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सेवा उपकार के लिये नहीं, सेवा जीवन का मंत्र बनना चाहिये – दत्तात्रेय होसबले जी

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सेवा संगम समापन सत्र
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नई दिल्ली. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबले जी ने कहा कि स्वामी विवेकानंद जी ने कहा था कि भारत के जीवन के परमोद्देश्य त्याग और सेवा हैं, यही संकल्प है. त्याग भाव से सेवा कार्य तथा सेवा कार्य के रूप में त्याग. इसी पर दीर्घकाल से हमारे देश की परंपरा खड़ी है. मनुष्य को केवल अपने लिये नहीं जीना चाहिये. जो दूसरों के लिये जी रहे हैं, वास्तव में वहीं जी रहे हैं. और जो केवल अपने लिये ही जी रहे हैं, वह मृतप्राय हैं.

सह सरकार्यवाह जी दूसरे राष्ट्रीय सेवा संगम के समापन सत्र में प्रतिनिधियों को संबोधित कर रहे थे.  उन्होंने कहा कि द्वितीय सेवा संगम अद्वितीय है, और यह एक आंदोलन का हिस्सा है, उसकी एक कड़ी है. सेवा पूजा का माध्यम है, सेवा समाज का ऋण चुकाने का अवसर है, इसलिये सेवा जीवन का मंत्र बनना चाहिये, सेवा को ही जीवन बनना चाहिये. सेवा उपकार के लिये नहीं होनी चाहिये, न ही सेवा में अहंकार और अपेक्षा होनी चाहिये. समाज के कष्ट को दूर करने के लिये अंत:करण से सेवा होनी चाहिये. सेवा से समाज में परिवर्तन दिखे, समाज समर्थ, सुखी व संपन्न हो.

सेवा संगम समापन सत्र
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उन्होंने कार्यकर्ताओं से कहा कि सेवा से किसी को दूर नहीं रखना, किसी प्रकार की अस्पृश्यता नहीं होनी चाहिये. प्रत्येक मनुष्य के अंदर सेवा धर्म का भाव होता है, हमें उस भाव को जागृत करने का प्रयास भर करना है. उन्होंने कहा कि शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्र में काफी कार्य किया जाना है, सेवा कार्य को बहुआयामी बनाते हुए गुणवत्ता में भी सुधार करना है. साथ ही जल, पर्यावरण, नदियों के संरक्षण, स्वच्छता के लिये भी कार्य करना है, सकारात्मक परिवर्तन के लिये सकारात्मक परिवर्तन लाने के लिये सुनिश्चित योजना तैयार करें और दक्षता विकास के लिये निरंतर प्रशिक्षण कार्यक्रम चलायें. सेवा को समाज में स्वाभाविक बनाते हुए संस्थाएं एक या दो क्षेत्रों में तज्ञता (विशेषज्ञता) हासिल करें, तथा उस क्षेत्र में कार्य कर अन्यों के लिये उदाहरण बनें.

संगम में हुए विचार-विमर्श से अगले पांच वर्ष तक पांच बिंदुओं पर ध्यान केन्द्रित करने में मदद मिलेगी, सेवा कार्यों की गति बढ़ाना, सेवा कार्यों की संख्या बढ़ाना, सेवा कार्यों के आयामों में वृद्धि, गुणवत्ता में अभिवृद्धि तथा प्रभाव (इम्पैक्ट)  में वृद्धि. पांच साल में होने वाले सेवा संगम का उद्देश्य आत्मावलोकन, समीक्षा करना, समाज में प्रेरणा जगाना, अनुभव सांझा करना है.

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उन्होंने कहा कि सेवा के माध्यम से समाज में समरसता का निर्माण करना है, समरस समाज से ही समर्थ भारत खड़ा होगा. समरसता के अभाव में समाज में दुर्बलता, कमजोरी आ रही है. और सदा दुर्बल पर ही आघात होता है. समाज से अभाव, कष्ट को दूर कर दुर्बलता को दूर भगाना है. तभी समरस समाज के बल पर समर्थ भारत का निर्माण होगा. बिलियर्ड्स में विश्व चैंपियन गीत सेठी की आत्म कथा का जिक्र करते कहा कि कार्यकर्ता आनंद की अनुभूति के लिये सेवा कार्य करें, तो उसमें सफलता अवश्य मिलेगी.

अखिल भारतीय सेवा प्रमुख सुहास राव हिरेमठ ने कहा कि दूसरे सेवा संगम में देश के सभी राज्यों के 532 जिलों से 707 स्वयंसेवी संगठनों के 3050 प्रतिनिधियों ने भाग लिया, इनमें 2535 पुरुष और 515 महिला प्रतिनिधि शामिल रहीं. कहा कि सरसंघचालक जी के आग्रह अनुसार सेवा कार्य को सर्व व्यापी, बहुआयामी, तथा विस्तारित करने के लिये प्रयास करना है.

कार्यक्रम के प्रारम्भ में दिल्ली सेवा भारती के अध्यक्ष तरुण जी ने सहसरकार्वयाह जी का स्वागत किया. अंत में राष्ट्रीय सेवा भारती के राष्ट्रीय महामंत्री ऋषिपाल जी ने गणमान्यजनों का आभार व्यक्त किया. मंच पर राष्ट्रीय सेवा भारती के अध्यक्ष सूर्य प्रकाश टोंक भी उपस्थित थे.

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