विजयलक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली.
चमचमाती रेत के टीले कितने खूबसूरत दिखाई देते हैं, पर यही विशालकाय टीले पानी के बहाव से बहकर यदि घरों में घुस जाएं तो पलभर में सब कुछ तहस-नहस हो जाता है. 14 अगस्त, 2020 की सुबह 10 बजे जयपुर की कच्ची बस्ती गणेशपुरी में बारिश ने तबाही की ऐसी कहानी लिखी कि तिनका-तिनका कर बनाए घरौंदे चंद ही मिनटों में टनों मिट्टी के नीचे दब गए.
स्थिति ऐसी बनी कि क्या कपड़े, क्या बर्तन, क्या चूल्हा, स्कूल के बस्ते यहां तक कि घर के दरवाजे पर खड़े ई-रिक्शा व ऑटो सभी मिट्टी के नीचे दब गए. चारों ओर चीख-पुकार मची थी. तलहटी में बसी तीन मलीन बस्तियों के एक सौ पचास परिवारों की दुनिया चंद मिनटों में ही उजड़ गई थी. घुप अंधेरे में बेबस बैठे घर में घुस आई छह फीट मिट्टी के कारण भूखे प्यासे रोते बिलखते लोगों के पास सूरज की किरण के समान पहुंचे संघ के स्वयंसेवक. पहली जरूरत भोजन की थी, क्योंकि सभी के घरों का राशन व खाना बनाने के बर्तन सब कुछ मिट्टी में दबा हुआ था. सबसे पहले इन लोगों को समझा बुझाकर सुरक्षित बाहर निकालने के बाद इनके खाने की व्यवस्था की गई. जयपुर नगर की प्रौढ़ शाखा के कार्यवाह व इस राहत कार्य की संचालन व्यवस्था संभालने वाले राजकुमार गुप्ता बताते हैं – सायं 3.30 बजे स्वयंसेवकों को इस विनाश की सूचना मिली व रात्रि 8 बजे तक नगर के संघ परिवारों से 2800 भोजन पैकेट वहां पहुंच चुके थे. टार्च की रोशनी में भोजन बांटते हुए इन बेबस परिवारों की रो- रोकर थक चुकी आंखों को देखकर सभी का मन खिन्न हो गया था. बस्ती से दो किलोमीटर दूर बसे सामुदायिक भवन में बस्ती वासियों के सोने की व्यवस्था कर देर रात्रि भारी मन से घरों को लौट रहे स्वयंसेवकों ने इन्हें हर मुश्किल से निकालने का संकल्प लिया.
इस विनाश लीला की शुरूआत 14 अगस्त, 2020 की सुबह हुई. गुलाबी नगरी जयपुर में इंद्र देवता इतना बरसे कि समूचा शहर तालाब बन गया. गाड़ियां खिलौनों की तरह पानी में तैरने लगीं. सबसे अधिक प्रभाव निचले स्थानों पर बसी बस्तियों पर पड़ा. तलहटी में बसी गणेशपुरी के पीछे की ओर बने एनीकट (छोटे बांध) की दीवार पानी के इस दबाव को झेल नहीं पाई व बांध का पानी पास बने बालू के दो विशालकाय टीलों को बहाते हुए इन तीन कच्ची बस्तियों में प्रवेश कर गया. प्रशासन ने तो जेसीबी से मिट्टी निकाल कर ही अपने कर्तव्य की इतिश्री कर ली. किंतु संघ के स्वयंसेवक आठ दिन हालात सामान्य होने तक वहीं डटे रहे. नजदीक के लाल डूंगरी गणेश मंदिर में अस्थाई रसोईघर बनाकर, पहले बस्ती वालों के खाने पीने की व्यवस्था की गई. संघ दृष्टि से ऋषिगालव नगर के सामाजिक समरसता सह प्रमुख मनोज जैन ने कहा – “स्वयंसेवक यहीं नहीं रुके, कुछ ने कुदाली व फावड़े लेकर बस्ती वालों के साथ घरों से मिट्टी निकालने व उनके कपड़े एवं बर्तन सुखाने का कार्य भी शुरू कर दिया. कपड़े इतने ज्यादा खराब हो चुके थे कि नगर से संग्रहित कर कई जोड़ी कपड़े व जरूरत के कुछ बर्तन भी गणेशपुरी वासियों को दिए गए. “इतना ही नहीं अगले दस दिन का भोजन जुट सके, ऐसे 150 सूखे राशन किट भी इन्हें बांटे गए.
आठ दिन तक चली इस कवायद में मिट्टी घर से निकल चुकी थी. सामान सूख चुके थे व लोगों का जीवन धीरे-धीरे पटरी पर लौट आया था. तब जाकर उनकी सुध लेने पहुंचे कुछ राजनैतिक लोगों से मिल रहे भोजन के पैकेट अस्वीकार कर बस्ती के लोगों ने उन्हें साफ शब्दों में कहा – “आप ये दिखावा न करें. हमें जब सबसे अधिक जरूरत थी, तब इन खाकी निकर वाले लोगों ने हमारी हर तकलीफ को दूर किया.”
नियति व मानव के बीच जंग आज भी जारी है. जहां कहीं प्रकृति कहर ढहाती है, वहां मानवता विनाश के इन खंडहरों में आस्था के फूल ऊगाती है. और यही काम देशभर में कर रहे हैं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक.