रश्मि दाधीच
आपका रिटायरमेंट प्लान क्या है..? अभी तक नहीं सोचा? तो सोच लीजिए..!! क्योंकि समाज व देश को आपकी बहुत जरूरत है. मिलते हैं… इसी विचार पर विश्वास करने वाले, महाराष्ट्र के ठाणे निवासी संघ के स्वयंसेवक रवि कर्वे जी से. ठाणे के टी. जे. एस. बी. सहकारी बैंक से ससम्मान रिटायर होने के बाद उन्होंने अपने चार साथियों के साथ मिलकर पिछले १० वर्षों में महाराष्ट्र के अनेक छोटे-छोटे गांवों, कस्बों, शहरों की झुग्गी बस्तियों से करीब 2500 बच्चों को न केवल सफलता की कहानी लिखने का अवसर दिया, बल्कि उन्हें इस समाज से लेने के साथ-साथ देना भी सिखाया. २०१० से २०२२ तक विद्यार्थी विकास योजना के तहत १० करोड़ 95 लाख रू की सहयोग राशि से २५०० से अधिक बच्चों की इंजीनियरिंग, मेडिकल सहित अन्य प्रोफेशनल कोर्सेस की फीस भरी जा चुकी है. इतना ही नहीं रायगढ़ और ठाणे जिले में जर्जर हो चुके 6 पुराने स्कूलों के भवन का रिकंस्ट्रक्शन भी किया गया है.
पैसे की कमी प्रतिभावान विद्यार्थी की बेड़ियां ना बनें, इसके लिए मेधावी निर्धन बच्चों व मन में सेवाभाव रखने वाले समृद्ध परिवारों के बीच सेतु का कार्य किया संघ के स्वयंसेवक कर्वे जी व उनकी टीम ने.
बादल सूरज को कब तक ढक कर रख सकते हैं, स्वाति सिंह से मिलकर आप भी यही कहेंगे. कभी घाटकोपर की झुग्गी बस्ती में रहने वाली स्वाति जी का घर बारिश में 3 महीने तालाब बना रहता था. फिर भी, पढ़ाई में अव्वल ही रही व 12th के बाद विद्यार्थी विकास योजना के सहयोग से बी.एस.सी. और एम.एस.सी. कर आज एक बैंक में 19 लाख सालाना के पैकेज पर काम कर रही है.
अब मिलते हैं *अंजलि लोखंडे से… जो सोलापुर में अपनी अकेली माँ की कड़ी मेहनत और दृढ़ संकल्प की जीती जागती मिसाल बनी. टीन शेड की एक छोटी सी झोपड़ी में, अपने मैडल, पुरस्कार एक बास्केट में रखने वाली अंजलि आज मैकेनिकल इंजीनियरिंग में टॉप कर अपनी माँ के साथ नागपुर में रहती हैं और एक बड़ी कंपनी में काम करती हैं. अंजलि न केवल अपने परिवार को गरीबी के जाल से बाहर निकालने में सफल रही हैं, बल्कि अपनी माँ द्वारा उसके लिए सोचे गए भविष्य को भी जी रही हैं. वो ये कर पाईं क्योंकि उसकी इंजीनियरिंग की फीस विद्यार्थी विकास योजना से जुड़कर एक समृद्ध व्यक्ति ने भरी.
छोटे-छोटे गांव, कस्बों, झुग्गी बस्तियों से बड़ी बड़ी आईटी कंपनी, मेडिकल लाइन, इंजीनियरिंग सेक्टर में अपनी पहचान दर्ज कराने वाले इन बच्चों की अद्भुत परिवर्तन की यात्रा का आधार क्या है..? कैसे चुने जाते हैं बच्चे..? क्या है विद्यार्थी विकास योजना..? आप सब यही सोच रहे हैं न..!!
