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वामपंथियों के कुकृत्यों का गढ़ – जब प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने जेएनयू को बंद कर दिया था

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जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में रामनवमी के दिन जिस तरह से वामपंथी गुटों ने हंगामा किया, एबीवीपी के विद्यार्थियों के साथ मारपीट की और तो और रामनवमी के हवन के दौरान कथित तौर पर मांस-हड्डियों को फैंकने की योजना बनाई, उसके बाद यह स्पष्ट है कि वामपंथी गुट अब पागलपन की भी हदों को पार कर चुका है.

इस घटना के बाद एक तरफ जहां विद्यार्थी परिषद ने सद्भावना यात्रा निकाली, वहीं दूसरी ओर वामपंथी गुटों ने एनएसयूआई (कांग्रेस का छात्र संगठन) के साथ मिलकर मानव शृंखला मार्च निकाला, जिसमें एक बार फिर ‘आजादी’ के नारे लगाए गए.

हाल ही में हुआ विवाद इस विश्वविद्यालय का पहला विवाद नहीं है, दरअसल यह विश्वविद्यालय वामपंथ की प्रयोगशाला के रूप में रहा है. वामपंथी विचारक इस विश्वविद्यालय का प्रयोग अपनी विचारधारा को आगे बढ़ाने और भारत विरोधी गतिविधियों को अंजाम देने के लिए करते रहे हैं.

इसके तमाम उदाहरण पूर्व में देखे गए हैं. जब यहां वामपंथियों और इस्लामिक गुटों द्वारा शत्रु राष्ट्र पाकिस्तान के समर्थन में मुशायरा करने से लेकर इस्लामिक आतंकी अफ़ज़ल गुरु की बरसी मनाने और भारतीय जवानों के बलिदान पर जश्न मनाने का कार्य किया गया है.

हालांकि कुछ तथाकथित बुद्धिजीवी, वामपंथी विचारक और इस्लामिक कट्टरपंथ के समर्थकों का कहना है कि जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय को बदनाम करने के लिए ऐसी बातें की जाती हैं. उनका कहना है कि मोदी सरकार आने के बाद से ही जेएनयू में माहौल खराब किया जा रहा है. जबकि सच्चाई यह है कि जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में वामपंथियों द्वारा किए जा रहे हिंसक एवं भारत विरोधी गतिविधियों का इतिहास बहुत पुराना है.

जब इंदिरा गांधी भारत की प्रधानमंत्री हुआ करती थी, तो जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय को 16 नवंबर, 1980 से लेकर 03 जनवरी 1981 तक सिर्फ इसलिए बंद करना पड़ा था क्योंकि विश्वविद्यालय में वामपंथी छात्र हिंसक हो चुके थे. इंदिरा गांधी ने स्वयं विश्वविद्यालय को बंद करने का आदेश दिया था. स्थिति को नियंत्रित करने के लिए विश्वविद्यालय के छात्रसंघ अध्यक्ष राजन को भी हिरासत में लेना पड़ा था.

वामपंथियों द्वारा जेएनयू में देशविरोधी गतिविधियां भी बरसों से की जा रही है. जब 1999 का करगिल युद्ध भारत ने जीत लिया तो उसके बाद वर्ष 2000 में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में वामपंथी गुटों ने पाकिस्तान के पक्ष में मुशायरे का आयोजन करवाया था.

सिर्फ इतना ही नहीं, जब वहां उपस्थित सेना के दो जवानों ने इसका विरोध किया तो वामपंथी छात्र नेताओं ने सेना के जवानों की पिटाई की थी. इसके बाद इस मामले को भाजपा के सांसद बीसी खंडूरी ने संसद में उठाया था.

आज जो कांग्रेस पार्टी वामपंथी विचारकों के हाथों की कठपुतली बन चुकी है, उसकी अपनी ही सरकार के दौरान भी जेएनयू के वामपंथी छात्र नेताओं और इस्लामिक जिहादियों ने भारत को नीचा दिखाने का प्रयास किया था.

चूंकि भारतीय वामपंथियों की नजर में चीन एक आदर्श राष्ट्र है और अमेरिका विरोधी विचार का देश है, तो अमेरिका द्वारा ईरान पर लगाए गए प्रतिबंधों का समर्थन करने के कारण भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का जेएनयू के वामपंथी गुटों ने विरोध किया था. हालात ऐसे हो चुके थे कि जेएनयू में प्रधानमंत्री के कार्यक्रम के दौरान वामपंथी और इस्लामिक गुटों ने नारेबाजी की और रास्ता रोकने का भी प्रयास किया.

वहीं, वर्ष 2010 में छत्तीसगढ़ के तत्कालीन दंतेवाड़ा जिले के ताड़मेटला में माओवादियों ने सबसे बड़ा आतंकी हमला किया था. इसमें सुरक्षाबल के 76 जवान बलिदान हो गए थे. इस हमले के बाद जहां पूरा देश गमगीन था, वहीं जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में वामपंथी छात्र गुटों द्वारा इसका जश्न मनाया गया था.

इस विषय पर छत्तीसगढ़ में तत्कालीन डीआईजी आईपीएस कल्लूरी ने कहा था कि ‘मुझे काफी दुःख पहुंचा था, जब मुझे यह पता चला कि जेएनयू में कुछ विद्यार्थियों द्वारा 76 जवानों के बलिदान का जश्न मनाया गया.’ वामपंथी और इस्लामिक गुटों ने इस जश्न के दौरान ‘इंडिया मुर्दाबाद’, और ‘माओवाद जिंदाबाद’ जैसे नारे भी लगाए थे.

इसके अलावा वर्ष 2016 में जेएनयू में देश को टुकड़े-टुकड़े करने वाले नारे लगाए गए. भारतीय संसद पर आतंकी हमले के दोषी इस्लामिक आतंकी अफजल गुरु की बरसी भी मनाई गई. वामपंथी और इस्लामिक गुट के छात्रों ने ‘भारत तेरे टुकड़े होंगे… इन्शाल्लाह.. इन्शाल्लाह’ जैसे नारे लगाए. इस मामले को लेकर तत्कालीन छात्र संघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार सहित उमर खालिद जैसे छात्र नेताओं को गिरफ्तार किया गया है.

इसके बाद भी जेएनयू में वामपंथी गुटों द्वारा लगातार समयांतराल में हिंसक गतिविधियों को अंजाम दिया गया. फीस वृद्धि और ड्रेस कोड लागू करने के विरोध में जेएनयू परिसर में लगी स्वामी विवेकानंद जी की प्रतिमा से छेड़छाड़ की गई. प्रतिमा के आस पास चबूतरे में भद्दी गालियां लिखी गई और भगवा को लेकर अपशब्द कहे गए. वहीं शाहीन बाग के हिन्दू विरोधी आंदोलन के दौरान भी जेएनयू के वामपंथी एवं इस्लामिक छात्रों की भूमिका सामने आई थी.

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