ज्ञानवापी परिसर में शिवलिंग मिलने के बाद परिसर की ऐतिहासिक कहानी को लेकर चर्चा हो रही है. हिन्दू पक्ष का दावा है कि मस्जिद का निर्माण जिस स्थान पर हुआ है, वहीं पर भगवान आदि विश्वेश्वर का मंदिर था. मंदिर का ध्वस्तीकरण औरंगजेब के आदेश पर हुआ और मस्जिद का निर्माण किया गया. इतिहास में उपलब्ध साक्ष्यों, पुस्तकों व सरकारी गजेटियर तक में इसका उल्लेख है कि औरंगजेब के आदेश पर मंदिर का ध्वस्तीकरण किया गया. सितंबर 1669 में औरंगजेब के सूबेदार अब्दुल हसन द्वारा औरंगजेब को लिखा गया पत्र भी इसकी पुष्टि करता है.
काशी विश्वनाथ-ज्ञानवापी विवाद से जुड़े अधिवक्ता नित्यानंद राय लंबे समय से काशी के इतिहास पर रिसर्च करते रहे हैं. नित्यानंद राय कहते हैं कि औरंगजेब के फरमान का प्रमाण 1965 में प्रकाशित काशी के एक गजेटियर में भी मिलता है, जिसे किसी शहर के इतिहास का सबसे प्रमाणिक इतिहास माना जाता है. इसके अलावा इतिहास की पुस्तकों में भी औरंगजेब के फरमान का उल्लेख है.
औरंगजेब के समकालीन इतिहास पर आधारित ग्रंथ मआसिर ए आलमगीरी में मुहम्मद साफी मुस्तइद खां ने विश्वनाथ मंदिर को तोड़े जाने के फरमान का उल्लेख किया है. मुहम्मद साफी मुस्तइद खां मुगल साम्राज्य के वजीर इनायतुल्ला खान का मुंशी था और उसने औरंगजेब के वक्त की घटनाओं का उल्लेख पुस्तक में किया था. मआसिर ए आलमगीरी के अनुसार, औरंगजेब ने 8-9 अप्रैल 1669 को अपने सूबेदार अबुल हसन को फरमान जारी किया था कि वो जाए और काशी के मंदिरों को तोड़े. इस फरमान के बाद सितंबर 1669 में अब्दुल हसन ने औरंगजेब को अपनी जवाबी चिट्ठी में लिखा कि मंदिर तोड़ दिया गया है और वहां एक मस्जिद बना दी गई है.
गजेटियर में भी अप्रैल की तारीख का जिक्र
काशी के गजेटियर में भी औरंगजेब के फरमान का जिक्र है. 1965 में इलाहाबाद की सरकारी प्रेस से छपे गजेटियर में पेज संख्या 25 से पेज संख्या 77 तक वाराणसी का इतिहास लिखा है. इसी गजेटियर के 10वें पेज पर यह भी लिखा है कि काशी का प्रशासनिक नाम वाराणसी है और यह नाम 24 मई, 1956 को रखा गया था. गजेटियर के 57वें पेज पर साफ-साफ लिखा है कि 9 अप्रैल, 1669 को औरंगजेब ने अपने प्रादेशिक गवर्नर को फरमान जारी किया कि काशी के मंदिरों और संस्कृत स्कूलों को नष्ट कर दिया जाए. इसी फरमान पर काशी विश्वनाथ मंदिर का ध्वस्तीकरण किया गया.