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भारत की संस्कृति वेद-तंत्र-योग की त्रिवेणी का संगम है – जे. नंदकुमार जी

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विद्वत संगम बैंगलुरु

कश्मीर का युवा अपने अतीत से जुड़ेगा तो निश्चित ही नकारात्मक ताकतों को विफल करेगा – निर्मल सिंह जी

बैंगलुरु. राष्ट्रीय विद्वत संगम का उद्घाटन आर्ट ऑफ लिविंग के अंतरराष्ट्रीय केंद्र, बेंगलुरु में श्रीश्री रविशंकर की उपस्थिति में हुआ. विद्वत संगम कश्मीर के महान भारतीय दार्शनिक आचार्य अभिनवगुप्त जी की सहस्राब्दी समारोह को मनाने के लिए आयोजित किया गया है. आचार्य अभिनवगुप्त विश्व प्रसिद्ध दार्शनिक और शैव परंपरा के महानतम प्रतिपादक थे. यह कहा जाता है कि आज से 1000 वर्ष पहले 1200 शिष्यों के साथ वे जम्मू-कश्मीर में भीरवाह की एक गुफा में गये और शिव में लीन हो गये. आज दुनियाभर में 50 विश्वविद्यालयों में आचार्य अभिनवगुप्त पर शोध कार्य हो रहा है.

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय सह प्रचार प्रमुख जे. नंदकुमार जी ने कहा कि आचार्य अभिनवगुप्त ने भारत के संतों की महानता को सन्निहित किया है. भारत के इतिहास में सतत् रूप से पुनर्जागरण होता रहा है. अनेकों महान लोगों ने हमारे सांस्कृतिक मूल्यों और लोकाचार में योगदान दिया, आचार्य अभिनवगुप्त भी उन सब महान दार्शनिको में से एक थे.

भारतीय दर्शनशास्त्रियों को परोक्ष में धकेलने के जो निरंतर प्रयास हुए उनका हवाला देते हुए नंदकुमार जी ने कहा कि यह समझा जा सकता है कि ब्रिटिशों ने रणनीति के तहत अपना उपनिवेश स्थापित करने के लिए हर भारतीय को कम आँका. तथापि, यह दुख की बात है कि स्वतंत्र भारत के नेतृत्व ने भी उन्हीं पदचिन्हों पर चलना जारी रखा. भारतीय दर्शन, तंत्र और योग को यथोचित सम्मान नहीं दिया गया. आज भी आचार्य अभिनवगुप्त की चर्चा नहीं की जाती और जितना शोध उन पर होना चाहिए था, वह नहीं हुआ. इसलिए हमारे इतिहास और हमारे दर्शन शास्त्र की सही विशेषताओं को जानने की अनिवार्य आवश्यकता है. भारत की संस्कृति वेद-तंत्र-योग की त्रिवेणी का संगम है और अभिनवगुप्त इस का एक अनिवार्य हिस्सा है.

इस अवसर पर जम्मू-कश्मीर के उप-मुख्यमंत्री डॉ. निर्मल सिंह जी ने कहा कि भारत विरोधी ताकतों के द्वारा कश्मीर के लोगों, विशेषकर युवाओं के ध्रुवीकरण के लिए सोची-समझी रणनीति के तहत कोशिशें हो रही हैं. जबकि धार्मिक तत्वों का इस ध्रुवीकरण से कोई सारोकार नहीं है. हाल ही में राज्य में फैली अशांति इसका एक महत्वपूर्ण बिंदु है. जम्मू-कश्मीर में पिछली तीन राजनैतिक पीढ़ियों ने लगातार कश्मीर के लोगों को गुमराह किया है. इसके बावजूद वहां पर सकारात्मक माहौल बनाने के लिए काफी अवसर है. उन्होंने कहा कि, “आचार्य अभिनवगुप्त के दर्शन और उनेक कृत्यों ने कश्मीर की सांस्कृतिक विरासत का निर्माण किया है”. इसको अध्ययन करने, समझने और उचित संदर्भ में लोकप्रिय बनाने की जरुरत है. उनका कार्य आज एक हज़ार वर्ष के बाद भी प्रासंगिक बना हुआ है. जब कश्मीर का युवा अपने अतीत से जुड़ेगा तो वह निश्चित ही नकारात्मक ताकतों को विफल करने में सक्षम बनेगा.

