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अयोध्या आन्दोलन के पुरोधा श्री अशोक सिंघल जी का निधन

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दिल्ली. विश्व हिन्दू परिषद के मार्गदर्शक तथा श्रीरामजन्मभूमि आन्दोलन के पुरोधा श्री अशोक जी सिंघल का आज दोपहर 02.24 बजे गुड़गांव के मेदांता अस्पताल में निधन हो गया. उनका पार्थिव शरीर आज रात्रि 08.30 बजे विश्व हिन्दू परिषद कार्यालय, रामकृृष्णपुरम लाया जायेगा तथा रात्रि 10.00 बजे केशवकुंज, झण्डेवाला (संघ कार्यालय) में अंतिम दर्शन के लिए ले जाया जाएगा. कल 18 नवम्बर को सायंकाल 04.30 बजे निगमबोध घाट में उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा.

रा. स्व. संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहनराव भागवत तथा सरकार्यवाह श्री सुरेश (भय्याजी) जोशी द्वारा श्रद्धांजलि.

रा. स्व. संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहनराव भागवत तथा सरकार्यवाह श्री सुरेश (भय्याजी) जोशी ने श्रद्धांजलि व्यक्त करते हुए कहा है कि स्वर्गीय अशोक जी सिंघल के निधन से सारे विश्व के हिन्दू समाज को गहरा शोक हुआ है. उनके लम्बे संघर्षमय जीवन का अंत भी मृत्यु के साथ लम्बा संघर्ष करते हुए हुआ. श्री अशोक जी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक थे. संघ की योजना से उन्हें विश्व हिन्दू परिषद का दायित्व दिया गया था.

विश्व हिन्दू परिषद के माध्यम से हिन्दू समाज में चैतन्य निर्माण करते हुए उन्होंने हिन्दू समाज का सिंहत्व जाग्रत किया. श्री रामजन्मभूमि मंदिर निर्माण आन्दोलन को एक महत्व के मुकाम पर लाने में उनकी महत्व की भूमिका रही है. भारत के सभी श्रेष्ठ साधु – संतों के साथ सतत आत्मीय संपर्क के कारण उन्होंने सभी साधु –संतों का विश्वास एवं सम्मान अर्जित किया था. हिंदुत्व के मूलभूत चिन्तन का उनका गहरा अध्ययन था जो उनके वक्तव्य एवं संवाद द्वारा हमेशा प्रकट होता था.

ऐसे एक सफल संगठक एवं सक्रिय सेनापति को हिन्दू समाज ने आज खो दिया है. गत कुछ दिनों से अपने स्वास्थ्य के कारण विश्व हिन्दू परिषद् का कार्यभार अपने सुयोग्य साथियों को सौंप कर मार्गदर्शक के रूप में वे कार्य कर रहे थे. स्वतंत्र भारत के हिन्दू जागरण के इतिहास में श्री अशोक जी का संघर्षशील एवं जुझारू नेतृत्व सदा के लिए सभी के स्मरण में रहेगा.

उनकी दिवंगत आत्मा को सद्गति प्रदान हो ऐसी हम परमात्मा से प्रार्थना करते है.

मा. अशोक सिंघल जी का प्रेरक जीवन

Ashok jiनब्बे के दशक में श्रीराम जन्मभूमि आन्दोलन जब अपने यौवन पर था, उन दिनों जिनकी सिंह गर्जना से रामभक्तों के हृदय हर्षित हो जाते थे, उन श्री अशोक सिंघल को संन्यासी भी कह सकते हैं और योद्धा भी, पर वे जीवन भर स्वयं को संघ का एक समर्पित प्रचारक ही मानते रहे.

