जयपुर. गुलाबी शहर के बाजार रंग-बिरंगे सुंदर ईसर-गौर से सजे हुए हैं. कहीं कुंवारी लड़कियां तो कहीं सुहागिनें ईसर-गौर की प्रतिमाएं खरीदती दिखीं. जिनकी मनोकामना में अच्छे वर और पति की दीर्घायु शामिल है. गुरुवार को गणगौर पर्व मनाया गया.
हर वर्ष चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को गणगौर पर्व मनाया जाता है. इसे गणगौर तीज और ईसर-गौर भी कहते हैं. ईसर यानी भगवान शिव और गौर यानी देवी पार्वती. वैसे तो यह राजस्थान का लोक पर्व है. किंतु देश के अन्य हिस्सों में भी यह उत्सव बड़ी ही श्रद्धा के साथ मनाया जाता है.
गणगौर पर्व
इस दिन कुंवारी लड़कियां मनचाहे पति के लिए और विवाहित महिलाएं परिवार की सुख-समृद्धि व अखंड सुहाग के लिए व्रत रखती हैं. इतना ही नहीं सात समंदर पार बैठी महिलाएं भी गौर-ईसर की पूजा करती हैं. रोचक बात यह कि राजस्थान के जोधपुर से हर वर्ष ‘ईसर-गौर’ की लकड़ी की प्रतिमाएं तैयार कर विदेशों में भी भेजी जाती हैं. बीते कुछ वर्षों में इनकी मांग लगातार बढ़ी है. यहां रहने वाली भारतीय मूल की महिलाएं तो इन प्रतिमाओं को पूजती ही हैं, लेकिन विदेशी महिलाएं भी ईसर-गौर से लाड़ लड़ा रही हैं. ये प्रतिमाएं इन्हें इतनी भा रही हैं कि वे इनकी मुंहमांगी कीमत देकर भी अपने देश मंगवा रही हैं.
लकड़ी की ये प्रतिमाएं एक विशेष प्रकार की पारंपरिक विधि से बनाई जाती हैं. जिनकी कीमत लाखों रुपये तक होती है. प्रतिमाओं को तैयार करने में आम व सागवान की लकड़ी का उपयोग किया जाता है. इन्हें बनाते समय यदि लकड़ी में दरारें पड़ जाएं तो उन्हें भरने के लिए विशेष रूप से तैयार किया गया बुरादा भरा जाता है. इससे प्रतिमाएं पक्की हो जाती हैं व कई वर्षों तक सुरक्षित रहती हैं. प्रतिमाओं पर सोने, चांदी का लेप भी किया जाता है.
राजस्थान से निर्यात
प्रतिमाओं के एक्सपोर्टर विकास चौहान के अनुसार, “राजस्थान से ईसर-गौर की प्रतिमाओं का सबसे अधिक निर्यात होता है. इसकी तैयारी होली से कुछ दिन पहले शुरू हो जाती है. इस समय इनकी मांग लगभग 80 प्रतिशत बढ़ जाती है. तो कीमतें भी बढ़ जाती हैं. आम दिनों में यह बिक्री 20 प्रतिशत तक ही रहती है. ऑफ सीजन में इन प्रतिमाओं की बिक्री सजावट के लिए होती है”.
राजस्थान से कनाडा, यूरोप, अमरीका,ऑस्ट्रेलिया, इटली, फ्रांस, जापान, इंग्लैंण्ड, गल्फ व घाना सहित लगभग बीस देशों में ईसर-गौर का निर्यात होता है.
राजस्थान में काठ यानी लकड़ी से तैयार की जाने वाली ईसर-गणगौर की प्रतिमाएं तो पूरे विश्व में प्रसिद्ध हैं. लेकिन मिट्टी से बनी गणगौर प्रतिमाएं भी कारीगरों के कौशल को खूब दर्शा रही हैं. यहां बनाई जाने वाली ईसर और गणगौर के चेहरे पर इतनी बारीकी से कारीगरी होती है कि देखने वाले को ऐसा लगता है, जैसे वह उससे बातें कर रही हो. यही कारण है कि महीनों पहले ही कारीगर ईसर-गौर बनाने में जुट जाते हैं.