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नवीन शिक्षा नीति – राष्ट्रीयता के भाव के साथ ही छात्रों के व्यक्तित्व का समग्र विकास होगा

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नई दिल्ली. केन्द्र सरकार ने शिक्षा के क्षेत्र में भारत की आवश्यकताओं के अनुरूप नई शिक्षा नीति की घोषणा की है. नवीन शिक्षा नीति में विद्यालयीन शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा एवं शोध संस्थानों तक में गुणात्मक परिवर्तन किये जाएंगे. शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास ने नई शिक्षा नीति का स्वागत करते हुए आशा व्यक्त की कि देश के विद्यार्थियों में नीति के लागू होने से अन्तर्राष्ट्रीय चुनौतियों का मुकाबला करने का साहस पैदा होगा.

न्यास के राष्ट्रीय सचिव अतुल कोठारी ने मानव संसाधन विकास मंत्रालय का नाम शिक्षा मंत्रालय किये जाने का स्वागत करते हुए कहा कि अब मंत्रालय शिक्षा को मूल्यपरक बनाने में महती भूमिका निभाएगा. नई शिक्षा नीति में पांचवी तक की पढ़ाई मातृभाषा में होगी. शिक्षा में त्रिभाषा-सूत्र लागू किया जाएगा. क्विज, खेलकूद और व्यावसायिक शिक्षा से जुड़े विभिन्न संवर्धन गतिविधियों के लिये बिना बस्ते वाले दिन (बेगलेस डेज) को सुनिश्चित किया जाएगा. बोर्ड परीक्षाओं के पैटर्न में बड़ा बदलाव होगा. बोर्ड परीक्षाएं ज्ञान के अनुप्रयोग को जांचने पर आधारित होंगी ना कि रटने की क्षमता पर . माध्यमिक और उच्च माध्यमिक स्तर से ही व्यावसायिक शिक्षा को बढ़ावा दिया जाएगा.

नई शिक्षा नीति के जरिये दो करोड़ बच्चों को मुख्य धारा में लाया जाएगा. सैकेण्डरी तक की शिक्षा सबको देने तथा 2030 तक 100% जी.ई.आर. का लक्ष्य रखा गया है. रिसर्च को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय अनुसंधान फाउण्डेशन की स्थापना की जाएगी. पृथक से बी.एड. कॉलेज बंद किये जाने, सामान्य कॉलेजों से चार साल की बी.एड. कोर्स लागू होगा. सरकारी और निजी उच्च शिक्षा संस्थानों के लिए एक समान मानदंड तय किये जाएंगे.

राष्ट्रीय शिक्षा नीति का उद्देश्य ऐसे नागरिकों का निर्माण करना है जो विचारों से, कार्य व्यवहार से एवं बौद्धिकता से भारतीय बनें. इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में शिक्षा के अलग-अलग स्तरों पर सभी विषयों में भारतीय ज्ञान परंपरा, कला, संस्कृति एवं मूल्यों का समावेश की बात कही गयी है.

शिक्षा नीति में वर्तमान शिक्षा प्रणाली के विभक्त स्वरुप को दूर करते हुए शिक्षा को समग्र दृष्टि देने का कार्य किया है. शिक्षा के सभी स्तरों पर पाठ्यक्रम में तालमेल बनाया जाएगा. छात्रों के समग्र विकास को बढ़ावा देने की बात. पाठ्यक्रम, पाठ्येतर एवं सह पाठ्यक्रम के साथ ही कला, मानविकी एवं विज्ञान और व्यवसायिक एवं शैक्षणिक जैसा सभी विषयों के पाठ्यक्रम का ही हिस्सा माना जाएगा.

समावेशी शिक्षा हेतु पिछड़े वर्ग के छात्रों हेतु विद्यालयों के निर्माण को बढ़ावा देने की दृष्टी से विद्यालय की न्यूनतम आवश्यकताओं को कम प्रतिबंधात्मक बनाने का प्रस्ताव हैं. छात्राओं की शिक्षा को बढ़ावा देने हेतु एक विशेष ‘जेंडर समावेशी कोष’ (Gender Inclusion Fund) बनाया जाएगा. स्वतंत्रता पश्चात पहली बार ऐसा हुआ है कि सामाजिक-आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग के छात्रों में शिक्षा को बढ़ावा देने हेतु ‘विशेष शिक्षा क्षेत्र’ (एसईज़ेड / SEZ) की संकल्पना रखी गयी है. पिछड़े वर्ग की शिक्षा हेतु विशेषरूप से उपयुक्त धनराशि सुनश्चित करना. पाठ्यक्रम को और अधिक समावेशी बनाना. विशेष शिक्षा क्षेत्रों में भारतीय भाषाओं में शिक्षण देने वाले उच्च शिक्षा संस्थानों को बढ़ावा दिया जाएगा.

वर्ष 2025 तक कम से कम 50% विद्यार्थी, विद्यालयीन एवं महाविद्यालयीन दोनों स्तरों पर, व्यावसायिक शिक्षा का ज्ञान अर्जित करेंगे. अगले एक दशक में व्यावसायिक शिक्षण को धीरे-धीरे मुख्य शिक्षा की धारा में ही समावेश कर लिया जाएगा. जिससे शिक्षा की समग्रता का लक्ष्य प्राप्त हो सकें. माध्यमिक एवं उच्च माध्यमिक स्तर से ही व्यावसायिक शिक्षण को बढ़ावा दिया जाएगा. कक्षा 6 से कक्षा 8 पाठ्यक्रम में राज्य स्तर एवं स्थानीय समुदाय के महत्वपूर्ण व्यवसायिक कला, हस्तकला आदि का समावेश. कक्षा 6 से कक्षा 12 तक के छात्रों हेतु विविध व्यावसायिक क्षेत्रों में इंटर्नशिप की व्यवस्था. उच्च माध्यमिक स्तर के विद्यालय विविध आईटीआई, पॉलीटेक्निक महाविद्यालयों, स्थानीय उद्योग आदि के साथ संलग्न हो सहयोग से कार्य करेंगे.

इस नीति के प्रभावशील होने के बाद देश के करोड़ों विद्यार्धियों को नये भारत के निर्माण में भागीदार होने का मौका मिलेगा. शिक्षा नीति से चरित्र निर्माण एवं व्यक्तित्व का समग्र विकास होगा. शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास अपने गठन से ही शिक्षा में बदलाव को लेकर पूरे देश में मुहिम चला रहा था. शिक्षा में बदलाव से राष्ट्रीयता के भाव के साथ ही छात्रों के व्यक्तित्व का समग्र विकास होगा. नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के कार्यान्वयन से भारत के युवा वैश्विक प्रतिस्पर्धा में अग्रणी भूमिका निभा सकेंगे.

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