भारत के संविधान में पशुओं की सुरक्षा एक मौलिक कर्तव्य है, जो अनुच्छेद 48ए राज्य के नीति दिशा-निर्देश के अन्दर दिया गया है. इसके अतिरिक्त पशु कल्याण के लिए पशु क्रूरता निषेध एक्ट 1960 व वन्य-प्राणी सुरक्षा एक्ट 1972 है. इसके अतिरिक्त गोरक्षा व जानवर सुरक्षा कानून केन्द्र स्तर व राज्य स्तर पर बनाए गए हैं. भारतीय दण्ड संहिता 1860 (आईपीसी) की धारा 428 व 29 के अन्दर जानवरों के प्रति हिंसा व क्रूरता को रोकने के लिए सजा का प्रावधान है.
भारत में ‘हलाल’ के नाम पर पशुओं को क्रूरता से मारा जाता है. मुस्लिम समुदाय द्वारा शरियत के नाम पर हलाल तरीके से पशुओं को क्रूरता से मारा जाता है. पशुओं को क्रूरतापूर्ण तरीके से ‘हलाल’ के नाम पर मारना एक क्रूरतापूर्ण कृत्य है. ‘हलाल’ शरियत के नाम पर थोपी जाने वाली पद्धति है, जिसका भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में इस्तेमाल गैर कानूनी व असंवैधानिक है.
बेल्जियम सरकार ने ‘हलाल’ पद्धति से पशु वध पर कानूनी प्रतिबन्ध लगा दिया था. जिसके विरुद्ध मुस्लिम समुदाय ने यूरोपीयन यूनियन के सर्वोच्च न्यायालय (यूरोपियन कोर्ट ऑफ जस्टिस) में अपील किया, जिसे यूपोरियन कोर्ट ने निरस्त करते हुए हलाल प्रतिबन्ध को सही ठहराया और सभी यूरोपीयन देशों को निर्देश दिया कि वे हलाल पर प्रतिबन्ध लगाने के लिए स्वतंत्र है. बेल्जियम सरकार के प्रतिबन्ध को यूरोपियन कोर्ट ऑफ जस्टिस ने उचित ठहराया है.
श्रीलंका में बहुसंख्यक बौद्ध समाज के विरोध करने के उपरान्त ‘हलाल’ को बंद कर दिया गया. ‘हलाल’ के विरुद्ध जर्मनी, फ्रांस, पोलैण्ड, ब्रिटेन, अमेरिका आदि देशों में इसके विरुद्ध आवाज उठाई जा रही है. इन देशों में पशुओं के अधिकारों से सम्बन्धित संस्थाएं व समूह हलाल पर प्रतिबन्ध लगाने की मांग कर रही है. सभी पशु प्रेमी व उनके अधिकारों की रक्षा करने वाली संस्थाओं की ओर से हलाल नियंत्रण मंच भी भारत सरकार से पुरजोर मांग करता है कि हलाल पद्धति पर कानूनी रोक लगाई जाए. ताकि पशुओं का क्रूरतापूर्ण वध रोका जा सके.
भारत में ‘हलाल’ को लेकर कानूनी नियंत्रण बहुत आवश्यक है. हाल ही में दक्षिणी दिल्ली नगर निगम द्वारा प्रस्ताव पारित किया गया कि मांस की दुकानों व रेस्टोरेंटों में स्पष्ट तौर पर दर्शाना होगा कि वे अपने ग्राहकों को हलाल एवं झटका में से कौन सा मांस बेच अथवा परोस रहे हैं. ‘हलाल’ नियंत्रण मंच देश भर के नगर निगमों, नगर पालिकाओं, नगर पंचायतों से अनुरोध करता है कि वे भी स्थानीय तौर पर दक्षिण दिल्ली नगर निगम की तरह के प्रस्ताव पारित करे ताकि सिक्खो एवं दलित हिन्दुओं के साथ मजहबी आधार पर भेदभाव तथा उनके रोजगार एवं धार्मिक अधिकारों का हनन रोका जा सके.
आज पूरी दुनिया कोविड-19 महामारी से जूझ रही है, जिससे लगभग 8 करोड़ लोग संक्रमित हुए हैं और 18 लाख के लगभग लोग अपनी जान गवा चुके हैं. ब्रिटेन और अमेरिका में कोविड-19 वैक्सीन लगनी शुरू हो गयी है और कुछ दिनों में ही यह भारत में भी लगना शुरू हो जाएगी. इसी दौरान दक्षिणी पूर्वी एशियाई देशों – इंण्डोनेशिया व मलेशिया में ‘हलाल’ वैक्सीन लगाने की मांग आई है, यह दुर्भाग्यपूर्ण है. हलाल नियंत्रण मंच इसकी निन्दा करता है और मांग करता है कि गैर मुसलमानों को हलाल वैक्सीन ना लगाई जाए. हैरानी की बात है कि कोविड-19 की वैक्सीन बनाने के लिए कोई भी मुस्लिम देश सक्षम नहीं है. मुस्लिम समुदाय को यह याद रहना चाहिए कि आजतक उन्होंने कोई भी जीवनरक्षक औषधि की खोज नहीं की है.
इसी बीच कुछ रूढ़िवादी मजहबी एवं कट्टरवादी मानसिकता वाले लोग और संगठनों द्वारा वैक्सीन को मजहबी आधार पर बांटने की मांग होने लगी है. यह बात अमानवीय ही नहीं, बल्कि पूरी मानव सभ्यता के विरुद्ध है.
‘हलाल’ नियंत्रण मंच इस तरह की किसी भी मांग का विरोध एवं निन्दा करता है. कोरोना के संकट काल में लाखों लोगों की मौत हो चुकी है. भारत सहित विश्व के सभी देश कोरोना संक्रमण से जूझ रहे हैं, त्रासदी के इस दौर में अस्पतालों, डॉक्टर, नर्सों, सफाईकर्मी एवं पुलिस कर्मचारी सहित अन्य कोरोना योद्धाओं ने बिना किसी भेदभाव के महामारी से लाखों लोगों की जान बचाई है. आज इस समस्या से निजात पाने के लिए हरसंभव प्रयास जारी है, ऐसे में कई देशों में वैक्सीन बनाने की प्रक्रिया शुरू हुई है जो अपने अंतिम चरण में है.
हमें ध्यान रखना चाहिए हलाल-सर्टिफिकेशन से जो पैसे वसूल किया जाता है. उसका उपयोग इस्लामिक कट्टरपंथी व आतंकवादी संगठनों द्वारा किया जाता है. ‘हलाल’ का नियंत्रण देश की सुरक्षा की दृष्टि से भी बहुत जरूरी है. गैर मुसलमानों के धार्मिक व मौलिक अधिकारों की हनन और जानवरों के प्रति क्रूरता रोकने के लिए भी ‘हलाल’ पर कानूनी नियंत्रण समय की मांग है. कोरोना वैक्सीन को ‘हलाल’ करने की मांग गैर जरूरी एवं मानव सभ्यता के विरुद्ध है.