करंट टॉपिक्स

तब आप क्या कर रहे थे…?

Spread the love

प्रशांत पोळ

‘द कश्मीर फाइल्स’ की जबरदस्त सफलता के कारण तमाम वामपंथी और इस्लामिस्ट्स बौखला गए हैं. आज तक खड़ा किया सारा विमर्श उन्हें बिखरता हुआ नजर आ रहा है. इसलिए राष्ट्रवाद के इस नए तूफान को भ्रमित करने, वे सोशल मीडिया के तमाम मंचों पर यह प्रश्न उठा रहे हैं, “तब आप क्या कर रहे थे..? दिल्ली में सरकार आपकी थी. राज्यपाल जगमोहन आपके थे. फिर भी यह नरसंहार क्यों हुआ? क्या किया आपने तब?”

‘उल्टा चोर कोतवाल को डांटे’ इस मुहावरे का इससे अच्छा प्रयोग नहीं हो सकता.

1984 में आठवीं लोकसभा के चुनाव में काँग्रेस को राक्षसी बहुमत मिला था. कुल 514 में से 404 सीट्स. भाजपा के मात्र 2 सांसद चुन कर आए थे. किन्तु परिस्थिति तेजी से बदली. 1989 के चुनाव में, उन्हीं राजीव गांधी के नेतृत्व में काँग्रेस बहुमत का आंकड़ा भी नहीं छू सकी. उन्हें मिली 197 सीटें. नवगठित ‘जनता दल’ के 143 सदस्य चुनकर आए. श्री राम जन्मभूमि आंदोलन के कारण पहली बार, भाजपा का आंकड़ा 2 से बढ़कर 85 तक पहुंचा था. मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी को 33 सीटें मिली थीं. अतः जनता दल की सरकार बनी, जिसे भाजपा और कम्युनिस्ट पार्टी ने बाहर से समर्थन दिया. विश्वनाथ प्रताप सिंह प्रधानमंत्री बने.

इधर, कश्मीर की परिस्थिति क्या थी? नेहरू के चहेते, शेख अब्दुल्ला के बेटे फारुख अब्दुल्ला मुख्यमंत्री थे. कश्मीर से ही चुने गए मुफ़्ती मोहम्मद सईद देश के गृहमंत्री थे. 1987 के विधानसभा चुनाव में 76 में से फारुख अब्दुल्ला की नेशनल कॉन्फ्रेंस को 40 और काँग्रेस को 26 सीटें मिली थीं. जम्मू क्षेत्र से भाजपा के मात्र 2 विधायक चुन कर आए थे. इस चुनाव के बाद, सन् 1988 से ही, कश्मीर घाटी में पाकिस्तानियों की घुसपैठ बढ़ गई थी. हिन्दुओं को घाटी से भगाने का आंदोलन प्रारंभ हो गया था. यासीन मलिक (जिसे फिल्म में ‘बिट्टा’ के रूप में दिखाया है), यह आतंकवादी गुट, ‘जम्मू – कश्मीर लिबरेशन फ्रंट’ (JKLF) का नेता था. अनेक आतंकवादी गुटों के साथ, वह खुलेआम केंद्र शासन को चुनौती देता था. चुन – चुन कर घाटी के हिन्दू नेताओं को मारता था. 1986 के कश्मीर दंगों में इसकी बड़ी भूमिका थी. 14 सितंबर, 1989 को ‘टीका लाल टपलू’ की दिन दहाड़े, खुलेआम हत्या करके दहशत फैलाने का काम प्रारंभ हो गया था. टीका लाल टपलू, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के निष्ठावान और समर्पित स्वयंसेवक थे. कश्मीरी पंडित उन्हें आदर से देखते थे.

1989 में कश्मीर में हो रही इन हत्याओं के दौर में दिल्ली में वी.पी. सिंह की सरकार थी, जिसमें मुफ़्ती मोहम्मद सईद गृहमंत्री थे और फारुख अब्दुल्ला मुख्यमंत्री..! इसी बीच 8 दिसंबर, 1989 को, गृहमंत्री मुफ़्ती साहब की लड़की, रूबिया सईद का आतंकवादी अपहरण कर लेते हैं. उसके बदले कश्मीर के जेल में बंद पांच खूंखार आतंकवादियों को रिहा करने की मांग रखी जाती है. अपहरण की ज़िम्मेदारी जेकेएलएफ और उसके नेता यासीन मलिक लेते हैं. पांच दिन यह नाटक चलता है. पांच दिनों के बाद रूबिया सईद को सुरक्षित लौटाया जाता है और वहां पांच खूंखार आतंकवादी रिहा किए जाते हैं..!

