खंडित भारत को पुनः अखंड बनाएंगे..!
प्रशांत पोळ
१५ अगस्त १९४७. खंडित भारत का स्वतंत्रता दिवस.
किसी सर सिरिल रेडक्लिफ को ब्रिटिश सरकार, भारत के विभाजन की रेखा खींचने के लिए बिठा देती है. इस रेडक्लिफ को भारत का भूगोल, इतिहास और वर्तमान… कुछ भी मालूम नहीं है. वो भारत को तीन हिस्सों में बांटता है – पश्चिम पाकिस्तान, भारत और पूर्व पाकिस्तान. अनेक हिन्दु बहुल गांव, पाकिस्तान में चले जाते हैं. लाहौर में हिन्दुओं की संख्या और संपत्ति ज्यादा है, फिर भी उसे पाकिस्तान को सौंपा जाता है. चटगांव पहाड़ी इलाकों में ९७% तक बहुसंख्यक ग़ैर-मुसलमानों की आबादी रहती है (जिनमें से अधिकांश बौद्ध हैं), लेकिन यह पाकिस्तान को सौंप दिया जाता है. पूर्णतः अप्राकृतिक विभाजन होता है… लेकिन दुर्भाग्य से, तत्कालीन राजनीति की अगुवा, कांग्रेस, इस विभाजन का समर्थन करती है. रेडक्लिफ रेखा को मान्यता देती है..!
पवित्र हिंगलाज देवी का मंदिर अब भारत का हिस्सा नहीं रहा. ढाके की ‘मां ढाकेश्वरी’ भी अब भक्तों के लिए दुर्लभ हो जाती है. गुरु नानक देव का जन्म जहां हुआ, ऐसा ननकाना साहिब और उन्होंने अंतिम १७ साल जहां बिताए ऐसा करतारपुर साहिब, पाकिस्तान की अमानत बन जाते हैं. क्रांतिकारियों का स्फुल्लिंग बना चिटगांव भी भारत का हिस्सा नहीं रहता. ऐसे अनेक स्थान, अनेक शहर, अनेक नदियां, अनेक तीर्थस्थान… जहां पर उपनिषदों के पाठ हुए, जहां पर वेदों की ऋचाएं गाई गईं, जहां देवताओं के जागरण हुए, जहां पाणिनी ने विश्व की सबसे प्राचीन संस्कृत भाषा के व्याकरण की रचना की, जहां भारतवर्ष का श्रेष्ठतम ज्ञानमंदिर तक्षशिला था.. ये सारे स्थान अब भारत के मानचित्र में नहीं रहते..!
देश का अर्थ मात्र जमीन का टुकडा नहीं होता… वह तो जीवंत राष्ट्रपुरुष होता है… ऐसे राष्ट्रपुरुष के अंग मानो काट लिए गए..!
नेहरु जी ने जिसे नियति के साथ करारनामा कहा था… उस खंडित स्वातंत्र्य को आज ७५ वर्ष पूर्ण हो रहे हैं..!
मेरे कुछ मित्र पूछते हैं… हर 15 अगस्त को ये खंडित स्वतंत्रता का राग क्यों अलापना..? हो गया, सो हो गया..! अब क्यों उस पर विचार करना..?
यह उसी सोच का परिणाम है, जिसके कारण हम सिमटते ही जा रहे हैं…! एक-एक हिस्सा हम से कटता गया.. हम छोटे होते गए और विश्व के बाजार में कभी पहले क्रमांक की अर्थव्यवस्था रखने वाले हम, विश्व व्यापार में ३% के व्यापार को तरस रहे हैं..! विभाजन का सीधा परिणाम हमारी समृद्धि पर, हमारी सम्पन्नता पर होता है.
क्या हमने कुछ सीख ली इससे..?
१५ अगस्त १९४७ के मात्र कुछ ही महीनों बाद पाकिस्तान ने कबाइलियों के नाम पर सेना भेजकर हमारा आधा काश्मीर तोड़ लिया. गिलगित और बाल्टिस्तान भारत से अलग किया और अक्साई चीन का हमारा कुछ हिस्सा, चीन को दे दिया..! क्या किया हमने..? कुछ नहीं, सिवाय संसद में प्रस्ताव पारित करने के..!
आज भी भारत को तोड़ने का षड्यंत्र चल रहा है. असम और बंगाल में भारी घुसपैठ हो रही है. काश्मीर घाटी को तोड़ने के लिए पाकिस्तान पुरजोर कोशिश कर रहा है और हमारे दुर्भाग्य से देश के अन्दर अनेक ‘कैराना’ निर्माण हो रहे हैं. केरल और बंगाल में अनेक छोटे-छोटे पाकिस्तान निर्माण करने का प्रयास हो रहा है.
सोये हुए समाज को जगाने और नई पीढ़ी को इस खंडित स्वतंत्रता के बारे में बताने के लिए ‘अखंड भारत’ का संकल्प आवश्यक है…!
दो हजार वर्षों के बाद यदि यहूदियों को अपनी मातृभूमि ‘इसराइल’ के रूप में मिल सकती है, तो हमारा खंडित भारत भी कल ‘अखंड भारत’ के रूप में निश्चित ही खड़ा होगा..!
सदियों से पुराने दुश्मन रहे देशों के साथ यदि आज यूरोप एक हो रहा है, तो भारत भी अखंड निश्चित होगा…
योगी अरविन्द की भाषा में कहें तो, ‘अखंड भारत यह काल के पटल पर लिखा गया शाश्वत सत्य है..! यह व्यवहारिक है. हमें संपन्नता के रास्ते पर ले जाने वाला वाहक है’. इसीलिए आज ‘विभाजन विभीषिका दिन’ के निमित्त हमें ‘अखंड भारत’ का संकल्प दोहराना है.
इन्ही बातों को, श्री अटल बिहारी बाजपेयी जी के शब्दों में –
‘कैसे उल्लास मनाऊं मैं
थोड़े दिन की मजबूरी है…
दिन दूर नहीं, खंडित भारत को
पुनः अखंड बनाएंगे…
गिलगिट से गारो पर्वत तक,
आजादी पर्व मनाएंगे..!
उस स्वर्ण दिवस के लिये
आज से कमर कसें.. बलिदान करें..
जो पाया उसमें खो न जाएं…
जो खोया उसका ध्यान करें…!’
…..(समाप्त)
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