राठ (हमीरपुर)….
श्रीराम जन्मभूमि मंदिर निर्माण निधि समर्पण अभियान में समाज का प्रत्येक वर्ग, प्रत्येक व्यक्ति अपना योगदान दे रहा है. अपने सामर्थ्य से बढ़कर सहयोग कर रहे हैं. प्रभु श्रीराम के प्रति असीम आस्था के उदाहरण देखने को मिल रहे हैं.
राठ में भी ऐसा ही अनुभव आया. जूठे बर्तन साफ कर तथा जूठे पत्तल उठा कर आजीविका कमाने वाले किशोरीलाल जी ने 2100 रु की निधि श्रीराम के चरणों में समर्पित की. किशोरी लाल जी को निधि समर्पण अभियान में जुटे कार्यकर्ताओं से श्रीराम मंदिर निर्माण की जानकारी मिली तो उन्होंने लगातार काम करके 1600 रुपये की राशि एकत्रित की. पर, अभी मन के अनुरूप नहीं थी तो 500 रुपये उधार लेकर कुल 2100 रु की निधि समर्पित की. श्रीराम मंदिर हेतु समर्पण निधि प्रान्त प्रचारक श्रीराम जी को सौंपी.
उसकी भावुकता एवं समर्पण देखकर प्रांत प्रचारक श्रीराम जी ने किशोरीलाल जी को पटका पहना कर सम्मानित किया.
कानपुर.
निधि समर्पण अभियान के निमित्त कार्यकर्ताओं की टोली गुमटी नंबर पांच में घूम रही थी, तभी एक युवक तेजी से हांफता हुआ आया और कार्यकर्ताओं को रोका. उसने बताया कि एडवांस लेने में थोड़ा टाइम लग गया, हमारे भी रुपये मंदिर के लिए जमा कर लीजिए.
बातचीत पर श्याम सुंदर ने बताया कि पास में ही एक होटल में रसोइया का काम करता है. श्रीराम मंदिर निर्माण के संबंध में चर्चा सुनी और निधि समर्पण अभियान के बारे में पता लगा तो वह भी सहयोग करना चाहता था. वह होटल के मैनेजर से अपने वेतन का 200 रुपये एडवांस लेकर आया है. और श्रीराम मंदिर के लिए समर्पण करना है.
निधि समर्पण
श्रीराम जन्मभूमि मंदिर निर्माण निधि समर्पण अभियान के निमित्त कांगड़ा के डूंगा बाज़ार में थे…
वहां एक चाय की दुकान से समर्पण निधि लेकर जैसे ही आगे बढ़ने लगा तो किसी ने पीछे से हाथ मेरे कंधे पर रखते हुए मेरा नाम पुकारा. मैं आश्चर्यचकित होकर पीछे मुड़ा और उस आदमी को पहचानने की नाकाम कोशिश करने लगा. कहीं तो देखा है यह चेहरा. अभी मैं सोच ही रहा था कि उस आदमी ने स्वयं ही अपना परिचय दिया : अरे ! मैं बशीर मोहम्मद.
एकाएक ही, मैं अपने बचपन के उस पड़ाव की यादों में खो गया, जब बशीर और मैं, अपने और सभी मित्रों के साथ खेल-कूद किया करते थे. बशीर ने मुझे याद दिलाया कि एक बार 1500 मीटर की दौड़ में वह द्वितीय और मैं प्रथम आया था. कुछ देर पुराने पलों को याद करने के पश्चात जब आगे जाने लगा तो बशीर ने फिर मुझे रोका और 500 का नोट आगे बढ़ाते हुए कहा, कृप्या मेरी भी भेंट प्रभु श्रीराम के भव्य मंदिर निर्माण के लिए स्वीकार करें…
उसकी बात ने मेरे दिल को छू लिया. नरेंद्र धीमान जी से बशीर को समर्पण की रसीद देते हुए लिया गया यह चित्र हमेशा ही ख़ास रहेगा.
— अश्वनी त्रेहन, काँगड़ा (हि.प्र.)