जबलपुर. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि भारत की राष्ट्र की कल्पना पश्चिम की कल्पना से अलग है. भारत भाषा, व्यापारिक हित, सत्ता, राजनैतिक विचार आदि के आधार पर एक राष्ट्र नहीं बना. भारत भूमि सुजलां सुफलाम रही है. भारत विविधता में एकता और वसुधैव कुटुम्बकम के तत्व दर्शन और व्यवहार के आधार पर एक राष्ट्र बना है. अपना जीवन इन जीवन मूल्यों के आधार पर बलिदान करने वाले पूर्वजों की अपनी विशाल परम्परा है.
सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी मानस भवन में प्रबुद्धजन गोष्ठी को संबोधित कर रहे थे. उन्होंने कहा कि भाषा, पूजा पद्धति के आधार पर समाज नहीं बनता. समान उद्देश्य पर चलने वाले, एक समाज का निर्माण करते हैं. भारत का दर्शन ऐसा है कि किसी ने कितना कमाया इसकी प्रतिष्ठा नहीं है, कितना बाँटा इसकी प्रतिष्ठा रही है. अपने मोक्ष और जगत के कल्याण के लिए जीना, ये अपने समाज का जीवन दर्शन रहा है. इसी दर्शन के आधार पर अपना राष्ट्र बना है.
इस तत्व दर्शन के आधार पर जीते हुए ज्ञान- विज्ञान- शक्ति -समृद्धि की वृद्धि करने का रास्ता अपने ऋषियों ने दिखाया है. धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की बात, अर्थात सब प्रकार के संतुलन की बात हमारी संस्कृति है. सबको अपनाने वाला दर्शन ही हिन्दुत्व है. संविधान की प्रस्तावना भी हिन्दुत्व की ही मूल भावना है.
उन्होंने कहा कि विविधताओं की स्वीकार्यता है, विविधताओं का स्वागत है, लेकिन विविधता को भेद का आधार नहीं बनाना है. सब अपने हैं. भेदभाव, ऊँच-नीच अपने जीवन दर्शन के विपरीत है. हमारा व्यवहार, मन-कर्म-वचन से सद्भावना पूर्ण होना चाहिए. हमारे घर में काम करके अपना जीवन यापन करने वाले, श्रम करने वाले भी हमारे सद्भाव के अधिकारी हैं. उनके सुख-दुःख की चिंता भी हमें करनी चाहिए. हम अपने लिए, परिवार के लिए खर्च करते हैं, पर यह सब अपने समाज के कारण है. उसके लिए भी समय और धन खर्च करना चाहिए. प्रकृति से इतना कुछ लेते हैं, तो वृक्षारोपण, जलसंरक्षण करना ही चाहिए. साथ ही नागरिक अनुशासन का पालन करना चाहिए. अपने कर्तव्य पालन को ही धर्म कहा गया है. धर्म यानि रिलीजन या पूजा पद्धति नहीं है.
कार्यक्रम का प्रारंभ दीप प्रज्ज्वलन और भारत माता के चित्र के समक्ष पुष्पांजली से हुआ. तत्पश्चात गीत “करवट बदल रहा है देखो, भारत का इतिहास…” हुआ.
मंच पर क्षेत्र संघचालक अशोक सोहनी जी, प्रांत संघचालक डॉ. प्रदीप दुबे जी, विभाग संघचालक डॉ. कैलाश गुप्त जी उपस्थित थे. गोष्ठी में सामाजिक कार्यकर्ता, एनजीओ, व्यापारी, चिकित्सक, अधिवक्ता, बैंकर, सैनिक, प्रशासनिक अधिकारी, दिव्यांग जैसी अनेक श्रेणियों से नागरिकजनों को आमंत्रित किया गया था. कार्यक्रम उपरांत राष्ट्रीय साहित्य स्टॉल और जलपान की व्यवस्था की गई थी. कार्यक्रम का समापन वंदेमातरम के साथ हुआ.