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रानी लक्ष्मीबाई की सेनापति वीरांगना झलकारी बाई

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भारत के प्रथम स्वातंत्र्य समर की नायिका अमर बलिदानी झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की ताकत उनकी महिला सैन्य शक्ति को माना जाता है. खूब लड़ी मर्दानी की साहसी और वीरांगना सेनापति झलकारी बाई की शौर्यगाथा बुंदेलखंड की लोकगाथाओं व लोकगीतों में इसका प्रमाण देती है. झलकारी बाई रानी लक्ष्मीबाई की सेना में महिला शाखा दुर्गा दल की सेनापति थीं, जिन्होंने मातृभूमि की रक्षा के लिए अपनी प्रिय रानी के साथ ब्रिटिश सेना के विरुद्ध पूरे साहस और पराक्रम से युद्ध लड़ा था.

रानी लक्ष्मीबाई की  विश्वासपात्र सखी और उन्हीं की हमशक्ल झलकारी बाई का विवाह झांसी की सेना में तैनात सैनिक पूरन कोरी से हुआ था जो स्वयं भी एक बहादुर योद्धा थे. यदि कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान ने ‘बुंदेले हरबोलो के मुंह हमने सुनी कहानी” के माध्यम से भारत की वीरांगना लक्ष्मीबाई के पराक्रम को जन-जन तक पहुंचाया तो रानी लक्ष्‍मीबाई के नाम के साथ ही उनकी सहयात्री  वीरांगना झलकारी बाई के योगदान को भी अवश्‍य याद रखने की अलख राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने झलकारी बाई पर लिखी इस कविता से जगाई –

जा कर रण में ललकारी थी, वह तो झाँसी की झलकारी थी।

गोरों से लड़ना सिखा गई, है इतिहास में झलक रही,

वह भारत की ही नारी थी।।

वास्तव में देश के लिए अपना जीवन उत्सर्ग करने वाले विराट व्यक्तित्वों के लुप्त इतिहास को भी  भावी पीढ़ियों तक संजोया जाना इन विभूतियों के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगा. वीरांगना झलकारी बाई का अद्वितीय योगदान देश कभी नहीं भुला सकता.

भारत सरकार ने 22 जुलाई, 2001 को 1857 के संग्राम की महायोद्धा और रानी लक्ष्मीबाई की सहयोगी वीरांगना झलकारी बाई के सम्मान में एक डाक टिकट जारी किया था. इसी प्रकार उत्तर प्रदेश सरकार ने झलकारी बाई की एक प्रतिमा आगरा में स्थापित करने के साथ ही लखनऊ में झलकारी बाई के नाम से एक  धर्मार्थ चिकित्सालय भी शुरू किया है.

अपनी जन्मभूमि और देश की रक्षा के लिए प्राणार्पण करने वाली महिला शक्ति की आदर्श वीरांगना झलकारी बाई के अदम्य साहस, शौर्य और बलिदान को बारम्बार नमन…..

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