अशोक जी का जन्म आश्विन कृष्ण पंचमी (27 सितम्बर, 1926) को उ.प्र. के आगरा नगर में हुआ था. उनके पिता श्री महावीर सिंघल शासकीय सेवा में उच्च पद पर थे. घर के धार्मिक वातावरण के कारण उनके मन में बालपन से ही हिन्दू धर्म के प्रति प्रेम जाग्रत हो गया. उनके घर संन्यासी तथा धार्मिक विद्वान आते रहते थे. कक्षा नौ में उन्होंने महर्षि दयानन्द सरस्वती की जीवनी पढ़ी. उससे भारत के हर क्षेत्र में सन्तों की समृद्ध परम्परा एवं आध्यात्मिक शक्ति से उनका परिचय हुआ. 1942 में प्रयाग में पढ़ते समय प्रो. राजेन्द्र सिंह (रज्जू भैया) ने उनका सम्पर्क राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से कराया. उन्होंने अशोक जी की माता जी को संघ के बारे में बताया और संघ की प्रार्थना सुनायी. इससे माता जी ने अशोक जी को शाखा जाने की अनुमति दे दी.

1947 में देश विभाजन के समय कांग्रेसी नेता सत्ता प्राप्ति की खुशी मना रहे थे, पर देशभक्तों के मन इस पीड़ा से सुलग रहे थे कि ऐसे सत्तालोलुप नेताओं के हाथ में देश का भविष्य क्या होगा ? अशोक जी भी उन देशभक्त युवकों में थे. अतः उन्होंने अपना जीवन संघ कार्य हेतु समर्पित करने का निश्चय कर लिया. बचपन से ही अशोक जी की रुचि शास्त्रीय गायन में रही है. संघ के अनेक गीतों की लय उन्होंने ही बनायी है.

1948 में संघ पर प्रतिबन्ध लगा, तो अशोक जी सत्याग्रह कर जेल गये. वहाँ से आकर उन्होंने बी.ई. अंतिम वर्ष की परीक्षा दी और प्रचारक बन गये. अशोक जी की सरसंघचालक श्री गुरुजी से बहुत घनिष्ठता रही. प्रचारक जीवन में लम्बे समय तक वे कानपुर रहे. यहाँ उनका सम्पर्क श्री रामचन्द्र तिवारी नामक विद्वान से हुआ. वेदों के प्रति उनका ज्ञान विलक्षण था. अशोक जी अपने जीवन में इन दोनों महापुरुषों का प्रभाव स्पष्टतः स्वीकार करते हैं.

1975 से 1977 तक देश में आपातकाल और संघ पर प्रतिबन्ध रहा. इस दौरान अशोक जी इंदिरा गांधी की तानाशाही के विरुद्ध हुए संघर्ष में लोगों को जुटाते रहे. आपातकाल के बाद वे दिल्ली के प्रान्त प्रचारक बनाये गये. 1981 में डाॅ. कर्णसिंह के नेतृत्व में दिल्ली में एक विराट हिन्दू सम्मेलन हुआ, पर उसके पीछे शक्ति अशोक जी और संघ की थी. उसके बाद अशोक जी को विश्व हिन्दू परिषद् की जिम्मेदारी दी गयी.

इसके बाद परिषद के काम में धर्म जागरण, सेवा, संस्कृत, परावर्तन, गोरक्षा.. आदि अनेक नये आयाम जुड़े. इनमें सबसे महत्त्वपूर्ण है श्रीराम जन्मभूमि मंदिर आन्दोलन, जिससे परिषद का काम गाँव-गाँव तक पहुँच गया. इसने देश की सामाजिक और राजनीतिक दिशा बदल दी. भारतीय इतिहास में यह आन्दोलन एक मील का पत्थर है. आज विहिप की जो वैश्विक ख्याति है, उसमें अशोक जी का योगदान सर्वाधिक है.

अशोक जी परिषद के काम के विस्तार के लिए विदेश प्रवास पर जाते रहे हैं. इसी वर्ष अगस्त-सितम्बर में भी वे इंग्लैंड, हालैंड और अमरीका के एक महीने के प्रवास पर गये थे. परिषद के महामंत्री श्री चम्पत राय जी भी उनके साथ थे. पिछले कुछ समय से उनके फेफड़ों में संक्रमण हो गया था. इससे उन्हें सांस लेने में परेशानी हो रही थी. इसी के चलते 17 नवम्बर, 2015 को दोपहर में गुड़गांव के मेदांता अस्पताल में उनका निधन हुआ.

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