नई दिल्ली. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ कुछ देश विरोधी ताकतों की आंख की किरकिरी बना हुआ है. संघ उन्हें अपने मंसूबों की सफलता में सबसे बड़ी बाधा लगता है. इसलिए गाहे-बगाहे, संघ को बदनाम करने के लिए, नीचा दिखाने के लिए षड्यंत्र करते रहते हैं. हालांकि सोशल मीडिया, और तकनीकी के काल में उनका षड्यंत्र अधिक समय तक टिक नहीं पाता तथा उनके झूठ का गुब्बारा फूट जाता है.
ऐसे ही एक पोस्ट सोशळ मीडिया पर बार-बार वायरल की जाती है, जिसमें दावा किया गया है कि भगत सिंह को फांसी दिलवाने के लिए अंग्रेज सरकार की ओर से मुकदमा लड़ने वाले वकील राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से संबंधित थे. अंग्रेज सरकार के वकील का नाम राय बहादुर सूर्यनारायण था.
पिछले साल भी यह पोस्ट वायरल की गई थी और अब फिर कुछ फेसबुक अकाउंट से इसे चलाया जा रहा है. वेबसाइट विश्वास न्यूज़ (vishwasnews.com) ने पोस्ट में किये जा रहे दावों को लेकर फैक्ट चैक किया है. विश्वास न्यूज ने फैक्ट चैक के बाद पोस्ट के तथ्यों को भ्रामक बताया है. भगत सिंह के खिलाफ एक मामले में ‘राय बहादुर सूर्यनारायण’ अभियोजन पक्ष के वकील थे, लेकिन उनका राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से कोई संबंध नहीं था.
वायरल पोस्ट?
फेसबुक पर वायरल पोस्ट में लिखा जा रहा है, ‘भगत सिंह का केस लड़ने वाला वकील एक मुसलमान था, जिसका नाम आसिफ अली था और भगत सिंह को फांसी दिलाने के लिए अंग्रेजों की ओर से जिस वकील ने केस लड़ा था, उस गद्दार का नाम राय बहादुर सूर्यनारायण था, जो RSS के संस्थापक हेडगेवार का मित्र और RSS का सदस्य था.’
सर्च में पता चला कि यह पहली बार नहीं है, जब यह पोस्ट इसी दावे के साथ सोशल मीडिया पर वायरल की गई हो. कुछ समय अंतराल पर बार-बार वायरल किया जाता है.
फैक्ट चैक
पड़ताल की शुरुआत भगत सिंह से जुड़े दस्तावेजों के साथ की. सर्च में हमें इंडियन लॉ जर्नल की वेबसाइट पर आर्काइव में एक लिंक मिला, जो अदालतों में हुई ऐतिहासिक सुनवाई से जुड़ा हुआ था.
‘The Trial of Bhagat Singh’ शीर्षक से मौजूद ऑनलाइन दस्तावेज में केंद्रीय विधानसभा की कार्यवाही के दौरान 8 अप्रैल, 1929 को बम फेंके जाने के मामले में चले ट्रायल का जिक्र है. दस्तावेज के अनुसार, ‘इस मामले में ट्रायल की शुरुआत 7 मई 1929 को हुई, जिसमें ब्रिटिश सरकार की तरफ से राय बहादुर सूर्यनारायण ने सरकार का पक्ष रखा.’
इसकी पुष्टि के लिए विश्वास न्यूज ने ‘अंडरस्टैंडिंग भगत सिंह’, ‘द भगत सिंह रीडर’ जैसी किताबें लिखने वाले जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर चमन लाल से बात की. उन्होंने कहा, ‘जहां तक भगत सिंह के वकील के तौर पर आसफ अली के मुकदमा लड़ने का जिक्र है, वह पूर्णतया सही है. हालांकि, राय बहादुर सूर्यनारायण के बारे में वह दावे के साथ कुछ भी नहीं कह सकते.’
किताब में दी गई जानकारी के अनुसार, ‘एडिशनल मजिस्ट्रेट एफ बी पूल की अदालत में (केंद्रीय विधानसभा में बमबारी के मामले में) ट्रायल की शुरुआत 7 मई 1929 को हुई. आसफ अली बचाव पक्ष के वकील के तौर पर पेश हुए, जबकि राय बहादुर सूरज नारायण अभियोजन पक्ष के वकील के तौर पर. कोर्ट में भगत सिंह के अभिभावक, उनके चाचा अजित सिंह की पत्नी और अरुणा आसफ अली थे. जब उन्हें अदालत में लाया गया तब भगत सिंह, बटुकेश्वर दत्त ने इंकलाब जिंदाबाद और साम्राज्यवाद मुर्दाबाद का नारा लगाना शुरू किया.’
ऐतिहासिक दस्तावेजों और इतिहासकारों के अनुसार, बमबारी कांड में भगत सिंह का पक्ष आसफ अली ने रखा और अभियोजन पक्ष की तरफ से राय बहादुर सूर्यनारायण पेश हुए. हालांकि, कहीं भी सूर्य नारायण के राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े होने का जिक्र नहीं मिला.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ दिल्ली प्रांत कार्यकारिणी सदस्य (पूर्व में प्रांत प्रचार प्रमुख रहे) राजीव तुली ने कहा कि जब यह मुकदमा चल रहा था, तब संघ विदर्भ प्रांत से बाहर भी नहीं निकला था. ‘यह कांग्रेस प्रेरित दुष्प्रचार है, जो संघ को बदनाम करने के लिए लगातार चलाया जाता रहा है.’ ‘1929 में संघ विदर्भ प्रांत तक ही सिमटा हुआ था. 1935 में संघ ने पंजाब और 1939 में दिल्ली में अपना कार्य शुरू किया.’
‘भारतवर्ष की सर्वांग स्वतंत्रता’ के लेखक और संघ के विचारक नरेंद्र सहगल ने भी इसे खारिज करते हुए कहा कि यह महज अफवाह है. उन्होंने सांडर्स ‘वध’ का जिक्र करते हुए कहा, ‘सांडर्स की हत्या करने के बाद राजगुरु हेडगेवार से मिले थे. हेडगेवार ने उन्हें भूमिगत होने के लिए नागपुर में भेजा, जहां तत्कालीन सरकार्यवाह भैयाजी दाणी के फॉर्महाउस पर वह भूमिगत रहे.’
उन्होंने कहा कि हेडगेवार ने राजगुरु को उनके गांव जाने से मना किया था, लेकिन उन्होंने यह सलाह नहीं मानी और फिर गिरफ्तार हो गए. इस प्रसंग का जिक्र नारायण हरिपालकर ने अपनी किताब ‘डॉ हेडगेवार चरित्र’ में किया है. इसी प्रसंग का जिक्र उन्होंने अपनी किताब ‘भारतवर्ष की सर्वांग स्वतंत्रता’ में भी किया है.