‘अखिल भारतीय महिला चरित्र कोश प्रथम खंड – प्राचीन भारत’ का लोकार्पण
नागपुर. संघमित्रा सेवा प्रतिष्ठान सेविका प्रकाशन द्वारा अखिल भारतीय महिला चरित्र कोश प्रथम खंड -प्राचीन भारत का लोकार्पण नागपुर में राष्ट्र सेविका समिति की तृतीय प्रमुख संचालिका ऊषा ताई चाटी की पुण्यतिथि 17 अगस्त, 2022 के दिन हुआ. समारोह में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी तथा राष्ट्र सेविका समिति की प्रमुख संचालिका शांताक्का जी ने भारतीय महिला चरित्र कोश का लोकार्पण किया.
पुस्तक लोकार्पण समारोह में राष्ट्र सेविका समिति की प्रमुख संचालिका शांताक्का जी ने कहा कि आज महिला चरित्र कोश का विमोचन हो रहा है क्योंकि अपनी भारतीय नारी भी ऐसी ही है. भारतीय नारी स्वयं कष्ट उठाकर और दीप की बाती के जैसे स्वयं को जलाते हुए दूसरों को प्रकाश देती है. ऐसे सैकड़ों चरित्र हमारे सामने हैं. इसलिए नारी को शक्ति स्वरूपा कहते हैं. पूज्य संत विनोबा भाव जी हमेशा कहते थे – स्त्री शब्द स्थाई धातु से आया है. उसका अर्थ है एकत्रित करना, समेटना, बनाना, तो वह कहते थे, एकत्रित करना है. सबको इकट्ठा करना, सबको साथ में लेकर जाना, यह आसान बात नहीं है. इसके लिए धैर्य चाहिए. ये सहज गुण भारतीय नारियों में है. दूसरा शब्द महिला का उपयोग करते हुए कहते थे – मही. ये शब्द मह धातु से आया है और मही का दूसरा अर्थ पृथ्वी है.
भारतीय नारियों में पृथ्वी जैसी सहनशीलता है. वो त्यागमयी है, इसलिए वह धैर्य से सब कुछ धारण करती है. महिलाओं का ये सहज गुण है, इसलिए उनकी व्याप्ति बढ़ाना. अपने घर तक सीमित नहीं रखना, परिवार तक सीमित नहीं रखना. बाहर आकर समाज और राष्ट्र में भी एक सकारात्मक वातावरण निर्माण करें. नारियों का ऐसा सहज गुण और उनका व्यवहार तो हम वेद काल से देखते आ रहे हैं तो इस चरित्र कोश में उसका उल्लेख है कि कैसे असामान्य कार्य को सामान्य कार्य की तरह गृहणी ने किया.
इच्छा शक्ति, दान शक्ति, क्रिया शक्ति का सप्तशती में भी उल्लेख मिलता है. नारियों में यह तीनों गुण रहते हैं. इच्छा शक्ति को संकल्प शक्ति के रूप में परिवर्तन करते हुए श्रेष्ठ संतान को जन्म दे सकती है और अपने सही दान के उपयोग से उसको संस्कार देते हुए एक सज्जन व्यक्तित्व का निर्माण कर सकती है और अपनी क्रियाशक्ति के माध्यम से सज्जन व्यक्तित्व का उपयोग समाज हित, राष्ट्र हित के लिए तत्पर रहते हैं. स्वयं भी समाज और राष्ट्र हित की दृष्टि से कार्य करती है और अपने पूरे परिवार, उसके बाहर भी जाकर समाज को भी प्रेरणा देती है.
हर नारी में यह तीनों गुण रहते हैं. इसलिए उनको कहा है सर्वाधार यानि सबको अपनी इस शक्ति के माध्यम से सहयोग देती है, सभी को विश्वास देती है और दृढ़तापूर्वक अपने को स्थापित करती है. अपने अस्तित्व को दिखाती है. संपूर्ण विश्व, सृष्टि की चिंता करती है वही भारतीय नारी है. ऐसा प्रत्यक्ष दिखने वाला चरित्र इस चरित्र कोश पुस्तक में मिलता है. जैसे माता सीता जी ने एक मां के नाते, एक पत्नी के नाते, एक रानी के नाते अपना कर्तव्य निभाते हुए, अपने धर्म का संरक्षण किया और धर्म के संरक्षण के लिए स्वयं कष्ट झेला. समाज को दिशा दी और अंत में अपने अस्तित्व को भी दिखाया. वेद, रामायण और महाभारत से लेकर आज तक के चरित्र का उदाहरण इस पुस्तक में है. आज भी भारतीय नारी ऐसी है, ये समाज में और राष्ट्र के कोने-कोने तक इस पुस्तक के माध्यम से पहुंचाना हम सब का कर्तव्य है.
चरित्र कोश पुस्तक के लेखन कार्य में चित्रा ताई, विद्या ताई, मेघा जी और अन्य ने बहुत परिश्रम किया है.