कार्य से आरंभ से जुड़े स्वयंसेवक अरूण करमाकर जी बताते हैं कि 2010 में सबसे पहले 5 ऐसे होनहार बच्चों को चुना गया जो टैलेंटेड होने के बावजूद भी अपने सपनों से समझौता कर रहे थे. क्योंकि वे मेडिकल या इंजीनियरिंग कॉलेज की फीस भरने में सक्षम नहीं थे. ऐसा अधिकांश गरीब ही नहीं निम्न मध्यवर्गीय परिवारों के बच्चों के साथ होता है. इन पांच बच्चों की फीस रवि जी से बैंक में संपर्क में आए कुछ दानदाताओं ने भरी. बस यहीं से यह सफर शुरू हो गया. लोग मिलते गये व कारवां बढ़ता गया. 2017 में इस कार्य को संस्थागत स्वरूप देने के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के माध्यम से चल रही “सेवा सहयोग संस्था” सामने आई.
आज इस काम से जुड़े लगभग 80 वॉलंटियर्स ऐसे हैं जो दिन रात ऐसे हीरों को ढूंढते हैं, जिनका 10th का रिजल्ट 90% से ऊपर हो. किंतु उनके परिवार उनकी आगे की फीस भरने में अक्षम हों. पहले इन परिवारों की आर्थिक स्थिति को अच्छी तरह से समझा जाता है, फिर 10th व 12th के बाद अपने मनचाहे करियर की शिक्षा के लिए कॉलेज, हॉस्टल, ट्रेनिंग, इत्यादि की 4 वर्षों की फीस समय -समय पर उपलब्ध कराई जाती है. यहां यह बात जानना बहुत आवश्यक है कि अभिभावकों ने अपने बच्चे की शिक्षा के लिए जितनी सेविंग की है और अच्छे कॉलेज में 4 वर्ष पढ़ने के लिए जो शिक्षा शुल्क चाहिए.. उन दोनों में जो अंतर आता है, विद्यार्थी विकास योजना उसे पूरा करता है.
सेवा सहयोग मुंबई के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर में से एक किशोर मोघे जी कहते हैं कि विद्यार्थी विकास योजना के चलते अनेक दानदाताओं के माध्यम से आज हजारों बच्चों का न केवल सुंदर भविष्य आकार ले रहा है, बल्कि आने वाले कल में एक सुंदर समाज भी स्थापित हो रहा है. क्योंकि यही बच्चे जो समाज के सहयोग से आगे बढ़ रहे हैं, वे धीरे-धीरे दानदाताओं की सूची में शामिल होने लगते हैं.
इसका एक शानदार उदाहरण है… वैज्ञानिक सचिन सूर्यवंशी. सचिन आज फार्मेसी क्षेत्र में एक जाना माना नाम है. विद्यार्थी विकास योजना के सहयोग से पढ़ने वाले सचिन ने बैंक से 1.4 लाख का ऋण लेकर दो बच्चों की पढ़ाई की पूरी जिम्मेदारी उठाई और इस ऋण को अपनी सैलरी से बैंक को लौटाया. सचिन की तरह यहां से जुड़े हर विद्यार्थी में समाज का ऋण चुकाने का भाव जागृत किया जाता है. इसलिए यह बच्चे कभी नहीं जान पाते कि उनकी फीस कौन भर रहा है..? बस जानते हैं तो इतना कि आज उनकी मदद के लिए समाज उनके साथ खड़ा है व भविष्य में उन्हें इसी भूमिका को आगे निभाना है.
व्यक्ति की सोच पर कभी उम्र की पाबंदी नहीं लगती. जहां एक ओर पहली पारी में व्यक्ति अपने दायित्व, घर परिवार, रिश्ते नाते इनको संभालता है. वहीं जीवन की दूसरी पारी में इतना मुश्किल भी नहीं है, यदि वे यह ठान ले कि मुझे समाज के लिए कुछ करना है, जो समाज से लिया है उसे समाज को लौटाना भी है. 10 करोड़ रुपये से आज 2500 बच्चों का भविष्य संवर गया क्योंकि जीवन की दूसरी पारी में आप बहुत ही सक्षम और अनुभवशाली होते हैं. समाज और देश के प्रति अपना महत्वपूर्ण योगदान देने के लिए. यह बात सिद्ध की रविंद्र कर्वे जी, अरूण करमाकर जी, शरद गंगल जी, राजू हेमबरडे जी व अभिजीत फणनीस जी ने, जिन्होंने भारत के भविष्य को सुनहरी कलम थमाई.
संपर्क :– रविन्द्र कर्वे
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