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न्यूयॉर्क – स्वस्तिक नाम बदलने को लेकर वोटिंग, नाम के विरोध में नहीं पड़ा एक भी वोट

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नई दिल्ली. हिन्दू धर्म में स्वस्तिक का विशेष महत्व है. और  हर शुभ अवसर पर स्वस्तिक बनाया जाता है और उसकी पूजा होती है. अमेरिका में न्यूयॉर्क के एक छोटे-से शहर का नाम भी ‘स्वस्तिक’ है. यह लगभग 100 साल पुराना है. इसी से संबंधित एक समाचार सामने आया है. पिछले दिनों शहर का नाम ‘स्वस्तिक’ रहे या नहीं, इसे लेकर वोटिंग करवानी पड़ी. तथा आश्चर्यजनक रूप से वोटिंग के दौरान इस नाम के खिलाफ एक भी वोट नहीं पड़ा और पूर्व नाम यथावत रहा. दरअसल, इस नाम को नाजियों के प्रतीक चिह्न से जोड़कर आपत्ति जताई गई थी. जबकि स्थानीय लोगों का कहना है कि इसके नाम का नाजियों के प्रतीक चिह्न से कोई लेना-देना नहीं है.

मामला यह है कि न्यूयॉर्क का एक पर्यटक माइकल अलकेमो इधर से गुजरा तो उसकी नजर गांव के नाम पर पड़ गई. अलकेमो के अनुसार, मुझे धक्का लगा, इसलिए कि यहां से कुछ ही दूरी पर द्वितीय विश्वयुद्ध के योद्धा दफन हैं. मैं यह सोचकर दंग रह गया कि 1945 के बाद भी यहां रहने वाले लोगों ने ‘स्वस्तिक’ की जगह कोई दूसरा नाम नहीं चुना. उन्होंने ही इस नाम को लेकर शिकायत दर्ज कराई थी.

शहर के ब्लैक ब्रुक टाउन काउंसिल ने 14 सितंबर को सर्वसम्मति से ‘स्वस्तिक’ नाम नहीं बदलने के लिए वोट दिया. ब्लैक ब्रुक के पर्यवेक्षक जॉन डगलस ने कहा, ‘1800 के दशक में शहर के मूल निवासियों ने इसका नाम स्वस्तिक रखा था. यह नाम संस्कृत के शब्द ‘स्वस्तिक’ से लिया गया था, जिसका अर्थ होता है – कल्याण. हमें बाहर के उन लोगों पर तरस आता है, जो हमारे समुदाय के इतिहास के बारे में कुछ नहीं जानते और यह नाम देखकर भड़क जाते हैं और इसका विरोध करते हैं.

हमारे समुदाय के लोगों के लिए यह वह नाम है, जिसे हमारे पूर्वजों ने चुना था.’

संयुक्त राज्य स्मारक मेमोकॉस्ट संग्रहालय के अनुसार, स्वस्तिक शब्द संस्कृत के शब्द ‘स्वस्तिक’ से लिया गया है, जिसका प्रयोग सौभाग्य या मंगल प्रतीक के संदर्भ में किया जाता है. यह प्रतीक लगभग 7,000 साल पहले दिखाई दिया था और हिन्दू, बौद्ध, जैन आदि धर्मों में स्वस्तिक को पवित्र प्रतीक माना जाता है. इसे शुभ माना जाता है, इसलिए घरों और मंदिरों की दीवारों पर लगाया जाता है.

यूरोपीय लोगों ने पुरातात्विक खुदाई के काम के माध्यम से प्राचीन सभ्यताओं के बारे में जब सीखना शुरू किया, तब 19 वीं शताब्दी के अंत और 20वीं शताब्दी के प्रारंभ में यूरोप में यह प्रतीक लोकप्रिय हो गया.

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