करंट टॉपिक्स

कारगिल युद्ध के नायक – कैप्टन अमोल कालिया

Spread the love

08 जून, 1999, कारगिल के वीर बलिदानी कैप्टन अमोल कालिया की वीरगाथा, जब अमोल कालिया पैराशूट से 18 हजार फीट ऊंची पहाड़ी पर उतरे और दुश्मनों को ढेर कर विजय हासिल की

08 जून 1999! कैप्टन अमोल कालिया और उनकी टुकड़ी के सैनिकों को बटालिक सेक्टर की 18 हजार फीट ऊंची पहाड़ी पर पैराशूट की मदद से उतारा गया. मिशन था – सामने की पहाड़ी पर चौकी नंबर 5302 को पाकिस्तानी घुसपैठियों के कब्जे से आजाद करवाना. ऐसे मुकाबलों के लिए हर तरह से प्रशिक्षित इस टुकड़ी पर सेना के वरिष्ठ अधिकारियों को पूरा विश्वास था. वीरता की ऐसी मिसाल, जिसे भारतीय युद्ध की कहानियों में विशेष जगह हमेशा मिलती रहेगी.

पैराशूट से येल्डोर में उतरने के साथ ही इस टुकड़ी के प्रत्येक सदस्य के सामने एक बात स्पष्ट थी कि दुश्मन से लड़ाई आमने-सामने की है. दूर-दूर तक बर्फ से ढके दुर्गम पहाड़ों के अलावा सबसे बड़ी चुनौती थी – 75 फीट ऊंची वह बर्फीली सपाट दीवार, जिसके पार घुसपैठियों का बेस था. लेकिन उस दीवार तक पहुंचने के लिए भी दो हजार फीट ऊंचाई तय करनी थी. दुश्मन की गिद्ध निगाह हर वक्त उस रास्ते पर थी, इसलिए दिन में वहां किसी भी तरह की हरकत करना मुमकिन नहीं था. टुकड़ी ने पूरा दिन बर्फीली चट्टानों की ओट में बिताने का फैसला किया. कैप्टन अमोल ने इस दौरान तमाम हालात का जायजा लिया, ऊपर चढ़ने का वो रास्ता तय किया जो रात को तय करना था और साथ ही मुकाबले की सम्पूर्ण रणनीति तय की.

इसी रणनीति के तहत यह टुकड़ी रात भर दुश्मन की गोलीबारी झेलती, उसका जवाब देती आगे बढ़ती रही. पर टुकड़ी के लिए सबसे बड़ी दिक्कत थी उसकी अपनी पोजीशन. दुश्मन ऊंचाई पर था. न सिर्फ आसानी से देख सकता था, बल्कि सटीक हमला भी कर सकता था. खैर, उस रात लड़ाई रोकनी पड़ी. हालांकि रात के मुकाबले में नुकसान दोनों पक्षों को पहुंचा. पर अपने इस नुकसान की भरपाई के लिए पाकिस्तानी घुसपैठियों ने उसी रात और सैन्य मदद का संदेश अपने साथियों तक पहुंचा दिया. पर भारतीय सैनिकों के लिए ऐसा कर पाना संभव न था.

अगली रात भारतीय हमलावर टुकड़ी ने न सिर्फ उस विशाल बर्फ की ऊंची दीवार लांघने में कामयाबी हासिल की, बल्कि दुश्मन के छक्के छुड़ा दिए. घुसपैठिए बौखला गए. उन्हें अपनी पोजीशन छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा. परंतु घुसपैठिए इस दौरान भी भारतीय सैनिकों पर दो तरफ से गोलाबारी व फायरिंग करते रहे. बर्फीली जमीन पर लगातार सात घंटे तक चले उस संघर्ष में अमोल के दो जांबाज मशीनगनधारी बलिदान हो गए. कुछ और जवानों को भी गोलियां लगीं. अमोल खुद भी घायल हो गया. पर उसने हिम्मत नहीं हारी. किसी तरह उसने दूर पड़ी वह लाइट मशीनगन अपने कब्जे में कर ली,  जिसे चला रहा उनका साथी वीरगति को प्राप्त हो गया था.

कैप्टन अमोल ने मशीनगन हाथ में आते ही दुश्मन पर गोलियों की बौछार कर दी. एक बार में ही उसने छह घुसपैठियों को उड़ा डाला. कुल मिलाकर इस संघर्ष में दो दर्जन घुसपैठिए मारे गए. भारतीय सेना ने सामरिक महत्व की उस चौकी पर पुन: अपना कब्जा कर लिया, पर अमोल व उसके 13 जांबाज साथियों को खोने के बाद.

अमोल का परिवार और देशसेवा से लगाव

अमोल का परिवार हिमाचल प्रदेश के ऊना जिले का रहने वाला था. लेकिन अमोल की स्कूली शिक्षा नंगल में ही हुई. पिता सतपाल कालिया शिक्षा विभाग में कार्यरत रहे, और मां उषा कालिया नंगल स्थित उप लेखा परीक्षक निदेशालय में कार्यरत रहीं. वो अमोल के बारे में ज्यादा बातचीत नहीं कर पातीं, लेकिन जो कुछ भी उन्होंने कहा वो किसी वीर बालक की मां ही कह सकती है, ‘मुझे गर्व है कि मैं अमोल की मां हूं.’

वीर मां ने एक नहीं दो वीर सपूतों को जन्म दिया है. उनका दूसरा बेटा अमन कालिया वायु सेना में है.

फोटोग्राफी और तबला बजाने के शौकीन अमोल ने बारहवीं पास करते ही राष्ट्रीय सुरक्षा अकादमी के माध्यम से भारतीय सेना में प्रवेश प्राप्त किया था. सेना में रहकर उसने हर वो कोर्स किया जो एक मजबूत और समझदार फौजी अफसर बनने के लिए महत्वपूर्ण था. उसने कमांडो ट्रेनिंग ली, माउंटेनियरिंग वार कोर्स किया, हाई ऐल्टिट्यूड वारफेयर स्कूल पूरा किया, बर्फीले स्थानों पर युद्ध करने की ट्रेनिंग ली.

ऐसा लगता है – अमोल कारगिल में देशसेवा के लिए ही पैदा हुए थे, क्योंकि वो पहले भी मौत को गच्चा दे चुके थे. 25 जनवरी 1996 की बात है. अमोल खेमकरण सेक्टर से लौट रहा था कि अचानक उसकी जीप के दो पहिए निकल गए थे. जीप पलट गई. जीप का चालक और दो जवान उस दुर्घटना में मारे गए. अमोल के सिर में भी चोट आई. उसे फिरोजपुर स्थित सेना अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां 14 दिन के बाद उसे होश आया था.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *