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धार्मिक संवाद के नाम पर हिन्दू धर्म के विरूद्ध उगला जहर, संस्कृति का मखौल उड़ाया

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उदयपुर (विसंकें). मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय के दर्शनशास्त्र विभाग द्वारा ‘धार्मिक संवाद-समय की आवश्यकता’ शीर्षक के साथ विस्तृत व्याख्यान का आयोजन कला महाविद्यालय के सभागार में किया गया. जिसमें मुख्य वक्ता के रूप में दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व विभागाध्यक्ष ने हिन्दू धर्म का जमकर मखौल उड़ाया. प्रारम्भ में विभिन्न धर्मों की विशेषताओं का वर्णन करते हुए हिन्दू धर्म के प्रति घृणा उत्पन्न करने वाले अपने वक्तव्य की पूर्व पीठीका तैयार की. हिन्दू धर्म के प्रति घृणास्पद वर्णन को श्रोता चुपचाप सुनते एवं सहते रहे.

Hindutvaधार्मिक संवाद के नाम पर आयोजित कार्यक्रम में वक्ता ने हिन्दू धर्म के विरूद्ध जहर उगलने के लिए भारत के पारतन्त्रय काल में पाश्चात्य विदेशियों द्वारा क्रमशः 16वीं, 17वीं एवं 18वीं शताब्दी में हिन्दू धर्म के अन्तर्गत प्रचलित पूजा पद्धतियों के प्रति भ्रामक, विद्वेशजनक एवं अज्ञानता पूर्ण किये गये वर्णन, मन्दिरों, मूर्तियों, मान्यताओं, कुरीतियों एवं देवी-देवताओं के प्रति उस समय की गयी अश्लील, घृणास्पद एवं भद्दी टिप्पणियों को उनके (विदेशी टिप्पणिकारों) के नाम का हवाला देते हुए, चतुराई एवं धूर्तता के साथ ‘यही हमारा हिन्दू धर्म है’ इस रूप में व्याख्या की. दूसरी ओर मामले की जानकारी मिलने तथा विरोध के स्वर उठने के पश्चात राजस्थान सरकार के शिक्षा मंत्री ने मुख्य वक्ता पर एफआईआर दर्ज करने के आदेश जारी कर दिए हैं. मुख्य वक्ता की ओर से अपने वक्तव्य को सही ठहराने का प्रयास किया जा रहा है.

अपने व्याख्यान में वक्ता ने वर्णन करते हुए हिन्दू देवी-देवताओं के प्रति अत्यन्त अश्लील एवं भद्दी टिप्पणियों का उपयोग करते हुए भगवान श्री गणेश जी को अपनी माता पर बुरी नजर रखने वाला, नपुंसक, और अनेक टिप्पणियां कीं. गणेश जी के मोदकप्रिय होने से यह पता चलता है कि वे स्त्री प्रेमी हैं. उन्होंने हिन्दू मूर्तियों को शैतान जैसी दिखाई देने वाली कहा. देवियों को प्रदूषित सामग्री से भोग प्राप्त करने वाली, सहित अन्य टिप्पणियां कीं. उन्होंने उर्ध्व शिवलिंग को तीव्र भोग वासना का प्रतीक, हिन्दूधर्म के उपासकों को हठी एवं पोंगा पन्थी बताते हुए मन्दिरों, देवी-देवताओं पर अनेक प्रकार की घिनौनी, अशोभनीय एवं लज्जाजनक टिप्पणियों का प्रयोग किया.

सभागार में मौजूद संस्कृत के पूर्व विभागाध्यक्ष एवं विश्वविद्यालय प्रबन्ध मण्डल के सदस्य प्रो. नीरज शर्मा ने मुख्य वक्ता के हिन्दू धर्म एवं देवी-देवताओं  के  प्रति दिए जा रहे घृणास्पद वक्तव्य की तीखी आलोचना करते हुए विरोध जताया, गणेश भगवान सहित अन्य देवी-देवताओं पर की जा रही टिप्पणियों एवं व्याख्यान के विषय के सम्बन्ध में प्रश्न खड़ा किया. उन्होंने पूछा कि आपके वर्णन से आज के ‘विस्तार व्याख्यान’ के विषय का अभिप्राय किस प्रकार सिद्ध हो रहा है? ‘‘आपके अब तक के वर्णन का भारतीय दार्शनिक चिन्तन से क्या लेना-देना है?’’ प्रो. नीरज शर्मा ने दो टूक कहा कि आप पूजा पद्धति को धर्म से क्यों जोड़ रहें हैं? प्रो. नीरज शर्मा ने धर्म के अभिप्राय के सम्बन्ध में विदेशियों के उद्धरणों को विषयान्तर, अनावश्यक एवं अनर्गल बताते हुए विरोध जताया. विदेशियों द्वारा की गई अश्लील टिप्पणियों को नहीं जोड़ने के लिए चेताया. उन्होंने आग्रह किया कि भारतीय दर्शन की चर्चा करते समय भारतीयों के इस सम्बन्ध में क्या विचार है? यह विषय आना चाहिए. विदेशियों ने भारतीय धर्म के बारे में क्या नकारात्मक कहा है, उससे हमें क्या लेना-देना?