दो दिवसीय विद्वानों की बैठक में 8 अलग-अलग वार्ता सत्रों में अभिनवगुप्त के कृत्यों के विभिन्न पहलुओं और वर्तमान मुद्दों पर चर्चा होगी. विशाल कार्यक्रम में कई विश्वविद्यालयों के कुलपति, भारतीय सशस्त्र बलों के पूर्व अफसर, प्रोफेसर, स्तंभकार, वरिष्ठ अधिवक्ता, पूर्व न्यायाधीश और सिविल सोसायटी के अन्य प्रख्यात सदस्य भाग ले रहे है.

इस अवसर पर जम्मू कश्मीर स्टडी सेंटर के अध्यक्ष और आचार्य अभिनवगुप्त सहस्राब्दी समारोह समिति के कार्यकारी अध्यक्ष जवाहरलाल कौल जी ने कहा कि आचार्य अभिनवगुप्त के वर्षभर चलने वाले सहस्राब्दी समारोह ने कश्मीर की प्रतिभा को जाग्रत ही नहीं किया, बल्कि विद्वानों, छात्रों और आम लोगों के बीच पूरे भारत भर में जबरदस्त उत्साह पैदा किया है. दर्जन भर से ज्यादा विश्वविद्यालय, कला एवं सांस्कृतिक संस्थान आधुनिक भारत के लिए उनके दर्शन की प्रासंगिकता पर एक महान चर्चा में भाग ले रहे है. इसलिए यह स्वाभाविक है कि साल के इस लंबे समारोह के समापन को विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत विश्वविद्यालय के शिक्षकों और सैकड़ों विद्वानों को शामिल कर बंगलौर में इस महान दार्शनिक के बारे में अनुभवों और विचारों के आदान-प्रदान के लिए विभिन्न पहलुओं पर चर्चा हेतु एक सम्मेलन हो रहा है. राष्ट्रीय विद्वत संगम में कई सामरिक और विषय विशेषज्ञ आठ वार्ता सत्रोंमें जम्मू और कश्मीर से जुड़े विभिन्न विषयों पर मंथन कर रहे है . ये “वार्ता सत्रजम्मू-कश्मीर पर चल रही चर्चा से संबंधित महत्वपूर्ण विषयों पर दूरगामी निहितार्थ को ध्यान में रखते हुए केन्द्रित रहेंगे.

जम्मू-कश्मीर स्टडी सेंटर के निदेशक आशुतोष ने कहा कि “हिमालय क्षेत्र के भू-राजनीति” सत्र PoJK (पाक के कब्जे वाले जम्मू कश्मीर), CoJK (चीन के कब्जे वाले जम्मू कश्मीर) और गिलगित-बाल्टिस्तान पर सामरिक विशेषज्ञों और पूर्व रक्षा कर्मियों द्वारा जीवंत विचार विमर्श होगा. उन्होंने कहा कि “जम्मू कश्मीर के कानूनी और संवैधानिक स्थिति” पर वार्ता सत्र में हाल ही सुप्रीम कोर्ट के फैसले के आलोक में जहां शीर्ष अदालत ने धारा 370 पर अपनी सीमा लांघने के लिए उच्च न्यायालय की खिंचाई की, उस पर चर्चा करेंगे.

इन 8 वार्ता सत्रों में निम्नलिखित विषयों पर चर्चा हुई –

1. जम्मू कश्मीर का कानूनी और संवैधानिक दर्जा

2. इतिहास में जम्मू-कश्मीर

3. हिमालय क्षेत्र की भू-राजनीति

4. आचार्य अभिनवगुप्त एवं संचार और मीडिया

5. आचार्य अभिनवगुप्त और भारतीय साहित्य: शास्त्रीय और लोक

6. आचार्य अभिनवगुप्त और सांस्कृतिक अध्ययन

7. आचार्य अभिनवगुप्त और सभ्यता अध्ययन

8. आचार्य अभिनवगुप्त और दर्शन, अध्यात्म और साधना

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