उज्जैन में बाबा महाकाल की श्रावण मास में निकलने वाली सवारी के अलावा, एक और सवारी है जिसके दर्शन करने हजारों भक्त देश भर से आते हैं.
दरअसल, भगवान विष्णु जब 4 माह के लिए शयन काल में चले जाते हैं. इस दौरान कोई शुभ कार्य नहीं होते. तब बाबा महाकाल ही सृष्टि का कार्यभार संभालते हैं. जब श्रीहरि विष्णु योगनिद्रा से उठते हैं, तो भगवान शिव पुनः उन्हें सारा कार्यभार सौंपते हैं. इसी दिन को बैकुंठ चतुर्दशी कहा जाता है. इस दिन हरि और हर अर्थात् भगवान शिव और विष्णु का मिलन होता है. इसलिए इसे हरिहर मिलन कहा जाता है.
उज्जैन में इस दिन बाबा महाकाल की सवारी, प्रसिद्ध द्वारकाधीश मंदिर जाती है और बाबा महाकाल सृष्टि का कार्यभार श्रीहरि को सौंपते हैं.
इस दिन में एक और महत्व की बात है कि बाबा महाकाल को भगवान विष्णु की प्रिय तुलसी की माला और श्री विष्णु को बाबा महाकाल की प्रिय बिल्वपत्र की माला अर्पित की जाती है. साथ ही दोनों देवताओं को एक दूसरे की प्रिय वस्तुओं का भोग लगाया जाता है. 2 देवताओं के अद्भुत मिलन की ये परंपरा एकता और सौहार्द का प्रतीक मानी जाती है.