सभागार में सार्वजनिक विरोध के बाद भी वक्ता ने हिन्दू धर्म के विदेशी आलोचकों को महान बताते हुए उनके उद्धरणों को महत्वपूर्ण बताया और अपना व्याख्यान पूरा किया. प्रो. नीरज शर्मा ने प्रो. वोहरा के व्याख्यान के तुरन्त पश्चात, ‘धर्म’ अर्थात् ‘क्या?’ इस पर अपने संक्षिप्त भाषण में धर्म की परिभाषा बताते हुए, पुनः आग्रह किया कि यदि आज की इस सभा में वास्तव में धर्म पर चर्चा होती तो आज का यह व्याख्यान अवश्य ही अपने शीर्षक को सार्थक करता.

सभागार में उपस्थित उर्दू विभाग के प्रो. फारूख बख्शी ने प्रो. नीरज के विरोध एवं संस्कृत विभाग के साथ उनका व्यक्तिगत रुप से मखौल उड़ाते हुए मुख्य वक्ता का समर्थन किया. घृणास्पद वक्तव्य का विरोध करने वाले प्रो.नीरज अकेले नहीं थे. सभागार में उपस्थित अतिथि विधि व्याख्याता डॉ. सुरेन्द्र कुमार जाखड़ ने बालिकाओं एवं महिलाओं से भरे सभागार में हिन्दू देवताओं पर अश्लील टिप्पणियों को असहनीय, अनैतिक, घोर निन्दनीय कृत्य बताते हुए, विश्वविद्यालय जैसे बड़े एवं प्रतिष्ठित मंचों का इस प्रकार से हिन्दू धर्म के प्रति घृणा फैलाने के लिए उपयोग किए जाने को गलत बताया. उन्होंने इस प्रकार से विश्वविद्यालय के मंच का दुरूपयोग रोकने की मांग की. साथ ही मुख्य वक्ता के वक्तव्यों को एकांकी एवं पूर्वाग्रह से ग्रसित बताते हुए उनसे सार्वजनिक रूप से हिन्दू धर्म एवं संस्कृति का अपमान करने के लिए क्षमा मांगने को कहा. जिसे अनावश्यक बताते हुए दर्शनशास्त्र की विभागाध्यक्ष एवं कार्यक्रम की मुख्य आयोजक प्रो. सुधा चौधरी ने उन्हें बैठ जाने को कहा. कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे दर्शनशास्त्र के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. एसआर व्यास, विशिष्ट अतिथि मानविकी विभागाध्यक्ष प्रो. मीना गौड एवं डॉ. निर्मला जैन सहित सभी मंचस्थों, आयोजकों ने प्रो. अशोक वोहरा के घृणा एवं द्वेष फैलाने वाले विचारों का समर्थन करते हुए उनके वक्तव्य की निन्दा करने के स्थान पर प्रशंसा की.

विश्वविद्यालय परिसर में आयोजित कार्यक्रम में बड़ी संख्या में छात्राओं को एकत्रित किया गया था. अधिकांश छात्राएं जनजाति वर्ग एवं ग्रामीण पृष्ठभूमि से सम्बन्ध रखने वाली थीं. निजि महाविद्यालय गुरुनानक कन्या महाविद्यालय से भी छात्राओं को महाविद्यालय की बस में बैठाकर आयोजकों द्वारा योजना पूर्वक लाया गया था. कार्यक्रम में विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के डॉ. नवीन नन्दवाना, इतिहास विभाग के डॉ. पीयूष भादवीया, राजनीति विज्ञान विभाग के सह आचार्य डॉ. गिरधारी सिंह कुम्पावत, भी उपस्थित थे, जो कार्यक्रम के बीच में ही उठकर सभागार से बाहर चले गये.

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