे जोश में कहा – मैं अपना धर्म नहीं बदलूंगा. किसी कीमत पर भी नहीं. इतना सुनना था कि काजी के आदेश पर बच्चे की हत्या करवा दी.
बालक ने सिर कटवाना सम्मानजनक समझा. अतः 1735 में बसंत पंचमी के दिन हकीकत राय ने अपना बलिदान दिया.
यह पूर्व में घटित क्रूरता और नृशंस्ता का केवल अंशमात्र उदाहरण है. भारत में अत्याचारी मुगल शासकों के कई स्थल, मार्ग और मकबरे सरकारी खर्चों पर सजाये सँवारे जाते रहे हैं. परन्तु इन उपेक्षित वीरों का नाम भी लेना धर्म निर्पेक्षता का उल्लंघन माना जाता रहा है.