इस पूरे प्रकरण में, ना तो जेकेएलएफ़ का कोई नेता गिरफ्तार होता है, ना ही यासीन मलिक को गिरफ्तार किया जाता है. गिरफ्तारी छोड़िए, पूछताछ के लिए भी नहीं बुलाया जाता… 1989 के दिसंबर और 1990 के जनवरी महीने में पूरा कश्मीर आतंकवादियों के हवाले कर दिया गया है. जैसा कश्मीर फाइल्स में दिखाया गया है, बिलकुल वैसा ही कश्मीर का माहौल है. रोज रात को मशाल जुलूस निकाल रहे हैं, जिसमें हिन्दुओं को, उनकी औरतों को कश्मीर में छोड़कर, भाग जाने के लिए कहा जा रहा है. 4 जनवरी, 1990 को श्रीनगर से प्रकाशित होने वाले दैनिक ‘आफताब’ ने एक बड़ा सा विज्ञापन प्रकाशित किया, जिसमें हिजबुल मुजाहिदीन ने सारे हिन्दू – सिक्ख समुदाय को घाटी छोड़ के जाने के लिए कहा गया था. पूरे घाटी में पाकिस्तानी करेंसी का प्रयोग हो रहा था.

कश्मीर में हो रहे हिन्दुओं के हत्याकांड पर जब भाजपा ने आवाज उठाना शुरू किया, चिल्लाना शुरू किया, तब फारुख अब्दुल्ला को हटाकर राष्ट्रपति शासन लगाया गया. यह दिन था, 19 जनवरी, 1990. आतंकवादियों को यह पहले से पता चल गया था, कि 19 जनवरी को राज्यपाल का शासन लगेगा. इसलिए 18 जनवरी की रात और 19 जनवरी को पूरे दिन भर कश्मीर घाटी में हिन्दुओं के खून की होली खेली गई. इसी दिन राज्यपाल के रूप में जिस व्यक्ति को दिल्ली ने भेजा, वह थे – जगमोहन!

इस समय तक जगमोहन का और भाजपा का, दूर – दूर तक कोई संबंध नहीं था. जगमोहन काँग्रेस के आदमी थे. विशेषतः गांधी परिवार के खास. आपातकाल (1975 – 1977) में संजय गांधी की आज्ञा से तुर्कमान गेट और अन्य स्थानों के अतिक्रमण तोड़ने वाले प्रशासक. संजय गांधी के कारण ही वे ‘नाम’ समिट के समय गोवा और एशियाड के समय दिल्ली के उप-राज्यपाल बने. इन आयोजनों की सफलता के कारण वे इंदिरा गांधी और बाद में राजीव गांधी के चहेते बने. वे कुशल प्रशासक थे.

जगमोहन ने कश्मीर के हिन्दुओं की जो स्थिति देखी, उससे वो अंदर तक हिल गए. उन दिनों पर उन्होंने पुस्तक लिखी है – My Frozen Turbulence in Kashmir’. कश्मीर के राज्यपाल के नाते उनका कार्यकाल मात्र पांच महीनों का ही रहा. जब वे वहां मुस्लिम आतंकवादियों पर कहर बरसाने लगे, तो उन्हें गृहमंत्री मुफ़्ती मोहम्मद सईद ने राज्यपाल पद से हटा दिया. इसके बाद जगमोहन ने भाजपा में शामिल होने का निर्णय लिया.

कश्मीर की इन तत्कालीन घटनाओं पर सबसे ज्यादा आवाज उठाई तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने. उस समय नए बनने जा रहे ‘पुनुन कश्मीर’ (हमारा कश्मीर) के शीर्ष नेताओं को, जिसमे ‘अग्निशेखर जी’ प्रमुख थे, संघ ने देश भर, विभिन्न स्थानों पर लोगों से, पत्रकारों से मिलवाया. कश्मीर की स्थिति को लोगों तक लेकर जाने के पूरे प्रयास किए. दुर्भाग्य से उन दिनों संघ को उतना नहीं सुना जाता था, जितना आज सुना जाता है !

इसलिए कोई अगर यह कहे कि ‘उस समय आप क्या कर रहे थे?’ तो उनसे पूछिए –

– शेख अब्दुल्ला, फारुख अबुल्ला और उमर अब्दुल्ला की खासमखास काँग्रेस पार्टी क्या कर रही थी?

– जितने वामपंथी यह सवाल उठा रहे हैं, उनसे पूछना है, वे क्या कर रहे थे? वी. पी. सिंह सरकार को उनका भी तो समर्थन था.

– देश के तमाम बुद्धिजीवी मुस्लिम नेताओं ने इस घटना पर क्या कहा? किसी एक मुसलमान नेता ने भी इस घटना का विरोध किया?

– फारुख अब्दुल्ला परिवार की खास समर्थक काँग्रेस सरकार दस साल तक दिल्ली में राज करती रही. उसने एक बार, एक बार भी इस समस्या का हल ढूँढने की कोशिश की?

– और सिनेमा जगत…. दुनिया भर के प्रश्नों पर सिनेमा बनाने वाले हमारे बॉलीवुड के निर्माता, कश्मीर के इस सच को इतने वर्षों तक क्यों नहीं पर्दे पर लाये?

#TheKashmirFiles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *